आठ मई की शाम समकालीन जनमत द्वारा आयोजित फ़ेसबुक लाइव में जब कवि पंकज चतुर्वेदी अपने कविता पाठ के लिए प्रस्तुत हुए तो काफ़ी देर तक इस नए अपरिचित माध्यम से रिश्ता बनाने की कोशिश में लाइव में शामिल दर्शकों से बार –बार पूछते रहे कि ‘क्या आप मुझे सुन पा हैं – क्या आप मुझे सुन पा रहे हैं ?’ यह बार –बार पूछना या अपने को न सुने जा सकने का संशय सिर्फ़ कवि पंकज में ही नहीं बल्कि हम सब में घर कर गया है.
परसों विशाखापत्तनम और औरंगाबाद में हुई त्रासदियों पर अपना शोक व्यक्त करने के बाद उन्होंने हाल ही में दिवंगत हुए युवा कहानीकार शशि भूषण द्विवेदी को भी अपनी श्रधांजलि पेश की.
बेहद संशय और असमंजस के साथ शुरू हुए इस कविता पाठ ने धीरे-धीरे लोगों को बांधना शुरू किया . इस पाठ में सुनाई गई कविताओं में से 20 पंकज के उपलब्ध करवाने पर यहाँ दुबारा से प्रकाशित की जा रही हैं और कोरोना समय से सम्बंधित वे 8 कवितायें भी जो वह कंप्यूटर में आई ख़राबी के कारण कल सुना नहीं पाए थे.
कुछ कविताएँ :
इमरजेंसी
इमरजेंसी भी लौटकर
आती है इतिहास में
कहती हुई :
मैं वह नहीं हूँ
जिसने तुम पर
अत्याचार किये थे
इस बार
मैं तुमसे
करने आयी हूँ
प्यार
नया राजपत्र
अगर आप सरकार के
तरफ़दार नहीं हैं तो
इसके तीन ही मतलब हैं
एक : आप देशद्रोही हैं
उसमें भी बहुत संभव है
कि आप पाकिस्तान-परस्त हों
(अल्पसंख्यक अधिक संदिग्ध हैं)
दूसरा : आप नक्सली हैं
या बहुत संभव है
कि आप उनके लिए
काम करते हों
(आदिवासी अधिक संदिग्ध हैं)
तीसरा : आपके पास काला धन है
और आप उसे ठिकाने
नहीं लगा पाये
या बहुत संभव है
कि आपने उसे
जन-धन ख़ातों में
जमा करवा दिया हो
(ग़रीब अधिक संदिग्ध हैं)
इसके बावजूद अगर आपको
इस देश में रहने दिया जा रहा है
तो यह सरकार की
सहिष्णुता है
आपकी नहीं !
चाँद कहता था
चाँद कहता था
आज शाम :
अपने सारे संताप
घुला दो
मेरी शीतलता में
मेरी छाँव में
सो रहो
मगर मैंने कहा :
आऊँगा फिर कभी
अभी उद्विग्न है हृदय
आततायी की विजय-दुंदुभि
सुन पड़ती है
और मेरा देश
उसके छल से अभिभूत
हिंसकता पर मुग्ध
किंतु अपने
भवितव्य से
अनजान है !
मलबे का मालिक
शासन करने का
एक ढंग यह है :
सब कुछ मिट्टी में
मिला देना
और फिर मलबे पर
खड़े होकर कहना :
मित्रो !
हमें यह विनाश ही
मिला है
विरासत में
नया नियम
तुम जो भी हो
किसान या मजूर
इस देश के
नागरिक नहीं हो
राज्य तुम्हें
पहचानता नहीं
ख़ुदकुशी गुनाह नहीं है
यह कहना गुनाह है :
हालात
ख़ुदकुशी के हैं
हताशा के इज़हार से
साबित नहीं हो पाता
सब साथ हैं
सबका विकास हो रहा है
लोकतंत्र का
नया नियम है :
दुख को जो कहेगा
नागरिक नहीं रहेगा !
क्या आप यक़ीन करेंगे ?
बेरेटा एम-1934
9 एम.एम. की पिस्तौल थी
जो सबसे पहले इटली में
मुसोलिनी की सेना ने
इस्तेमाल की थी
1941 में इटली जब
ब्रिटेन से पराजित हुआ
तो एक सैन्य अधिकारी
तमग़े के तौर पर
इसे ग्वालियर ले आये
जहाँ सात साल बाद
हिंदू महासभा के
सहयोगियों की मार्फ़त
नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे ने
इसे एक हथियार विक्रेता से ख़रीदा
और फिर गांधी की हत्या की
बाद में हत्यारों ने इसका
7.65 एम.एम. का
देशी संस्करण
तैयार कर लिया
क्या आप यक़ीन करेंगे
यह वही पिस्तौल है
जिससे आज़ादी के
सत्तर साल बाद
लेखकों की हत्या
की जा रही है
पूछो राष्ट्र-निर्माताओं से
एक तीन तलाक़
होता है
और एक
चुप्पा तलाक़
चुप्पा तलाक़ में
महान लक्ष्य से
पत्नी
तज दी जाती है
पूछो
राष्ट्र-निर्माताओं से :
चुप्पा तलाक़ का
निराकरण
कैसे होगा
किस न्यायालय में
उसकी सुनवाई होगी ?
हवन के लिए
हवन के लिए
अमेज़ॉन की वेबसाइट पर
गाय के गोबर से बने
नौ कंडों का सेट
ख़ूबसूरत पैकेजिंग में
महज़ एक सौ निन्यानबे
रुपयों में उपलब्ध है
यह सिर्फ़ विज्ञापन नहीं
हमारे समय का शायद
सर्वश्रेष्ठ रूपक है
इसमें सब-कुछ है :
गाय
गोबर
धर्म
कॉर्पोरेट
भूमंडलीकरण
और सत्ता का
अदृश्य हाथ
जिसके बग़ैर
यह दुर्लभ संयोग
संभव न था !
अगर आपके पास ताक़त है
अगर आपके पास ताक़त है
तो आप असहमति को
दबोच सकते हैं
और फिर
मुस्करा सकते हैं
लोकतंत्र
दबोची हुई निरीहता पर
ताक़तवर की मुस्कान है
जिससे जनता को लगता रहे
कि मार रहा शख़्स
मेहरबान है
राजा ने कहा
राजा ने कहा :
‘मैं कभी छुट्टी नहीं लेता’
लोगों की ज़िंदगी को
तबाह करना
एक बड़ा काम है
अवकाश पर जाने से
कैसे होगा ?
काजू की रोटी
काजू की रोटी के बारे में
सुनते-सुनते
कि उसे हुक्मरान खाते हैं
घर में एक दिन
स्वगत मैंने पूछा :
‘काजू की रोटी
होती कैसी है ?’
जीवन-संगिनी ने कहा :
‘थोड़ा आटा मिलाना पड़ेगा
नहीं तो उसकी रोटी बनेगी नहीं
टूट जायेगी’
राजा को प्रजा की
ज़रूरत क्यों है
समझने के लिए
इससे बेहतर
रूपक क्या होगा !
उम्मीद के चँदोवे तले
हमारे समय की
यह नहीं है मुश्किल
कि उम्मीद नहीं है
बल्कि यह है कि
हत्यारे से उम्मीद है
घर से दफ़्तर
दफ़्तर से बाज़ार तक
लोग उम्मीद करते हैं
कि जो काम
कोई नहीं कर पाया
हत्यारा करेगा
यहाँ तक कि
माँ भी आ जाती है
उम्मीद के इस चँदोवे तले
मगर जब उसे
हत्यारे का इतिहास
पता चलता है
वह कहती कुछ नहीं
उदास हो जाती है
संघ की शरण जाता हूँ
कभी वह भी समय था
जब राजकीय दमन से पीड़ित
सांसारिक दुखों से आहत
वर्ण-व्यवस्था से संतप्त
तुम्हारे पूर्वज
सत्य, शांति और
मुक्ति की तलाश में
कहते थे :
संघ की शरण जाता हूँ
वह कोई और ही संघ था
जो विराग से बना था
अहिंसा, अपरिग्रह
और सौहार्द से
चक्र उलटा घूमता है अब
सत्ता की हिंस्र लालसा
लिये हुए लोग
कहते हैं :
संघ की शरण जाता हूँ
जब राजा ही सुरक्षित नहीं
राजा से प्रजा को ख़तरा है
जबकि राजपुरुष कहते हैं :
राजा के शत्रु
प्रजा में ही
छिपे हुए हैं
राजा के शत्रु
न हों तो भी
इस एहसास के लिए
ज़रूरी हैं
कि राजा संकटापन्न है
जिससे लोग यह मान लें :
जब राजा ही सुरक्षित नहीं
तब सर्वोत्तम यही है
कि हम उसके
योगक्षेम की चिंता करें
और हमारी जो दुरवस्था है
उसके लिए वह नहीं
हमीं ज़िम्मेदार हैं
असली बात कहते नहीं बनती थी
हमारे दौर में लोकतंत्र की
एक अजब-सी कूट-भाषा
विकसित हो चुकी थी
नेता जब कहता था विकास
वह जानता था
कि विकास के लिए
समर्थन नहीं माँग रहा है
लोग जब कहते थे विकास
जानते थे
कि विकास के लिए
वे उसके साथ नहीं हैं
असली बात कहते नहीं बनती थी
इसलिए उसे कहा जाता था विकास
अंत में अन्याय जब बहुत बढ़ गया
तब यह ख़ुलासा हुआ :
विकास राजधर्म का
पालन न करनेवाले
एक नेता का नाम था
जिसे गिरफ़्तार करने की
कोशिश हुई थी
पर किया नहीं गया
फ़िटनेस चैलेंज
वह आदमी व्यायाम कर रहा है
या अपने विलास का प्रदर्शन ?
वह जो कह रहा है :
तुम स्वस्थ हो या नहीं ?
कहना यह चाहता है :
जब तुम स्वस्थ ही नहीं हो
तो मेरे अन्याय से
कैसे उबरोगे ?
नीरो का बयान
पेट्रोल और डीज़ल पर
बेरहमी से बढ़ते जा रहे
सरकारी कर से
भारत में लोग जब
बेहाल हो गये
उनमें-से बहुतों को
लगने लगा :
हो न हो
रोम पेट्रोल और डीज़ल जैसे ही
किसी ज्वलनशील तरल पदार्थ की
लपटों में
धू-धू कर जला था
और उस अग्निकांड से आह्लादित
सम्राट् नीरो
राजप्रासाद की अट्टालिका पर
बाँसुरी बजाते हुए
सिर्फ़ नृत्य नहीं कर रहा था
बल्कि उसे यह कहते भी
सुना गया था :
यह जो आग सबको
राख करती जा रही है
इसे रोक पाना
मेरे वश की बात नहीं
मैं एक जज था
मैं एक जज था
मेरे ज़िम्मे एक ही मुक़द्दमा था
जिसमें मुझे हत्यारे की बाबत
फ़ैसला देना था
मुझे मेरे सदर ने
एक अरब रुपयों की
पेशकश की
मगर मैंने इनकार किया
फिर दूर शहर एक शादी में
मेरे दोस्त जज मुझे ले गये
मुझे पता नहीं था वे अब मित्र नहीं हैं
मेरी मृत्यु को
सुनिश्चित करने के लिए
नियुक्त किये गये
अजनबी लोग हैं
मुझे कोई बीमारी नहीं थी
पर रिकॉर्ड में यही दर्ज है
कि वहाँ रात में मुझे
दिल का दौरा पड़ा
ऑटो स्टैंड नज़दीक नहीं था
फिर भी मुझे ऑटो से
अस्पताल ले जाया गया
जहाँ ई.सी.जी. मशीन ख़राब थी
इसलिए दूसरे अस्पताल के
रास्ते में मेरी मौत हुई
मैं एक जज था
जिसे उन लोगों ने
महज़ शव में बदलकर
एक ड्राइवर के हाथों
मेरे घर भिजवा दिया
यह हत्या थी या हादसा
कोई जाँच नहीं करेगा
अब इस वाक़ये को
तीन बरस हो गये
मुझे अपनी ही याद नहीं
तुम भी अपने ज़मीर के लिए
इसे भूल जाना !
देश काफ़ी बदल गया है
जस्टिस लोया ने
सबसे मर्मस्पर्शी बात
अपने पिता से कही थी :
‘मैं इस्तीफ़ा दे दूँगा
और गाँव जाकर
खेती करूँगा
मगर ग़लत फ़ैसला
नहीं सुनाऊँगा’
अगर आप भी ऐसा
सोचते और कहते हैं
तो आपको
जीने नहीं दिया जायेगा
जो मृतक हैं
वे नहीं चाहते
कि उनके बीच
कोई जीवित रहे
बीती आधी सदी में
देश काफ़ी बदल गया है
कुख्यात हत्यारा
डोमाजी उस्ताद
अब षड्यंत्रकारी
मृत्यु-दल की
शोभा-यात्रा में
सिर्फ़ शामिल नहीं
बल्कि वह
नेतृत्व कर रहा है
मैंने उसे देखा
मैंने उसे देखा :
सुंदरता में संपूर्ण
और निरभिमान
जैसे कोई फूल
अपनी पंखुड़ियों की
आभा से अनजान
ठहरी हुई हवा में भी
पीपल के पत्तों का
चंचल और
संगीतमय स्वभाव
या दुख के समुद्र पर
तिरती हुई
प्रसन्नता की नाव
तब यही मेरा प्यार था
कि मैंने अपनी
तकलीफ़ों के
ज़िक्र से उसे
उदास करना नहीं चाहा
संक्रमण से बचने के लिए
कोरोना वायरस ने भारत में
दस्तक दे दी है
डॉक्टर कह रहे हैं :
डरने की ज़रूरत नहीं
संक्रमण से बचने के लिए
लोगों से हाथ न मिलायें
नमस्कार करें
साबुन से हाथ धोते रहें
चेहरे के क़रीब न ले जाएँ
कोरोना पर दुनिया भर में
रिसर्च जारी है
मगर अभी कोई दवा नहीं
बचाव ही इलाज है
कोरोना वायरस तो
चीन से आया है
हिन्दुत्ववाद का वायरस
हमारा अपना है
आबादी के एक बड़े हिस्से पर
असर रखता है
बचने के लिए
संक्रमित लोगों से
हाथ न मिलायें
दूर से नमस्कार करें
हाथ धोते रहें
दिलोदिमाग़ के नज़दीक
न ले जाएँ
इसकी दवा पर फ़िलहाल
कोई काम नहीं हो रहा
बचाव ही इलाज है
आसन्न विपदा के समय में
आसन्न विपदा के समय में
बेसहारा
जीविका-विहीन लोग
दरबदर भटकते
अपने घर
पहुँचना चाहते
जहाँ उत्सव मनाया था
ज़िन्दगी का
कठिनतम क्षणों में
याद आता है
वही डेरा
कोरोना
कुछ दिनों पहले
एक आदमी ने सहसा
बहुत अपनाव से
हाथ मिला लिया था
बाद में मैं देर तक
भयभीत रहा
कभी सोचा नहीं था
जान बचाने की ख़ातिर
किसी निश्छल के
सौजन्य से
डरना होगा
एक आदमी आदेश देकर
एक आदमी आदेश देकर
छिप गया है
हज़ारों लोग भूखे-प्यासे
बेहाल
सड़क पर हैं
गाँव
सैकड़ों मील दूर
किसी की जेब में
पाँच रुपए हैं
किसी ने कई दिनों से
सिर्फ़ कुछ बिस्किट खाये
और पानी पिया है
किसी की पत्नी के पाँव की
हड्डी टूटी हुई है
वह उसे कंधे पर बिठाकर
चल दिया है
नब्बे साल की बूढ़ी स्त्री
चार सौ मील दूर
घर के लिए
पैदल चल पड़ी है
कोई साइकिल से
सपरिवार जा रहा है
बच्चा हैंडल पर
सो गया है
कहीं दो-चार कौर
खिचड़ी के लिए
हज़ारों लोग क़तार में
सरकार के
रहमोकरम पर हैं
उन्हें मेहरबानी नहीं
घर चाहिए था
जहाँ वे नमक-रोटी
खा सकते थे
दूसरों को अपनी चिन्ता से
बचा सकते थे
मगर वे किसी ब्लेड पर
चल रहे हैं
लहूलुहान
महामारी ठिठक गयी है
भूख का यह क़हर देखकर
एक आदमी आदेश देकर
छिप गया है
महामारी
हंगरी की संसद ने
कोरोना वायरस से
पार पाने के लिए
प्रधानमन्त्री को
असीमित अधिकार दिये हैं
अनिश्चित काल के लिए
इमरजेंसी लागू कर दी गयी है
और संसद निलम्बित
शासन आदेशों पर चलेगा
चुनाव नहीं होंगे
फ़र्ज़ी ख़बर
या अफ़वाह फैलाने पर
पाँच साल
और क्वारन्टीन छोड़ देने पर
आठ साल तक की
जेल हो सकती है
महामारी
एक और अवसर है
अत्याचारी के लिए
कोरोना काल में
कोरोना से उपजे संकट से
निपटने के लिए
राजस्व विभाग के अफ़सरों ने
रपट तैयार की :
ज़्यादा अमीर लोगों पर
टैक्स लगाया जाए
सरकार नाराज़ हुई
उसने बयान जारी किया :
‘यह अफ़सरों का निजी विचार है’
पूछा :
आप लोगों ने किसके आदेश से
यह सुझाव दिया है ?
प्रधान सचिव बोले :
गांधी जी ने कहा था
ऐसा निज़ाम हो
कि आख़िरी आदमी की आँख में
आँसू न रहे
मंत्री ने व्यंग्य किया :
आप भूल गये
कि वे भी सेवा कर रहे हैं
जो राष्ट्रीय गौरव के लिए
अपने को अमीर बना रहे हैं
हमारे नेता जी का विचार है :
अमीरों का बहुत योगदान है
लिहाज़ा आख़िरी आदमी भी
ख़ुशी-ख़ुशी
राष्ट्र के लिए बलिदान करे
दुख लिखा जाना चाहिए
कोरोना जैसी महामारी
किसी ने देखी नहीं है
इसके पहले 1918 में
स्पैनिश फ़्लू आया था
सिर्फ़ हिन्दुस्तान में
डेढ़ से दो करोड़ लोग मरे थे
महिषादल में निराला को तार मिला :
‘तुम्हारी स्त्री सख़्त बीमार है
आख़िरी मुलाक़ात के लिए आओ’
मगर जब वह ससुराल पहुँचे
मनोहरा देवी की
चिता जल चुकी थी
फिर उनके गाँव गढ़ाकोला में
बड़े भाई, भाभी, उनकी दुधमुँही बच्ची
और चाचा गुज़र गए
निराला लौटकर
डलमऊ के अवधूतटीले पर
बैठकर देखा करते :
‘गंगा जैसे लाशों का ही प्रवाह थी’
घाटों पर इतने शव
कि उन्हें फूँकने के लिए
लकड़ी कम पड़ गयी थी
बाईस साल के निराला
न कोई सरपरस्त रह गया
न हमसफ़र
ऊपर से छह बच्चों की ज़िम्मेदारी
चार भाई के दो अपने
चारों ओर अँधेरा था
दुख लिखा जाना चाहिए
समय बीतने पर वह
ढाड़स में बदल जाता है
एक टिमटिमाती हुई लौ
जिसमें हम पहचानते हैं
पूर्वजों ने कितनी यातना सही
मगर वे हारे नहीं
जीवन विषण्ण वन था
फिर भी कविता महाकाव्य थी
मोबाइल में तैरता हुआ संदेश
आजकल मोबाइल में तैरता हुआ
संदेश आता है :
‘आप सुरक्षित हैं
आसपास कोई मरीज़ नहीं है’
यह कुछ ऐसे है
जैसे नज़दीक ही
कोई दुश्मन नहीं है
जो दुश्मन है दिखता नहीं
उसका शिकार दिखता है
लिहाज़ा वही दुश्मन है
उसे हमदर्दी की ज़रूरत हो
तो बहाना बनाकर
मुकर जाएँ
मदद की उम्मीद हो
तो हाथ खींच लें
जब पूरी मनुष्यता अरक्षित है
अलग-अलग सबको सुरक्षा का
यक़ीन दिलाया जा रहा है
जिससे वे मान लें
कि वे राज्य द्वारा रक्षित हैं
और बाक़ी सब पर
संदेह कर सकें
समाज से दूरी
जीवन का नया मन्त्र है
किसी की मृत्यु हो जाए
तो शव के पास जाने में भी हिचकें
बाद में असमंजस में न पड़ें
इन मौतों के लिए
कोई ज़िम्मेदार नहीं है
न समाज न राज्य
दरअसल जो मर गये
ख़तरा उन्हीं से था