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तश्ना आलमी की शायरी में श्रम का सौंदर्य – कौशल किशोर

तश्ना आलमी की याद में लखनऊ में हुआ कार्यक्रम

लखनऊ। तश्ना आलमी की शायरी प्रेम, संघर्ष व श्रम से मिलकर बनी है। इसमें श्रम का सौंदर्य है। उन्होंने समाज की बुराइयों, शोषण की दारुण स्थितियों, गरीबी, जातिगत भेदभाव, सांप्रदायिकता जैसी समस्याओं को उभारा है। उनकी शायरी आम आदमी की दशा व दुर्दशा से ही नहीं, उसके अन्दर की ताकत से परिचित कराती है जिसके मूल में व्यवस्था जनित विस्थापन है। यह तश्ना की ‘तश्नगी’ है जो पाठक व श्रोता को तश्ना के सफर का हमराह बनाती है: ‘तुम्हारे चांद की शायद हुकुमत चांदनी तक है/मगर अपना सफर दूसरी रोशनी तक है।’ इस तरह उनकी शायरी हमारी चेतना को दूसरी रोशनी के सफर के लिए तैयार करती है।

यह बात तश्ना आलमी की दूसरी बरसी पर आयोजित स्मृति कार्यक्रम में जसम उत्तर प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष व कवि कौशल किशोर ने कही। कार्यक्रम का आयोजन जन संस्कृति मंच की ओर से 18 सितम्बर को लेनिन पुस्तक केन्द्र, लखनऊ में किया गया था।

नाटककार राजेश कुमार ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। उन्होंने कहा कि तश्ना ऐसे शायर थे जिनमें इन्सानियत कूट-कूट कर भरा था। जैसा उनका जीवन था, सच्चाइयों से भरा वैसी ही उनकी शायरी थी। कोई फांक नहीं। वे दुष्यन्त और अदम की परम्परा में आते हैं। उनमें रमाशंकर विद्रोही सा तेवर और अन्दाज मिलता है। उनके जीवन काल में ज्यादा रचनाएं नहीं आ पायीं। हमारी कोशिश हो कि उनकी शायरी को सामने लाया जाय। किताब के रूप में प्रकाशित हो लोगों तक पहुंचे।

कवि भगवान स्वरूप कटियार ने तश्ना आलमी के जीवन पर एक फिल्म बनायी थी ‘अतश’ तथा अली सागर ने उन पर नाटक लिखा। इन दोनों ने उनकी यादों को साझा किया। एपवा की मीना सिंह, माले के राजीव गुप्ता और रमेश सिंह सेंगर ने भी अपने विचार प्रकट किये। इनका कहना था कि वे मुशायरों के नहीं आम लोगों के शायर थे। उनकी शायरी में सहजता ऐसी कि वह लोगों की जुबान पर बहुत जल्दी चढ जाती। उन्होंने गरीबी पर ही नही साम्प्रदायिकता पर भी चोट की है। उनकी शायरी आखिरी पायदान पर खड़े आदमी के पक्ष में खड़ी होती है।

कार्यक्रम का संचालन कवि व कथाकार फरजाना महदी ने किया। उन्होंने इस मौके पर तश्ना आलमी की गजलों का आजपूर्ण तरीके से पाठ किया। फरजाना महदी के कविता पाठ से ही कार्यक्रम के दूसरे हिस्से की शुरुआत हुई। उन्होंने ‘एक देश बनाये’ कविता सुनायी जिसका भाव था कि कैसा देश था और कैसा देश बन रहा है। मधुसूदन मगन अपनी कविता में कहते हैं ‘पुराना सपना दिखाता था/नये सपना बेचता है’। मो कलीम खान ने यह कहते हुए समां बांधा ‘जुल्म गर सरकार का ईमान है/बगावत से भरा हमारा भी दीवान है’। विमल किशोर ने सोनभद्र में हुए आदिवासियों की निर्मम हत्या पर ‘जय जोहार’ कविता सुनायी जिसमें वे कहती हैं ‘कल कल, छल छल बहती नदियां हैं/जल जंगल जमीन से आच्छादित तुम्हारी दुनिया है/इसी दुनिया को/वे छीन लेना चाहत हैं’। उन्होंने ‘परम्परा’ कविता का पाठ भी किया जिसमें यह भाव विचार आता है कि किस तरह परम्पराओं ने स्त्रियों को अपना गुलाम बना रखा है।

भगवान स्वरूप कटियार ने छात्र नेता चन्द्रशेखर की शहादत पर लिखी कविता ‘शहादत की प्रतिध्वनि’ सुनायी। कविता पाठ का समापन कौशल किशोर के कविता पाठ से हुई। इस मौके पर उन्होंने ‘वह हामिद था; और ‘वह रोये तो क्यों?’ का पाठ किया। इन कविताओं में अखलाक, जुनेद, पहलू, तबरेज, नजीब आदि के साथ हुई घटनाएं और देश का मंजर सजीव हो उठता है। माक्र्सवादी चिन्तक आर के सिन्हा ने पढ़ी गयी कविताओं पर टिप्पणी करते हुए कहा कि ये विविध आयाम वाली कविताएं हैं जो अपने समय से रू ब रू है। उनका कहना था कि कविता सृजन में कवि का चेतन ही नही अवचेतन भी सक्रिय होता है। हमें उस अवचेतन को भी देखना चाहिए।

कार्यक्रम के अन्त में भाकपा माले के साथी कामरेड सगीर अहमद के निधन पर दो मिनट का मौन रख उन्हें श्रद्धांजलि दी गयी। उनके सामाजिक योगदान पर माले के लखनऊ जिला प्रभारी रमेश सिंह सेंगर ने प्रकाश डाला।

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