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किसान आन्दोलनः आठ महीने का गतिपथ और उसका भविष्य-नौ

जयप्रकाश नारायण 

किसान आंदोलन की अग्रगति और केंद्र सरकार का रवैया

हम सभी जानते हैं, कि किसी भी राष्ट्रीय, सामाजिक, आर्थिक संकट का  समाधान निकालने के लिए आर.एस.एस-नीति  भाजपा  सरकार के पास कोई सकारात्मक राजनीतिक दृष्टिकोण नहीं होता।

वह हर आंदोलन या सामाजिक समस्या के समाधान के प्रति नकारात्मक, षड्यंत्रकारी, आपराधिक नज़रिया रखती है । संघऔर भाजपा खुद को हिंदू समाज का प्रवक्ता ही नहीं, पर्याय समझते हैं और इस विचार को हजारों  झूठ, षडयंत्र और तथ्यगत पाखंड की  रचना के द्वारा आम सामाजिक सहमति में बदलने की कोशिश करते है।

ये लगातार अपने धूर्तता भरे असत्य प्रचार अभियान से सामान्य नागरिक की चेतना में स्थापित करते हैं, कि वही हिंदू हैं या हिंदुओं के प्रतिनिधि हैं ।

समग्र रूप से वह हिंदू समाज का प्रतिनिधित्व करने का दावा करते हैं। इस अवधारणा को  विकसित करते-करते वह हिंदू बहुल भारत होने के नाते स्वयं को भारत या भारत को अपने में समाहित कर लेते हैं।

हर बात भारत के नाम पर, हिंदुस्तान के नाम पर जनता के सामने रखते हैं और अपने अच्छे-बुरे हर कार्य या निर्णय को भारत के गौरव-गरिमा, सम्मान और विकास के साथ जोड़ देते हैं ।

इस तरह वह अपने को समग्र भारत का एकमात्र प्रतिनिधि होने का दावा करते हैं और भारतीय राष्ट्रवाद के एकमात्र ठेकेदार बन बैठते हैं।

इस बिंदु पर पहुंचकर वह  हर असहमति, भिन्न विचार, आस्था और सोचने-समझने और जीने की पद्धति को अपनी इसी विचार प्रक्रिया से  व्याख्यायित करते हुए,  उसे राष्ट्र-विरोधी बना देते  हैं।

पहले विपक्ष के अस्तित्व को अस्वीकार करो, उसके विचारों और तर्कों को हिंदू-विरोधी बताओ। इस कल्पित हिंदू-विरोध को हिंदुस्तान-विरोध में बदल दो।  इसके बाद असत्य और सत्य के बीच,  तथ्य और धारणा के बीच विज्ञान और कल्पना के बीच विभाजन को समाप्त कर देते हैं।

विपक्षी को या अपने से भिन्न विचार को हिंदू-विरोधी और भारत-विरोध के स्तर तक उन्नत करते हुए, इसे एक षड्यंत्र के रूप में व्याख्यायित करते हैं और धर्म, विज्ञान, संस्कृति, भाषा और सामाजिक चेतना को उसकी पूरी चिंतन प्रक्रिया से काटकर हिंदू धारणाओं, आस्थाओं, विश्वासों के दायरे में खींच लाते हैं।

जो, इससे असहमत हो, वैज्ञानिक तार्किक दृष्टि रखे उसे भारतीय सभ्यता, संस्कृति के दुश्मन के रूप में पेश करो।

यही नहीं, इसे यहां तक ले जाओ कि वह मूलतः भारत-विरोधी है, राष्ट्र-विरोधी है। अंत में उसे देशद्रोही के रूप में  चिन्हित कर समाज से अलगाव में डालो, फिर उसके खिलाफ आपराधिक षड्यंत्र की एक परियोजना तैयार करो।

सत्ता में रहते हुए लोकतंत्र की संस्थाओं को अपनी पूर्व निर्धारित परियोजनाओं को लागू करने के लिए निर्लज्जतापूर्वक प्रयोग करो। संवैधानिक लोकतांत्रिक संस्थाओं को भारी दबाव में लेते हुए अपने हाथ की कठपुतली बना दो।

जो भी नागरिक संगठन, संस्थाएं और चिंतन प्रणालियां इनके विपरीत जाती हों,  उनके खिलाफ इन संस्थाओं को मोड़ दो।

इस तरह षड्यंत्र, झूठ, सांप्रदायिक विभाजन, मिथ्या प्रचार, टकराव, हमला,  दमन, भिन्न मतवालों का दानवीकरण और अंत में राष्ट्रद्रोही घोषित कर, उसे वध करने की स्थिति तक ले जाना,  इनके कार्य नीति का बुनियादी आधार है।

यह बात अगर हम समझ लें, तो किसान आंदोलन के प्रति मोदी सरकार के पूरे व्यवहार और नीति को समझने में हमें आसानी होगी।

जब किसान संगठनों ने तीन कृषि कानूनों के खिलाफ अपना विरोध और असहमति दर्ज करना शुरू किया तो प्रारंभ से ही केंद्र सरकार और उसके जितने भी कार्यकारी अंग हैं, सब ने किसानों के द्वारा कानून के विरोध को लेकर नकारात्मक प्रचार अभियान चलाया।

स्वयं प्रधानमंत्री ने लाल किले  से राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा, कि  70 वर्षों में पहली बार किसानों को आजाद किया है ।

किसानों की आजादी को कुछ बिचौलिए और दलाल  लोग स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। स्पष्ट है, कि प्रधानमंत्री ने किसानों के संगठनों को यह संकेत दे दिया था, कि उनका यह कदम बहुत सोच-समझकर उठाया गया है।

इसलिए, इन तीनों कानूनों के सवाल पर कोई पुनर्विचार संभव नहीं है। पंजाब के किसानों ने जब इस कानून के विरोध में सितंबर से आंदोलन शुरू किया, तो सरकार और उसके नियंत्रित मीडिया संस्थानों ने चुप रहने की नीति अपनायी।

आगे चलकर आंदोलन  के खिलाफ एक नकारात्मक प्रचार अभियान चलाया गया। जो इस प्रकार था- पहला, बिचौलिया बनाम किसान , दूसरा, बड़े किसानों का विरोध ।

तीसरा, किसानों को गुमराह किया जा रहा है। चौथा, किसान हितैषी कानूनों को कुछ विपक्षी पार्टियां, जहां उनकी सरकारें हैं, गलत ढंग से पेश कर किसानों को भड़का रही हैं ।

पांचवां , किसानों के हित में सरकार की नियत साफ और पवित्र है। छठवां, किसानों के आय को दोगुना करने, उन्हें खुशहाल बनाने के लिए सरकार कानून ले आयी है। कुछ  स्वार्थी लोग किसानों के लिए लाये गये कल्याणकारी और विकासमूलक कानूनों  का अपने स्वार्थों में विरोध कर रहे हैं।

इस प्रकार किसान आंदोलन विरोधी एक माहौल निर्मित करने की कोशिश की गयी। आगे जब किसान आंदोलनकारी 26 नवंबर को दिल्ली के लिए अपनी-अपनी जगहों से कूच किये, तो मोदी सरकार की इस संपूर्ण कार्य नीति को अमल में लाते हुए क्रमशः देखा गया।
(अगली कड़ी में जारी)

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