समकालीन जनमत
कविता

जोराम यालाम नाबाम की कविताएँ जीवन की आदिम सुंदरता में शामिल होने का आमंत्रण हैं

बसन्त त्रिपाठी


जोराम यालाम नाबाम की कविताओं में आतंक, भय, राजनीतिक दाँव-पेंच, खून-खराबे से त्रस्त जीवन को आदिम प्रकृति की ओर आने का आत्मीय आमंत्रण है. ये केवल कविताएँ नहीं हैं, खुद को अपने परिवेश के साझेपन में देखने का आदिम विश्वास भी है. इसलिए इनमें मनुष्य होने की वह गरिमा है जिसे सभ्यता ने विकास की कीमत पर छीन लिया है. इसे बेहद अफसोस के साथ कहना पड़ता है देश के जिन हिस्सों में गणराज्य की सुविधाएँ नागरिक जिम्मेदारियों के निर्वाह के कर्तव्य-बोध के साथ नहीं पहुँची, वहाँ गणराज्य सैन्य-अभियानों, उदासीनताओं, उपेक्षाओं और नकार-बोध के साथ पहुँचा. देश के अशांत और उपेक्षित इलाकों की स्थितियों और वहाँ रह रहे लोगों की मनोदशाओं के अध्ययन-क्रम में इसे सहज ही देखा जा सकता है. लेकिन यह भी गौरतलब है कि जीवन के उमंग से भरे हुए उन इलाकों ने उपेक्षा का प्रतिकार करते हुए भी अपनी सांस्कृतिक गरिमा और पहचान को ज़िन्दा रखा है. यह उनके साहित्य और कला में दिखाई पड़ जाता है. जोरामा यालाम जब ये कहती हैं कि ‘कविता क्या कहूँ चिट्ठी है यह मेरी मेरे अनाम प्रेमी के नाम’ तो केवल विनम्रतावश यह नहीं कहतीं. उनकी तमाम कविताओं में उनका यह प्रेममय रूप दिखाई पड़ता है. यदि क्षोभ आता भी है तो कोई आवाज़ उन्हें इस क्षोभ से बाहर आने का रास्ता दिखाती हुई तुरंत उपस्थित हो जाती है. मौजूदा दौर में ऐसी आवाज़ों को सुनना और उसे मनुष्य की गरिमा का परचम बनाना अत्यंत दुष्कर होता गया है. लेकिन जोरामा यालाम उन आवाज़ों को सुनती हैं. जरा उनकी इन पंक्तियों को देखें :
मैंने कहा उनकी धज्जियाँ उड़ा दूँगी मैं
हमसे हमारे पूवर्जों के गहने जो छीनेगा
समंदर से एक आवाज आई
लहरों की थी धीमी सी
न… नहीं
यह रास्ता हमारा नहीं
धज्जियाँ उड़ाना दिल का काम नहीं
और इसके बाद वह आवाज़ वही कहती है जो मनुष्यता का रास्ता है, मनुष्यता की पहचान है.

आधुनिक साहित्य और आधुनिकता के संकटग्रस्त होने के बाद भारत ही नहीं दुनिया के साहित्य में एक खास बात देखने में आई है. वह है, अपनी ऐतिहासिक स्मृतियों की तलाश, जो कई बार विगत सभ्यता या वंशावलियों की तलाश में सिमटकर रह जाती है. जोरामा यालाम नाबाम की कविताओं को पढ़ते हुए यह सुखद एहसास होता है कि वे अपनी स्मृतियों की तलाश में जंगल, नदी, पर्वत और मिट्टी तक जाती हैं. उन्हें अपना पूर्वज मानती हैं. पुरा कथाओं के अलावा अब यह संबंध अक्सर दिखाई नहीं पड़ता. यहाँ प्रस्तुत कविताओं में यह रेखांकित किए जाने योग्य है. उदाहरण के लिए उनकी इस छोटी-सी कविता को देखें :
ओह मेरे बच्चे
पाँव जरा धीरे रखना
मिटटी नहीं
हमारे पूर्वज हैं यह …….

मिट्टी को पूर्वज कहना मायने रखता है. अराजनीतिक-सी लगती इन पंक्तियों की राजनीति गहरी और मानवीय है. पहली कविता में भी वे शिद्दत से अपने पूर्वजों की शिनाख्त करती हैं. दुनिया का संकट उनके लिए केवल कुछ चुनिंदा राजनीतिक घटनाएँ नहीं हैं बल्कि उससे कहीं अधिक विनष्ट प्रकृति का सकंट है :

दिशाओं से काले धुएँ आते हैं
नदी मटमैली हो चली है
धूल से आसमान भर गया है
यदि उक्त स्थिति के विश्लेष्ण तक जाएँ तो इन परिस्थियों के लिए जिम्मेदार राजनीतिक शक्तियाँ आसानी से दिखाई पड़ जाएँगी.

जोराम यालाम की कविताएँ जीवन की ऊर्जा से भरी हुई हैं. मृत्यु उनके लिए एक दुर्घटना है. बेशक इस दुर्घटनाओं के खुले-छिपे राजनीतिक पहलू भी हैं लेकिन वे उस ओर प्रत्यक्षतः जाने से भरसक बचती हैं. ऐसा नहीं है कि उन्हें दुनिया की क्रूरताओं का भान नहीं है. बेशक है. इसके कई–कई चित्र उनकी कविताओं में भी देखे जा सकते हैं. लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि वे क्रूरताएँ उन्हें अवसादग्रस्त और हताश करने की अपेक्षा जीवन को तलाशने की जिद की ओर ले जाती हैं. दरअसल वे दुर्घटनाओं से पटी इस धरती के कुहासे का ताला खोलने के लिए चाबी ढूँढ़ रही हैं. मनुष्यता ही वह ताला है जिससे इस कुहासे का ताला खोला जा सकता है. इसलिए असंख्य विद्रूपताओं के बावजूद दुनिया अब भी उनके लिए जीने की एक मुफीद जगह है. क्योंकि इसी दुनिया में अब भी वे तमाम लोग हैं जो इसे जीने लायक बनाए रखे हुए हैं.

 

जोराम यालाम नाबाम की कविताएँ

 

1.
ओ मेरे जंगली दिल
आओ जंगल गीत गाएँ
वह सुनता है
बोलता है
गाता है

सुनना धर्म है
जीवन है
प्राण है
हम ही तो थे वे
हम ही वंशज
आओ पदचिह्न ढूँढ़ें अपने पूर्वजों का
अपनी ही साँसों का
जंगल की फुसफुसाहटों का
मिट्टी की धड़कनों में
पंछियों के गान में
पेड़ों की खिलखिलाहट में
माँ को पुकारते नन्हें हिरण के विरह गीत में

देखो खाई से पुकारते हैं वे
आओ जंगल की गंध सुनें
इन्द्रधनुष बुनें
पेड़ बन
फूल बन
लता बन
चट्टानों पर चढ़ें
वे पर्वतों के शिखर पर बैठ मुस्कुराते हैं
पूर्वज हमारा इंतजार करते हैं

दिशाओं से काले धुएँ आते हैं
नदी मटमैली हो चली है
धूल से आसमान भर गया है
पूर्वज धुंधलके में हाथ फैलाए
पुकारते हैं कब से

लँगड़ाने लगे हैं हम
लेकिन आओ
आँखें मलते आओ
आओ जंगल की ओर

थक गए हो तुम
जानती हूँ
मगर आओ
क्योंकि आना ही हम हैं .

 

2.
मैं रचनाकार नहीं हूँ
रच ही नहीं सकती कुछ
बस एक चाबी ढूँढ़ रही हूँ
आकाश के ताले खोलने हैं
कुछ खाली जगहें ढूँढ़नी हैं
दूर तक फैली दूब
चाँदनी चहक
रजनीगन्धा की महक
लेटता सुस्ताता विश्राम करता
हर आदमी नदी हो

मैं रचनाकार नहीं हूँ
बहुत ही कम पढ़ी जाने वाली कविता हूँ
इसीलिए तुम मुझसे
बचते-बचाते चलोगे
ढूँढ़ने के इस उधेड़बुन में
और तुम्हें पास बुलाने की धुन में
कुछ शब्द रच गए
कुछ रेखाएँ खिंच गईं .

 

3.
मैंने कहा उनकी धज्जियाँ उड़ा दूँगी मैं
हमसे हमारे पूवर्जों के गहने जो छीनेगा
समंदर से एक आवाज आई
लहरों की थी धीमी सी
न… नहीं
यह रास्ता हमारा नहीं
धज्जियाँ उड़ाना दिल का काम नहीं
तू मौज में उतर
सीपियों से मोती चुन
प्रिय पूर्वजों के पदचिह्न ढूँढ़
चोरों के दिल चुरा
मैं प्रेम करती हूँ उस आवाज से
इसलिए नीरवता का गान सुनने लगी .

 

4.
कविता क्या कहूँ
चिट्ठी है यह मेरी
मेरे अनाम प्रेमी के नाम
मुझसे प्रेम के जुर्म में
वे जो सलाखों में बंद हैं
मुक्ति कह मुझको दुलारते थे
खबर उनकी दीवारों को चीर
फ़ैल रही है हवाओं में
आह कैसे बताऊँ मैं उनको
नफरतों के बीच मैंने भी
उनकी याद किस तरह सँभाले हैं
पल-पल टूटते हृदय में
मस्ती के गीत गाए हैं
मेरी याद में सर्दियों की बर्फीली रातें काटी
सड़कों पर बैठ महीनों आसमानी गीत गाए थे
उनके नाम गुदवाए हैं गोदना
अपने गले में उड़ती तितलियाँ
सदियों इंतजार का वादा है यह मेरा .

 

5.
प्रेमी ही देवता है
उन्होंने सारा आकाश पी लिया
अकेले
आग पर चलते रहे
मरते रहे
दर्द के नशे में
हजार रूप लिए गाते रहे
उन्हीं की चहलकदमियों ने धरती को सींचा है.

 

6.
तुम मुझको वह सब कुछ सुनाना
कई-कई उदाहरणों के सहारे
भय के अनेक राह सुझाते
सुंदर कथाओं की ओट लिए
हाँ वह मर्यादाओं वाली बात भी
कल्पनाओं के जाल बुनते
तुम्हारी ऊँगलियों के
उठते–गिरते इशारों को देख
मैं सुनूँगी सबकुछ
सिवाए उसके जिसको
मैं सुनना चाहती हूँ .

 

7.
ओह मेरे बच्चे
पाँव जरा धीरे रखना
मिटटी नहीं
हमारे पूर्वज हैं यह …….

 

8.
मृत्यु को सामने देख
आदत तो नहीं
मगर प्रार्थना की प्राण निकल गई
जुबां पर मूर्ति अब भी रखें हैं
बरसों की मेहनत बचानी है
और पैरों तले जमीन खिसक गई .

 

9.
सोचा होगा
सब कुछ बंद है
नहीं चलेंगी ट्रेनें
यहीं पटरी पर सो जाते हैं
नींद ने जागने न दिया
अंधकार ने खोजने न दिया
इस तरह अंधेरी रात में
सब कट कर मर गए .

 

10.
क्यों रो रही हो ?
दुनिया रहने लायक जगह नहीं रह गई है
क्यों ?
सब दुःख ही दुःख दिख रहा है
फिर भी रहने लायक हैं यह
कैसे ?
तुम हो
मैं हूँ
और भी बहुत से लोग हैं .

 

कवयित्री जोराम यालाम नाबाम पूर्वोत्तर भारत में लिखे जा रहे हिंदी कथा साहित्य का चर्चित नाम हैं। कविता के क्षेत्र में जोराम यालाम नाबाम की कलम नई है। ईटानगर, अरुणाचल प्रदेश में जन्मीं और पली बढ़ी यालम की बी. ए. और एम. ए. के पढ़ाई दिल्ली विश्विद्यालय से हुई। ‘न्यीशी समाज के भाषिक अध्ययन’ पर  इन्होंने पीएचडी की है।

इनकी दो किताबें प्रकाशित हुई हैं-
‘साक्षी है पीपल’ ( कहानी संग्रह- 2012 )और ‘जंगली फूल’ ( उपन्यास – 2018)
संप्रति
सहायक प्रोफेसर, हिन्दी विभाग
राजीव गाँधी विश्वविद्यालय

संपर्क: joram.yalam@rgu.ac.in

 

टिप्पणीकार बसंत त्रिपाठी, 25 मार्च 1972 को भिलाई नगर, छत्तीसगढ़ में जन्म. शिक्षा-दीक्षा छत्तीसगढ़ में ही हुई। महाराष्ट्र के नागपुर के एक महिला महाविद्यालय में अध्यापन के उपरांत अब इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हिंदी अध्यापन. कविता, कहानी और आलोचना में सतत लेखन. कविता की तीन किताबें, कहानी और आलोचना की एक-एक किताब के अलावा कई संपादित किताबें प्रकाशित.

सम्पर्क: 9850313062, ई-मेल basantgtripathi@gmail.com)

Related posts

Fearlessly expressing peoples opinion