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पोएट्री फ़िल्म : शहर को जानना (लोकेश मालती प्रकाश)

 

शहर को जानना

किसी शहर की हरेक सड़क को जान लेने पर क्या आप कह सकते हैं कि उस शहर को जान गए हैं।

शहर की सड़कें सपाट होती हैं मगर कुछ लोग उनपर सीढ़ी की तरह ऊपर चढ़ते हैं। ऊंचा और ऊंचा। क्या इन सीढ़ियों की बनावट को जानकर शहर को जाना जा सकता है।

या फिर शहर को जानना किसी मरती हुई नदी को जानना होता है।

या फिर शहर उस एक-एक इंच जमीन का भाव है जो रोज आसमान में एक पायदान ऊंचा टंगा होता है। या शहर को जानना उस जमीन में दफ़न जंगल को या इमारतों में दफ़न बस्तियों को जानना होता है।

भूख बेकारी आवारगी आज़ादी दृश्य-अदृश्य क्रूरता

शहर के कई चेहरे

हरेक चेहरे पर कई शहर

इन सबको जानना क्या शहर को जानना होता है।

( लोकेश मालती प्रकाश ऑल इंडिया फोरम फ़ॉर राइट तो एड्यूकेशन के कार्यकर्ता हैं. समकालीन हिंदी कविता का उभरता हुआ चर्चित नाम हैं. अनुवादक भी हैं )

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