समकालीन जनमत
कविता

मारीना त्स्वेतायेवा का तूफानी जीवन और उनकी कविताएँ

क्या आप मारीना को जानते हैं ? आइये, प्रतिभा कटियार आपको उनसे मिलवाती हैं. उनकी ज़िंदगी से और ज़िंदगी की जद्दोजहद से रूबरू करवाती हैं.
मारीना त्स्वेतायेवा रूस की एक बहुचर्चित कवियत्री हैं. अब देखिये मारीना खुद होती तो इसी बात से झगड़ा शुरू हो जाता. वे कहती हैं- “मैं रूसी कवि नहीं हूँ, मैं तो कवि हूँ… मेरे हिसाब से कोई कवि होता है,न कि फ्रेंच या रूसी कवि.”
तो चलिये मारीना के ही अनुसार बात करते हैं. उसकी बात है तो कुछ तो उसके अनुसार करनी ही होगी. मारीना त्स्वेतायेवा कवियत्री थी, जो 26 सितंबर 1892 को रूस में जन्मी. उसका जीवन जो था, क्या जीवन था, तूफानों से भरा, झंझावातों से भरा. एक मुश्किल गुजरी नहीं कि दूसरी हाजिर. लेकिन इसके बीच यदि कुछ कायम रहता है तो उसका कवि होना. सर्वाधिक यदि वह किसी को बचाने की कोशिश करती है तो अपनी कविताओं को, अपने कवि को. और दुर्गम, दुरूह, दुष्कर स्थितियों में भी उसका कवि बचा रहता है, वह जब तक जीवित रही, उसके कवि ने ही उसे जिलाए रखा. अपनी रचनाओं को बचाए रखने की चिंता के बारे में मारीना कहती हैं- “एक लेखक के लिए उसकी रचनाएँ बहुत महत्वपूर्ण होती हैं. इसलिए लाज़िम है उसे उनकी सुरक्षा की चिंता हो. उसके लिए उसकी रचनाओं की सुरक्षा अपनी सांसों को सहेजने की तरह होती है.”
जीवन में सहेजना सिर्फ रचनाओं को ही नहीं पड़ता, जीवन को भी पड़ता है. और ऐसे जीवन को तो पग-पग पर सहेजना पड़ता है, जो कष्टों, दुश्वारियों और दुरूहताओं के झंझावातों का समुच्च्य हो. मारीना का जीवन ऐसा ही था. महज 14 वर्ष की उम्र में माँ तपेदिक की चपेट में आ कर चल बसी और 21 बरस तक आते-आते पिता भी गुजर गए. अलबत्ता कविता का दामन मारीना छुटपन में ही थाम चुकी थी. माँ उसे संगीतकार बनाना चाहती थी और लगभग जबरन बनाना चाहती थी. पिता थे बौद्धिक, इतिहास के प्रोफेसर, संग्रहालय के निदेशक. मारीना पर माँ-पिता के व्यक्तित्व का असर है पर उनसे अंतरविरोध भी है. बौद्धिक पिता से वह प्रभावित होती है पर एक सामान्य पिता की तलाश में रहती है. अपनी माँ का मारीना बेहद काव्यात्मक विवरण देती है, उनके व्यक्तित्व का जीवन में उदासियों और कमियों का, उनके संगीत और कला प्रियता का. लेकिन माँ द्वारा संगीत सीखने के लिए ज़ोर डालने से वह कतई सहमत नहीं होती, सहज नहीं होती. “पिता के हो कर भी नहीं होने” और “हर वक्त अपनी तरफ से कुछ उड़ेलने को तैयार माँ” की बीच अलग-थलग पड़ी मारीना ने शब्दों में पनाह ली, शब्दों को अपना हमसफर बनाया. शब्दों के साथ उसका जो गठबंधन है, वो जीवन पर्यंत चला.
वैसे ही चला उजड़ने और बसने का सिलसिला भी. माँ की बीमारी के चलते जो वो रूस छोड़ कर निकले तो फिर जीवन भर यह भटकने का, उजड़ने का क्रम चलता ही रहा. और चलता रहा लिखने का अनवरत सफर. घनघोर विपत्तियों में होती है मारीना पर लिखना नहीं छोड़ती. कैसी विकट स्थितियों में लिखती है, जरा गौर कीजिये. एक बेटी की मृत्यु हो चुकी है. उसकी अन्त्येष्टि में नहीं जा पा रही क्यूंकि दूसरी बेटी भयानक बीमार है. और इस दुख और कशमकश को वह कागज पर शब्दों में उतारती है. 1925 में मारीना का बेटा पैदा होता है. बेटे के जन्म के बाद उसकी सारी जीवनचर्या बच्चे के इर्दगिर्द सिमट जाती है. आधा वक्त बच्चे की देखभाल में बीतने लगता है. लेकिन इसी बीच वह गीतकाव्य- “द पाइड पाइपर” भी रच देती है. उसके बारे में जीवनी में दर्ज है कि व्यंग्यात्मक शैली का यह गीतकाव्य मारीना के बेहतरीन कार्यों में से एक है और यह मारीना ने उस बीच तब-तब लिखा जब बच्चा गाड़ी में सो जाता था.
क्या ऐसे किसी व्यक्ति से कुछ रचने की मनोस्थिति में होने की उम्मीद कर सकते हैं, जो यह कातर विनती कर रहा हो कि उसके पास जो एक जोड़ी ऊनी कपड़ा है, वह फटने लगा है, इसलिए कोई उसे एक पोशाक दे दे या जो काव्य पाठ के लिए आमंत्रित किए जाने के बावजूद वहाँ न जा पाये क्यूंकि ऐन वक्त पर जूता तले से उधड़ गया और दूसरा जूता उसके पास नहीं है ! लेकिन मारीना ऐसी विकट स्थितियों के बावजूद लिखती है, काव्य, गद्य,संस्मरण, नाटक, सभी कुछ तो. कविता उसमें इस कदर रची-बसी थी कि रूसे के एक बड़े कवि वोलोशिन ने उससे कहा “तुम्हारे भीतर दस कवियों के बराबर कविता लिखने की क्षमता है.” और कवित्व कैसा ? स्विस पुलिस एक हत्याकांड के आरोप में उसके पति को गिरफ्तार करने आई. पति नहीं मिला तो पुलिस उसे ले गयी. पुलिस ने जब उससे पूछताछ की तो जवाब में “उसके मुंह से कवितायें फूट रही थी. आश्चर्य की बात है कि इस वाक़ये ने पुलिस पर मारीना का शानदार प्रभाव डाला और उन्होंने उसे ससम्मान घर जाने दिया.”
उसके जीवन का एक महत्वपूर्ण पहलू उसके प्रेम भी हैं. चर्चित, कम चर्चित, काफी लोगों के प्रेम में मारीना रही. इसमें रिल्के से लेकर पास्तरनाक तक शामिल हैं. पास्तरनाक से तो वह इस कदर प्रेम में थी कि अपने बेटे का नाम बोरिस रखना चाहती थी, जो हो न सका. लेकिन इन सब प्रेमों में ऐसा लगता है कि वह अपने-आप को ही तलाश रही होती थी, अपने से ही बात कर रही होती थी . प्यार की चाह उसमें काफी गहरी थी, जैसा उसने खुद भी लिखा, “मुझे ऐसे लोगों की बहुत जरूरत है, जो मुझे प्यार करें, जो मुझे प्यार करने दें……………..जिन्हें मेरे प्यार की जरुरत हो…….. जरूरत जैसे रोटी की होती और इस तरह की जरूरत एक पागलपन ही तो है.”
मारीना जिस दौर में थी, वह दुनिया में भी उथलपुथल का दौर था. रूस में क्रांति, हिटलर का उभार, द्वितीय विश्व युद्ध जैसी घटनाओं की हलचल ने उसके जीवन के झंझावतों को बढ़ाने में योग दिया. पॉलिटिकली करेक्ट होने की न उसे सुध थी,न परवाह. इस वजह से उसके कष्टों में कुछ और इजाफ़ा हुआ.
सुदूर रूस में जन्मी इस कवियत्री की जीवनगाथा को हम तक लेकर आईं प्रतिभा कटियार. प्रतिभा जी स्वयं कविता लिखती हैं, मुख्यधारा का मीडिया जिसे कहा जाता है, उसमें काम कर चुकी हैं और आजकल अजीम प्रेमजी फ़ाउंडेशन के साथ हैं. पहले-पहल जब इस किताब का चर्चा हुआ तो लगा कि किसी रूसी जीवनी का अनुवाद किया होगा प्रतिभा ने. लेकिन बाद में मालूम हुआ कि यह अनुवाद नहीं खालिस जीवनी है. और यह जीवनी प्रतिभा ने लिखी नहीं है, वे डूब गयी इसको लिखने में. बचपन में अपने पिता की किताबों में पायी किताब- “मारीना त्स्वेतायेवा : डायरी, कुछ खत, कुछ कविताएं”, लगता है कि एक बार मिलने के बाद उन्होंने छोड़ी ही नहीं. बल्कि बिना रूसी जाने ही, वे जा पहुंची मारीना की दुनिया में. मारीना के साथ वे ऐसी हिलमिल गयी कि समय के कालखंडों, देशों, भाषाओं की बन्दिशों को पीछे छोड़ संवाद करने लगी मारीना से. जीवनी के हर अध्याय में जो बुकमार्क नाम का हिस्सा है, वहाँ प्रतिभा कटियार मौजूद हैं, मारीना के साथ गपशप करने, दुख-सुख बांटने, चाय पीने के लिए ! इस तरह मारीना की दुनिया को वो हमारी दुनिया तक ले आईं.
संवाद प्रकाशन मेरठ से छपी इस 300 रुपये मूल्य वाली इस जीवनी के जरिये, प्रतिभा कटियार के साथ आप भी विचर आइये मारीना के तूफानी जीवन और उसके कविताओं के संसार में.

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