समकालीन जनमत

Tag : पवन करण

पुस्तक

ज्योति रीता के कविता संग्रह ‘अतिरिक्त दरवाज़ा’ की पुस्तक समीक्षा

समकालीन जनमत
पवन करण   स्त्रियों को तो बिगड़ना ही था, स्त्रियों ने बिगड़ने में बहुत वक्त़ लगा दिया.. स्त्री कितनी दूर तक होती है? खुद को...
पुस्तक

संजीव कौशल के कविता संग्रह ‘फूल तारों के डाकिए हैं’ की पुस्तक समीक्षा

समकालीन जनमत
पवन करण आदमी के अपराध औरत की भेंट चाहते हैं यह सबक वह पिट-पिटकर सीख रही है- संजीव कौशल की कविता की स्त्रियों से (...
पुस्तक

रूपम मिश्र के काव्य संग्रह ‘एक जीवन अलग से’ की समीक्षा

समकालीन जनमत
पवन करण एक अभुआता समाज कायनात की सारी बुलबुलों की गर्दन मरोड़ रहा है….! रुपम मिश्र की कविताएँ हिंदी कविता की समृद्धि की सूचक हैं।...
कविता

पवन करण की कविताएँ साहस एवं सजगता का प्रतीक हैं

समकालीन जनमत
अंकिता रासुरी पवन करण की कविताओं में मौजूदा समाज एवं उसकी विडंबनाएँ मौजूद हैं। कैसे समाज बिखर रहा है बल्कि ऐसा जानबूझकर किया जा रहा...
Fearlessly expressing peoples opinion