(समकालीन जनमत की प्रबन्ध संपादक और जन संस्कृति मंच, उत्तर प्रदेश की वरिष्ठ उपाध्यक्ष मीना राय का जीवन लम्बे समय तक विविध साहित्यिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक हलचलों का गवाह रहा है. एक अध्यापक और प्रधानाचार्य के रूप में ग्रामीण हिन्दुस्तान की शिक्षा-व्यवस्था की चुनौतियों से लेकर सांस्कृतिक संकुल प्रकाशन के संचालन, साहित्यिक-सांस्कृतिक आयोजनों में सक्रिय रूप से पुस्तक, पोस्टर प्रदर्शनी के आयोजन और देश-समाज-राजनीति की बहसों से सक्रिय सम्बद्धता के उनके अनुभवों के संस्मरणों की श्रृंखला हम समकालीन जनमत के पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं. -सं.)
तो ऐसे हुआ मेरा विवाह
भाग-2
मेरी हालत खराब थी। जयमाल मैंने रामलीला में ही देखा था। गांव में तो पर्दे में शादी होती थी। बारात शादी के लिए आंगन में आ चुकी थी। पहले तो मंडप में गिने चुने बाराती बैठते थे। इस शादी को तो सबको देखना था। तिलक में जैसे पूरा सामान निकालकर चौकै पर रख दिया गया था वैसे ही डालपूजे का भी सामान निकाल कर तखत पर रख दिया गया। उसके बाद मुझे मंडप में जाना था। आशा दी, रेनू दी, नीरजा, सुषमा और विद्यावती दी मुझे जयमाल के लिए लेकर गईं। इन्दिरा दी नाराज थीं। वो मेरे साथ जयमाल पर नहीं गईं। नाराजगी गीत गाने को लेकर थी। वो शादी के हर स्टेप का अलग – अलग गीत गाती हैं । इस शादी में केवल जयमाल होना था। इसलिए वो सभी गीत नहीं गा पाएंगी। इस कारण नाराज थीं। जयमाल के लिए मंडप में मुश्किल से 20 फीट जाना था। लेकिन वहां तक जाने में मुझे आधा घंटा लग गया। साइड से तो नहीं लेकिन सामने से चेहरा दिख रहा था। कोई रास्ता ही नहीं दे रहा था। औरतें यही बोले जा रही थीं कि लड़की का चेहरा सामने से दिख रहा है, उसे ढँक दो। कोई एक तो सामने से साड़ी खींच कर घूंघट निकाल दी। फिर नीरजा ने उसे ठीक किया। बरामदे से एक फीट नीचे आंगन का फर्श था जिसमें मंडप था। (मैं हल्दी के दिन से तो साड़ी पहनना शुरू की थी)। दोनों हाथ से माला के साथ साड़ी भी कसके पकड़ी थी। मैं कांप भी रही थी। आंगन में उतरते ही बाराती में से एक आवाज आई -“कांप तालू, देखीह मलवा न गिर जाय”। बाद में पता चला बोलने वाले हमारे छोटे वाले जेठ थे।
मैं ससुराल पहुंच गई। घर पहुंचते ही हल्ला हुआ कि शादी की खबर पेपर में छपी है। पेपर में यह खबर छपी थी कि- “कल 9 मार्च को मतसा गांव के रामजी राय पुत्र श्री राज नारायन राय का विवाह डेढ़गावां की मीना राय पुत्री श्री रामाधार राय के साथ आदर्श विवाह के रूप में संपन्न हुआ। जिसको देखने आस पास के गांव के लोग भी बड़ी संख्या में आए और सबने इस तरह के विवाह की अपने अपने तरह से प्रसंशा की”। पेपर में छपी खबर से हमारे बड़े ससुर बहुत खुश थे। कहे कि- मुन्ना बहुत खुशी हुई कि तुम्हारे शादी के बारे में पेपर में छपा, लेकिन दुख इस बात का है कि तुम्हारे पिता का ही नाम छपा, मेरा नाम नहीं छपा। चलो सब ठीक है…..( दरअसल रामजी राय के पिता बहुत पहले ही साधू हो गए थे। बड़े पिताजी ही पिता की जिम्मेदारी में थे)। रामजी राय ने कहा कि मेरे ऐसी शादी करने से आप ही न गुस्सा गए थे, इसीलिए आप का नाम नहीं छापे सब।