समकालीन जनमत

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कविता

माटी पानी : सत्ता और समय की पहचान

समकालीन जनमत
रवि श्रीवास्तव सदानंद शाही के कविता संकलन ‘माटी-पानी’ को पढ़ते हुए मिर्ज़ा ग़ालिब का एक शेर याद आया- ‘ जो उलझी थी कभी आदम के...
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