समकालीन जनमत
कविता

केदार सम्मान से सम्मानित हुए कवि शंभु बादल

उमाशंकर सिंह परमार

लखनऊ/बांदा। मशहूर जनकवि केदारनाथ अग्रवाल के निर्वाण दिवस के अवसर पर 22 जून को ‘जनकवि केदारनाथ अग्रवाल सम्मान’, विमोचन और कविता पाठ का आयोजन किया गया । यह आयोजन जनवादी लेखक मंच द्वारा डीएवी कालेज, बांदा के सभागार में सम्पन्न हुआ ।

जनवादी लेखक मंच की पत्रिका ‘मुक्तिचक्र’ हर वर्ष यह सम्मान कविता के क्षेत्र मे प्रदान करती है। 2019 का यह सम्मान हजारीबाग, झारखण्ड के हिन्दी के वरिष्ठ कवि शम्भु बादल को दिया गया । इस अवसर पर शम्भु बादल को प्रतीक चिन्ह, शाल और प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया ।

 

कार्यक्रम की अध्यक्षता डीएवी कालेज के प्रधानाचार्य राकेश मोहन द्विवेदी ने की और संचालन जनवादी लेखक मंच के संयोजक युवा आलोचक उमाशंकर सिंह परमार ने किया ।

इस अवसर पर शम्भु बादल ने अपनी चिड़िया, गुजरा, पैदल चलने वाले, मौसम तथा आदिवासी संघर्ष पर केन्द्रित कई कविताओं का पाठ किया और अपनी कविता के विविध रंग से श्रोताओं का परिचय कराया। उनकी चिड़िया कविता जिसे उन्होंने अस्मिता और विचारधारा के पारस्परिक द्वन्द पर लिखा और इसमे गोरख पाण्डेय तथा कंवल भारती की चिड़िया कविताओं का जिक्र था। इसे लोगों द्वारा खासतौर से सराहा गया।

शंभु बादल के कवि कर्म पर बोलते हुए जन संस्कृति मंच के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष, कवि व ‘रेवान्त’ के प्रधान संपादक कौशल किशोर ने कहा कि आज जब सम्मानों व पुरस्कारों ने अपनी विश्वसनीयता खो दी है, केदार सम्मान जनवादी परम्परा और संघर्ष को आगे बढ़ाने का संकल्प है। केदार की कविता के केन्द्र में जन है और यही शंभु बादल की कविताओं में भी है। सत्तर के दशक में अपनी लम्बी कविता ‘पैदल चलने वाले पूछते हैं’ से वे चर्चा में आये। कविता जिस आम आदमी की कथा रचती है, उसमें वह अत्याचार व अन्याय जनित पीड़ा को मौन स्वीकार नहीं करता बल्कि समस्याओं से जूझता है, उसकी तह में जाता है और सवाल करता है। उसमें संघर्ष का साहस और अविकल दृढ़ता है।

शंभु बादल की कई कविताओं को संदर्भित करते हुए कौशल किशोर ने कहा कि इनके माध्यम से कविता का जो चेहरा उभरता है, वह आदिवासियों के जीवन और संस्कृति का है। इसमें उनकी जीवन वेदना व रुदन है तो वहीं उनकी संस्कृति के विविध रंग हैं जिसमें वे डूबते-इतराते है, नाचते-गाते हैं, खुशियां मनाते हैं। आज जिस तरह जंगलों की कटाई व जमीन की लूट हो रही है और इसका प्रतिकूल प्रभाव आदिवासियों के जीवन व संस्कृति पर हो रहा है और वे पलायन-विस्थापन के लिए बाध्य है, ये सारी व्यथा शंभु बादल की कविता में पुरजोर तरीके से व्यक्त होती है।

 

शंभु बादल के व्यक्तित्व की विशेषता उनकी सहजता, निश्छलता, कर्मठता और प्रतिबद्धता है जो हमें प्रेरित करती है। कवि केदार नाथ अग्रवाल की पुण्यतिथि के अवसर पर उन्हें सम्मानित किया जाना उस परम्परा को आगे बढ़ाना है।

इस अवसर पर गोपाल गोयल ने शम्भु बादल को सम्मानित होने पर खुशी जताई तथा घोषणा की कि ‘मुक्तिचक्र’ का अगला अंक शंभु बादल पर केन्द्रित होगा। युवा कवि प्रेमन्दन ने शम्भु बादल को हमारे समय का महत्वपूर्ण कवि कहा । युवा कवि पी के सिंह ने कहा कि शम्भु बादल का सम्मान केदार की परम्परा का सम्मान है।

कार्यक्रम के आरम्भ में सभी का स्वागत करते हुए जनवादी लेखक मंच बाँदा के अध्यक्ष व वरिष्ठ कवि जवाहरलाल जलज ने कहा कि बाँदा की धरती केदार की धरती है। यहाँ शम्भु बादल जैसे कवि का आना गौरव की बात है । उन्होंने केदार के जीवन और कविता से जुड़े कई रोचक प्रसंग सुनाये और कहा कि केदार के साथ केन, कमसिन, कविता और कचहरी का गहरा रिश्ता रहा है। इन्हीं से केदार का सृजनात्मक व्यक्तित्व बनता है।

दूसरा सत्र विमोचन का रहा जिसकी अध्यक्षता शम्भु बादल ने की। इस अवसर पर मुक्तिचक्र के केदार अंक, बाँदा के वरिष्ठ कवि रामौतार शाहू के खण्ड काव्य ‘मदर टेरेसा’ और कन्नौज के युवा कवि शिव कुशवाहा के कविता संग्रह ‘तो सुनो….’ का भी विमोचन हुआ। ‘मुक्तिचक्र’ को बाँदा की संस्कृति और साहित्य की रीढ़ बताते हुए संचालक परमार ने इस पत्रिका को बचाने और सहेजने की बात कही और कहा कि अब मुक्तिचक्र पर्यावरण पर काम करेगी ।

अतर्रा डिग्री कालेज के प्रोफेसर गया प्रसाद यादव ने रामौतार साहू को गीतों और छन्द का कुशल सृजक कहा और कहा कि मदर टेरेसा जैसी विभूति पर ऐसा काव्य आना जरूरी था । शिव कुशवाहा के कविता संग्रह ‘तो सुनो’ पर कन्नौज के वरिष्ठ कवि हरिप्रसाद चौधरी ने कहा कि यह किताब अस्मिताओं पर बात करती है। अस्मितावाद हिन्दी कविता की आज पहचान है। इस सत्र को रंजना सैराहा, रामगोपाल गुप्त, चन्द्रपाल कश्यप, डीएवी कालेज कमेटी अध्यक्ष विजय गुप्त, अशोक त्रिपाठी जीतू ने भी सम्बोधित किया।

 

अन्तिम सत्र कविता पाठ का था जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ कवि जवाहरलाल जलज ने की। इस सत्र मे झारखंड के कवि राजेश दुबे, नारायण दास गुप्त, दीनदयाल सोनी, चन्द्रिका प्रसाद दीक्षित, रामकरन साहू आदि ने कविता पाठ किया। जनवादी लेखक मंच के कालीचरण सिंह, अली असर बाँदवी, मनीष गुप्ता ने अपनी कविताओं गीतों से खूब वाह वाही लूटी । इस आयोजन में श्यामू भदौरिया, वीरेन्द्र गोयल, सचिन चतुर्वेदी, रामकरण साहू तथा राम त्रिपाठी सहित सैकडों साहित्य प्रेमी और केदार के पाठक मौजूद रहे ।

केन किनारे कविता

केन, केदार और कविता बाँदा की पहचान हैं। कविता, केन और केदार परस्पर जुडे हैं। कविता को याद करिए तो केदार बेतरह याद आते हैं। केदार याद आते हैं तो केन याद आती है और केन किनारे बैठिए तो केदार और कविता दोनो की स्मृतियाँ ताजा होती है।

सम्मान समारोह के दूसरे दिन जनवादी लेखक मंच के तत्वावधान में जनकवि केदारनाथ अग्रवाल की प्रिय नदी केन के किनारे सफेद और धूसर चट्टानों पर बैठकर केदार और केन का स्मरण किया गया और कविता पाठ का आयोजन हुआ। अस्सी के दशक के दो जरूरी कवियों शम्भु बादल और कौशल किशोर व युवा कवि प्रेमनन्दन का कविता पाठ हुआ । शुरुआत उमाशंकर सिंह परमार ने किया। उन्होने ‘लौटना’ और ‘सन्नाटा’ कविता पढी। शम्भु बादल ने अपनी दो ताजा कविताओं का पाठ किया। उनकी कविता मुजफ्फरपुर त्रासदी पर केन्द्रित थी। उनकी एक कविता नदी की अस्मिता पर केन्द्रित थी जिसका पाठ करते समय सामने केन थी।

कौशल किशोर ने आज के वैचारिक संकट और प्रतिरोध पर बात करते हुए जनमत निर्माण की धाँधली और लोकतन्त्र के बदलते स्वरूप पर धारदार कविताएँ पढीं। उनकी कविता जन और तन्त्र के बीच व्यापक स्तर पर विद्यमान भ्रमात्मक धुंध और मुद्दों के सन्दर्भ में जनप्रतिनिधियों की भूमिका पर सवाल करती है। युवा कवि प्रेमनन्दन ने ‘अफवाहें बनती बातें’ सुनायी। सच और अफवाह के मध्य की दूरी को समेटती कविता अफवाह के सच बना देने को सामने लाती है।

यह कविता पाठ प्रतिरोध का पाठ था। यह प्रतिरोध आज के दौर, आज की राजनीति तथा चुनी हुई संस्थाओं के अधः पतन व लोक कल्याणकारी स्टेट से कारपोरेट स्टेट में तब्दील होती राज्य व्यवस्था का प्रतिरोध था।

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