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श्रद्धांजलि सभा में कवि बी एन गौड़ को याद किया गया

लखनऊ। ‘  कवि बी एन गौड़ के अन्दर एक बेचैनी थी जो संघर्षशील व ईमानदार आदमी के अन्दर होती है। उनकी बेचैनी को अपने पत्रकार मित्र कृष्ण प्रताप को लिखे पत्र से समझा जा सकता है। पत्र में वे मुक्तिबोध की कविता के उस अंश को उद्धृत करते हैं जिसमें वे कहते हैं ‘जीवन क्या जिया/लिया बहुत दिया कम/मर गया देश/जीवित रहे तुम’। गौड़ जी की चिन्ता थी कि जो होना चाहिए नहीं हो पा रहा है। उनकी ताकत शब्द और संघर्ष है। आज शिक्षा के केन्द्र और शब्द पर हमले हो रहे हैं क्योंकि यहीं से प्रतिरोध हो रहा है। ‘
 
यह बात कवि  व आलोचक चन्द्रेश्वर ने कवि व गद्यकार बी एन गौड़ की स्मृति में आयोजित श्रद्धांजलि सभा की अध्यक्षता करते हुए कही। श्रद्धांजलि सभा का आयोजन जन संस्कृति मंव की ओर से लोहिया भवन, हजरतगंज, लखनऊ में 5 जनवरी को हुआ। ज्ञात हो कि उनका निधन 3 जनवरी को लखनऊ में हुआ।
 
फैजाबाद से आये लेखक और पत्रकार कृष्ण प्रताप का कहना था कि वे मेरे लिए रोशनी की तरह थे। उनसे हम लड़ते-झगड़ते थे और इससे हम सीखते थे। उन्होंने कुछ साल पहले गौड़ जी का उन्हें लिखा लम्बा पत्र सुनाया जिससे उनके सम्बन्धों के बारे में दृष्टिकोण, सामाजिक सरोकारों और मानवीय पक्ष का पता चलता है।    
कानपुर से आये अवधेश कुमार सिंह ने कहा कि वे मजदूर संघर्षों की उपज थे। वहीं से वे दीक्षित हुए। उनमें उसी का ताप व ऊर्जा मिलती है। कविता की पहुंच कवि तक सीमित नहीं रहती, उसकी गूंज दूर तक जाती है। जैसे फैज की नज्म ‘हम देखेंगे’। वह तीन दशक पहले लिखी गयी पर उससे सत्ता आज भी खौफ खाती है।  
युवा आलोचक अजीत प्रियदर्शी का कहना था कि उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी कि उनकी अप्रकाशित रचनाओं को हम सामने लाये। उन्होंने इसे प्रकाशित करने का प्रस्ताव किया जिसे सभी ने स्वीकार किया तथा अलग दुनिया के के के वत्स ने कहा कि इस संबंध में जो भी खर्चा आयेगा उसे उनकी संस्था वहन करेगी। तय किया गया कि उनके आगामी जन्मदिन 9 जुलाई को एक कार्यक्रम किया जाय जिसमें इसे  जारी किया जाय।
 
इस मौके पर राजेश कुमार, देवनाथ द्विवेदी, एस के पंजम, विमल किशोर, वर्षा श्रीवास्तव, कौशल किशोर, भाकपा (माले) के रमेश सिंह सेंगर, वर्कर्स कौंसिल के ओ पी सिन्हा, किसान नेता शिवाजी राय, नागरिक परिषद के के के शुक्ला व वीरेन्द्र त्रिपाठी, एपवा की मीना सिंह, आइसा के नीतीन आदि ने बी एन गौड़ के साथ की अपनी यादों को साझा किया, उनके जीवन के बहुत से प्रसंगों की चर्चा की तथा कहा कि उनके जीवन के दो हिस्से रहे। पहले में उनका ट्रेडयूनियनिस्ट और आंदोलनधर्मी रूप प्रधान था। वहीं रेलवे की सेवा से निवृत्त होने के बाद वे पूरी तरह साहित्य और संस्कृति कर्म को समर्पित हो गये। आम या कि श्रमजीवी जनता से जुड़े मुद्दों पर वाम नजरिये के लेखन व संघर्ष का उन्हें जुनून-सा था। वे अपने को विप्लव बिड़हरी कहते थे। ‘बिड़हरी’  उनकी मिट्टी की पहचान थी तो ‘विप्लव’ उनके विद्रोही चरित्र की। उनमें प्रोफेशनल क्रान्तिकारी के गुण थे। वक्ताओं का यह भी कहना था कि युवाओं से लेकर अपने हमउम्र के साथ उनका गहरा लगाव था। वे मंच से दूर रहने वाले जमीनी कार्यकर्ता थे। विवादों को भी आत्मीय ढंग से हल करने का उनका नजरिया था। किताबों के साथ उनका बेहद लगाव था। 
 
आर के सिन्हा, प्रमोद प्रसाद, इंदु पाण्डेय, सुरेन्द्र प्रसाद, अशोक श्रीवास्तव, आशुतोष, नरेश कुमार, ज्योति राय, कमील खान, राजीव गुप्ता, अनिल कुमार आदि ने अपना श्रद्धा सुमन  अर्पित किया। अन्त में बी एन गौड़ की याद में दो मिनट का मौन रखा गया। 

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