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इतिहास में दर्ज होगा मजदूरों का संघर्ष और साहस

गरीबी और गरीब को लेकर बचपन से ही हम लोग कई भ्रांतियों के शिकार होते आ रहे है I जब भी हम जैसे मध्यम वर्ग के लोग सार्वजनिक परिवहन खासकर बस का इस्तेमाल करते है और अगर उस वक़्त जब कोई गरीब इंसान जोकि थोड़े बहुत गंदे कपड़े पहना होता है उस बस के अंदर जैसे ही हमारे पास आता है हम अपनी जेब को संभालने लगते है मानो वह हमारी जेब पर हाथ साफ करने वाला है I ऐसे अनेक उदारहण है हमारे दैनिक जीवन मे I जब भी हमारे घर मे कोई काम करनेवाली महिला चौका बर्तन करने आती है तो भी हम चौकन्ने हो जाते है I

गरीबी, लालची बनाती है ऐसे धारणा बना दी गई है I  गरीबी और गरीब लोगों के बारे कई नकारात्मक धारणा हमने बना ली हैI  यह ठीक उसी तरह से है जैसे हमने किसी खास जाति और धर्म को लेकर बना ली है I ऐसा इसलिए हुआ क्योकि चीजों को ‘परसोने’ वाले ज़्यादातर मध्यम या उच्च वर्ग और उच्च जाति से आते है I हमारे देश मे जाति और वर्ग का सीधा संबद्ध है I मतलब जो सामाजिक संरचना मे आगे है वह वर्ग मे भी आगे है I इसलिए इस तरह धारणा की हमारे समाज मे फैली हुई है I

 करोना महमारी के इस काल मे ऐसी कई धारणा ध्वस्त हुई है I  इस तालाबंदी के समय मैं प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से कामगारों से मिला. ऐसा इसलिए संभव हो पाया कि मेरे शहर सासाराम, बिहार से ही राष्ट्रीय राजमार्ग 2 (दिल्ली कोलकता को जोड़ने वाली सड़क ) गुजरती है और बड़ी संख्या मे मजदूर  अपने अपने अपने घर लौटने के लिए इसी राजमार्ग का उपयोग कर रहे थे I इस दौरान जब भी हमने किसी भी कामगार अथवा मजदूर से यह पूछा कि आप लोगों को रूपय-पैसे चाहिए तो उन्होने कहा नहीं I किसी ने भी पैसे की इच्छा जाहिर नहीं की जबकि हमारे पास जन सहयोग से इनको देने के लिए पर्याप्त पैसा इकठ्ठा हो चुका था I  उनका जबाब एक ही होता था हमे पैसे नहीं चाहिएI भूख लगी है हमे केवल खाना चाहिए और हम जल्द से जल्द अपने घर पहुँचना चाहते है I

यह बताना इसलिए जरूरी है गरीबी के बारे यह जो भ्रांति है कि वह लोगों को लालची और भ्रष्ट बनाती है, इसको यह सिरे से ख़ारिज करती हैI दलित -आदिवासी लोगों के सामाजिक योगदान तथा उनकी स्वतन्त्रता आंदोलन मे भूमिका को अगर विस्तृत रूप से बताया गया होता तो उनके बारे मे गलत धारणा समाज मे नहीं पनपती I लेकिन अब इससे सबक लेने की जरूरत है I

अब इन मजदूरों के संघर्ष, धैर्य, साहस और ईमानदारी का वर्णन अवश्य हो I और जब भी इस कोरोना महामारी का इतिहास लिखा जाए इनकी गाथाएँ इतिहास का हिस्सा बने I जो बात कभी हम इतिहास मे पढ़ा करते थे कि फलां राजा कई दिनों तक भूखे पैदल अथवा घोड़े पर यात्रा करते रहेI वह दृश्य इस संकट के समय मजदूरों ने दिखाया I कैसे विपति के समय मे हमे अपने धैर्य से काम लेना है यह इन लोगों से सीखने की जरूरत है I

इसके उलट समाज के एक बड़े हिस्से का व्यवहार इन लोगो के प्रति बड़ा भेदभावपूर्ण था I इन्हे करोना वायरस को फैलाने वाला (कोरोना कैरियर) के रूप मे देखा गया I सासाराम के ही मुख्य सड़क पर बसे एक मोहल्ले के लोगो द्वारा जहां ज़्यादातर सवर्ण जाति के लोग रहते है, लगे हैंड पम्प (चांपाकल) के हैंडल को निकाल दिया गया ताकि ये लोग पानी पीने के चलते कोरोना संक्रमण को न फैला सकेI

मैंने इस दृश्य को अपनी आंखों से देखा है कैसे लोग जब भी मजदूर को सड़क पर देखते उससे दूर होकर चलते या रास्ता बदल देते I कई लोग तो मेरे घर पर आना केवल इसलिए बंद कर दिये क्योकि हम लोग अप्रवासी कामगारों को खाना खिलाने से लेकर उनको उनके गंतव्य स्थान तक भेजने के काम मे लगे थे I

एक बात तो तय है और मुझे विश्वास है कि वर्ष 2020 का इतिहास मजदूरों के संघर्ष और धैर्य के नाम होना चाहिए क्योकि आनेवाले इतिहास के राजा तो यही है I लेकिन यह तभी संभव हो पाएगा जब हम चिनुआ अचेबे, एक नाइजीरियाई  उपन्यासकार की इस पंक्ति को ध्यान मे रखे – ‘जब तक हिरण अपना इतिहास खुद नहीं लिखेंगे तब तक हिरणों के इतिहास मे शिकारियों की शौर्य गाथाएँ गायी जाती रहेगी I’

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