समकालीन जनमत
सिने दुनिया

‘ न्यूज़ ऑफ़ द वर्ल्ड ’ : …..तब भी उम्मीद है कि मरती नहीं

‘समकालीन जनमत ’   पर आज से फ़िरोज़ ख़ान का पाक्षिक कॉलम ‘सिने दुनिया’ शुरू हो रहा है। विश्व सिनेमा से लेकर भारतीय सिनेमा तक की कुछ चुनिन्दा फ़िल्मों को फ़िरोज़ ख़ान इस कॉलम में समकालीन जनमत के पाठकों के लिए खोलने का काम करेंगे। 
समकालीन जनमत टीम को यह विश्वास है कि जिस तरह समय-समय पर आने वाले विभिन्न कॉलमों को हमारे पाठकों का स्नेह और हौसला अफ़ज़ाई मिलती रही है, इस कॉलम को भी आपका भरपूर साहचर्य मिलेगा।) – संपा.

जंग का सबसे ज्यादा फायदा उन लोगों को होता है, जो बंदूक खरीदते हैं, जंग का बिगुल बजाते हैं और फिर अपने सुरक्षित बंकर में छिप जाते हैं। जंग का सबसे ज्यादा नुकसान उन लोगों को होता है, जिनके हाथों में बंदूक और दिमागों में झूठा राष्ट्रवाद होता है और जिनकी गोलियां एक रोज खत्म हो जाती हैं। जो खेत जोतते हैं, दफ्तर जाते हैं, नुकसान उनका होता है। एक लंबी जंग के बाद फौज का अफसर भी बेकार और बेरोजगार हो जाता है। जंग दुनिया और दिलों के खंडहर को थोड़ा और बढ़ा देती है। बिल्कुल वैसे ही, जैसे हम अमेरिकन फिल्मकार पॉल ग्रीनग्रास की फिल्म ‘न्यूज ऑफ द वर्ल्ड’ में देखते हैं।

यह फिल्म अमेरिकन उपन्यासकार और कवयित्री पाॅलेट जाइल्स (Paulette Jiles) के इसी नाम के उपन्यास पर आधारित है। जिन लोगों ने टॉम हैंक्स की ‘फॉरेस्ट गम्प’ और ‘कास्ट अवे’ देखी है, वे उनके लिए भी यह फिल्म देख सकते हैं। यह फिल्म हाल ही में नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई है।

इस फिल्म में एक भी खूबसूरत दृश्य नहीं है। न कोई हवा का झौंका है, न गेहूं के खेत, न हरी लहलहाती घास, न फलों से लदे पेड़, न मन भिगाने वाली बारिश, न नदी कोई, न समंदर, न हंसता हुआ कोई बच्चा है, न नाचती हुई कोई औरत, ठहाके मारता कोई पुरुष भी नहीं है। यह फिल्म न खत्म होने वाला शोकगीत है। जंग के बाद जमीन के कुछ टुकड़ों पर रह गए खून के धब्बे हैं, खंडहर हैं, हंसने की कोशिश कर रहे रोते हुए लोग हैं, 12 साल की लड़की के लिए हवस से भरे हुए भेड़िए हैं। हर तरफ उग आए जंगल हैं, शहरों में भी, घरों में भी। तूफान हैं और इनसे उठते गुबार हैं। अब वैसे फासिस्ट नहीं हैं, तो मजदूरों के बीच से ही, जो थोड़े कुलीन हैं, वे नए फासिस्ट हैं।

…और मजे की बात यह कि इस सबके बीच भी एक उम्मीद है, एक ख्वाब है, एक जिंदगी है। समय अमेरिकन सिविल वाॅर के खत्म हो जाने के ठीक बाद का है। अब्राहम लिंकन के ठीक बाद का समय। जब अमेरिका बदहाल हो चुका है और बीमारियां फैली हुई हैं। इस बीच फौज का एक कैप्टन जैफरसन कायले किड (टॉम हैंक्स) फिक्र-ए-रोजगार में घर से निकल जाता है। अपनी बीवी को घर में छोड़े हुए उसे चार साल हो गए हैं। एक अद्भुत विडंबना है कि एक समाज के लिए अखबार की खबरें मनोरंजन का माध्यम बनती हैं। उस समाज की कल्पना कीजिए, जहां कहानियां खत्म हो जाएं और अपराध कथाएं मनोरंजन करें।

कैप्टन किड गांव-गांव घूमकर लोगों को अखबारों में छपी खबरें सुनाता है। बाकायदा टिकट खरीदकर लोग खबरें सुनने आते हैं। लेकिन कहानी तो अभी शुरू नहीं हुई। मैं तो आपको कहानी के बीच की जो खाली जगहें रह गई थीं, अब तक वही बता रहा था। आधी कहानी वही है, जो सलमान खान की फिल्म ‘बजरंगी भाई जान’ की है।

एक गांव से समाचार सुनाकर लौट रहे कैप्टन किड को जंगल में एक करीब 12 साल की लड़की जोहाना मिलती है। डरी, सहमी, जंगली और आक्रामक लड़की। जो इंडियन टेरिटरी की है। इंडियन टेरिटरी से मतलब अमेरिका के मूल निवासी, जिनका सभ्य कहे जाने वाले अमेरिकियों से लंबा संघर्ष रहा।

अमेरिकन सिविल वॉर से करीब 30 साल पहले अमेरिका एक कानून पारित करता है ‘इंडियन रिमूवल ऐक्ट।’ यह कानून अमेरिकी मूल निवासी इंडियनों की जमीनों को उसी तरह खाली कराने का काम करता है, जिस तरह भारत में आदिवासी इलाकों में किए जाने की सतत कोशिश होती रहती है और जिसके चलते नक्सलवाद जैसा खूनी संघर्ष देखने को मिलता है। सिविल वाॅर के दौरान यह संघर्ष कुछ और बढ़ जाता है।

जब राज्य जंग थोपता है, तो उसकी कीमत राष्ट्र को चुकानी होती है, ‘राष्ट्रवादी’ हमेशा फायदे में रहते हैं। बहरहाल, कैप्टन किड उस लड़की की जुबान नहीं समझते। वह किओवा जनजाति से है और तनाॅन भाषा बोलती है। कैप्टन किड और जोहाना का यह सफर एक इंसानी सफर है, जहां पहले डर है और फिर धीरे-धीरे भरोसा उपजता है। कैप्टन किड उसे उसके गांव-घर पहुंचा देना चाहते हैं। दुनिया के किसी हिस्से में प्रिविलेज्ड होना क्या होता है और कीमत चुकाना किसे कहते हैं, इस सफर की अव्यक्त विडंबनाओं से समझा जा सकता है।

देश में कुछ राष्ट्रवादी संगठन काम कर रहे हैं, जो सिविल वाॅर के दौरान और मजबूत हो गए और वे कुछ सभ्य लोगों को बाहरी कहकर देश से खदेड़ देना चाहते हैं। मूल निवासी और बाहरी का यह दर्द अमेरिका काफी पहले सह चुका है और वह इसकी कीमत समझता है शायद। शायद यही वजह हो कि उसने अपने घर की खिड़कियों को थोड़ा ज्यादा खोल दिया। वहां दूसरे मुल्कों के नागरिक सम्मान के साथ न सिर्फ रह सके, बल्कि कमला हैरिश जैसे उदाहरण भी सामने आ रहे हैं, जहां कोई भारतीय मूल की स्त्री उप राष्ट्रपति बन जाती है।

इस कहानी की कुछ उपकथाएं हैं, जो आपको हिला देंगी। उस उपकथा को जानने के लिए यह फिल्म देख डालिए। अगर फिल्म का आखिरी हिस्सा छोड़ दें तो फिल्म में कोई इमोशनल सीन फिल्म के दौरान नहीं दिखते। लेकिन फिल्म खत्म हो जाने के बाद बार-बार हूक उठती है और लगता कि जैसे अगर जोर-जोर से न रोया गया तो सीने की बर्फ पिघलेगी नहीं।

कैप्टन, जिसने जंग में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है, अपनी पत्नी की कब्र पर खड़े होकर कहता है कि यह जंग हम पर थोपी गई थी। जंग लोगों पर हमेशा थोपी जाती है, लेकिन यह थोपी हुई न लगे इसलिए लोगों के आसपास एक गर्वानुभूति का झूठा संसार रचा जाता है। जिन्होंने कीमतें चुकाई होती हैं, कई दफा वे भी इस गर्वानुभूति में उलझे रहते हैं, हालांकि कैप्टन किड इस उलझन से बाहर हैं और अपना बचा हुआ संसार रचते हैं।

किसी राष्ट्र को एक फौजी से जो-जो उम्मीदें हो सकती हैं, वे उन्हें ब्रेक करते हैं। किड तब महानायक से लगते हैं, जब वे जनता के साथ खड़े होने का अपना पक्ष चुनते हैं। एक गांव में जब उनसे कहा जाता है कि वे खबरें सुनाते हुए उस गांव के उस ताकतवर आदमी का अखबार पढ़े, जिसमें उसकी तारीफें हैं और जिससे उसे सहानुभूति मिलनी है। बंदूक के निशाने पर होने के बावजूद किड कोयला खदानों में काम करने वाले मजदूरों और अन्याय के खिलाफ खड़े होने की कहानी सुनाते हैं। यह फ़िल्म एक शोकगीत होते हुए भी एक उम्मीद के साथ ख़त्म होती है. फ़िल्म देखने के बाद भरोसा उपजता है की दुनिया के सबसे क्रूर समय के बीच भी उम्मीद के बीज अंकुरित होते हैं.

एक आखिरी बात यह कि फिल्म को गहराई से समझना है तो फिल्म देखने से पहले अमेरिकन सिविल वॉर के इतिहास को थोड़ा-बहुत समझ लें, जान लें। अगर नहीं जानेंगे तो फिल्म में जोहाना की यात्रा को ठीक से नहीं समझ पाएंगे, जिसे कैप्टन किड घर पहुंचाना चाह रहे हैं। इसी सफर के बीच एक जगह कैप्टन खाना खाने रुकते हैं और वे लड़की को चम्मच देते हैं कि सूप इससे पियो और वह लड़की चम्मच फेंककर पूरे हाथ को सनाते हुए सूप खाती है। दरअसल अमेरिकी क्रांति के ठीक बाद अमेरिका के पहले राष्ट्रपति जॉर्ज वॉशिंगटन ने अपने सुधार कार्यक्रमों के तहत संयुक्त राज्य अमेरिका की नागरिकता देने के लिए इंडियन लोगों को सभ्य बनाए जाने की बात कही थी। फिल्म में इस लड़की का इस तरह सूप खाना उसी इतिहास की एक याद है।

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