लॉकाडाउन का एक तरह से खात्मा हो गया है. दुकान, बाज़ार, संस्थान, प्रतिष्ठान सब खुल गए हैं. मंदिर- मस्जिद भी खुल गए हैं. गंगा समेत तमाम नदियों के घाटों पर सामूहिक नहावन के साथ साथ पूजा आरती में भी लोग जुटने लगे हैं. सार्वजनिक और निजी यातायात के साधन खुलने के बाद लोग न तो अब फिजिकल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहे हैं, न ही मास्क लगाने जैसे ज़रूरी एहतियात का पालन. हाथ धोना तो ख़ैर.
धड़ाधड़ शादी-ब्याह, तेरही-बरखी, बर्थडे पार्टी आयोजित होने लगे हैं. गांव कस्बों के समाज को कोरोना नहीं बदल पाया है. किसी के यहां शादी है या मरनी-करनी है तो समाजिकता के लिहाज करके जाना ही जाना है.
इस तरह के आयोजनों में जाने कहां कहां से नात-रिश्तेदार, दोस्त यार सब जुट रहे हैं. कोई न भी जाना चाहे तो लोग धमकी दे रहे हैं कि- “ठीक अहै तुहूँ आपन बिटिया बेटवा बियहबा। बस एतना जाने रह्या.” जो लोग न भी जाना चाहें उनके पास लॉकडाउन का बहाना भी नहीं रहा.
माने जनता के लिए सब कुछ नॉर्मल हो चुका है. लेकिन समस्या ये है कि अब लोग शादी ब्याह, मरनी करनी में शामिल होकर आने के बाद न तो खुद को आइसोलेट कर रहे हैं, न क्वारंटीन. कौन कहां से आ रहा है, कहां जा रहा है, अब राज्य सरकार और पुलिस प्रशासन को भी इससे बहुत मतलब नहीं रह गया है. कई राज्यों में क्वारंटाइन सेंटर तक बंद कर दिए गए हैं.
जबकि राजधानी दिल्ली जैसे प्रदेश में जहां सरकारी और निजी अस्पतालों का जाल सा बिछा हुआ है वहां कोरोना विस्फोट के बाद स्थिति इतनी दयनीय हो गई है कि दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने दिल्ली से बाहर के कोविड-19 मरीजों को दिल्ली सरकार के अधीनस्थ अस्पतालों में इलाज देने से मना कर दिया था.
ऐसे में यदि कोरोना का विस्फोट यूपी और बिहार जैसे पिछड़े राज्यों में हुआ जहां सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था पहले से लचर है तो वहां स्थिति क्या होगी.
सवाल उठता है कि जब देश में कोविड-19 संक्रमितों की संख्या 3 लाख के पार चली गई है और देश कोरोना संक्रमितों की संख्या के लिहाज से चौथे स्थान पर आ गया है तो इस मुल्क़ के लोग और सरकार इतने बेपरवाह कैसे हो सकते हैं.
दरअसल जिस तरह के एहतियात की ज़रूरत है वह एक सिरे से गायब हो गई है. कोरोना संक्रमितों की बढ़ती रफ्तार के साथ ही सरकार ने भी अपनी जिम्मेदारियों से मुँह मोड़ लिया है. सरकार की प्राथमिकता बिहार और बंगाल में चुनाव अभियान शुरु करना है. राजस्थान में कांग्रेस सरकार को गिराने का भी खेल इस समय चल रहा है.
दो दिन पहले ही राजस्थान कांग्रेस के मुख्य सचेतक और विधायक महेश जोशी ने महानिदेशक (भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो) को पत्र लिखा है. पत्र में उन्होंने लिखा है कि- “मुझे विश्वसनीय स्रोतों के माध्यम से पता चला है कि हमारे विधायकों और निर्दलीय विधायकों जो सरकार का समर्थन करते हैं को प्रलोभन देने की कोशिश की जा रही है, ताकि सरकार को अस्थिर किया जा सके।”
पीएम केयर्स फंड पर सरकार कुंडली मारकर बैठी है और हिसाब तक देने को राजी नहीं है कि फंड में कितना पैसा आया और कितना ख़र्च हुआ. विवरण सार्वजनिक करने से मना करने के बाद अब प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा फंड में अनुदान को कर मुक्त करने और इसे सीएसआर खर्च मानने के संबंध में दस्तावेजों का खुलासा करने से भी मना कर दिया गया है. वहीं दूसरी तरफ लोग कोरोना से संक्रमित हो रहे हैं, अस्पताल में अब जगह नहीं बची है, लोग टेस्ट करना के लिए मारे-मारे फिर रहे हैं और सरकार डिजिटल रैली करके चुनाव अभियान में लगी हुई है.
तो फिर से वापिस मुद्दे पर आते हैं. कोरोना बढ़ने का शोर कहीं नहीं है. अब न टीवी में, न अख़बार में. हो भी कैसे बढ़ते कोरोना के लिए आखिर अब किसे जिम्मेदार ठहराया जाए. कोई मौलाना साद जैसा बलि का बकरा भी तो नहीं मिला इधर.
अतः सरकारें अब ‘नो टेस्ट, नो कोरोना’ के सिद्धांत का अनुसरण करके चल रही हैं. उत्तर प्रदेश में पूर्व आईएसएस सूर्य प्रताप सिंह ने एक ट्वीट करके यूपी सरकार के फरेब को उजागर कर दिया. उन्होंने ट्वीट में लिखा- “ सीएम योगी की टीम-11 की मीटिंग के बाद क्या मुख्य सचिव ने ज़्यादा कोरोना टेस्ट करने वाले डीएम को हड़काया कि क्यों इतना तेजी पकड़े हो क्या ईनाम पाना है, जो टेस्ट, टेस्ट चिल्ला रहे हो, क्या यूपी के मुख्य सचिव स्थिति स्पष्ट करेंगे? यूपी की स्ट्रेटजी, नो टेस्ट नो कोरोना।”
योगी आदित्यनाथ जी कोरोना केसों की संख्या छिपाने से ना प्रदेश का भला होगा और ना ही सरकार का। कोरोना की जाँच करने की अनुमति सरकार से लेने की बाध्यता, मेरे सवाल पूछने पर मुक़दमा, ये सभी मेरे मौलिक अधिकारों का हनन है जो संविधान मुझे देता है। मेरे कुछ सवाल हैं जो मैं पूछना चाहता हूँ। pic.twitter.com/qcppHpyzMz
— Surya Pratap Singh (@suryapsinghias) June 12, 2020
हालांकि इसके बाद ही गुरुवार को हजरतगंज कोतवाली में सचिवालय चौकी प्रभारी संतोष कुमार की तहरीर पर उनके खिलाफ़ ‘महामारी अधिनियम व दुष्प्रचार करने’ की धारा के तहत एफआईआर दर्ज करवाया गया है.
इससे पहले केंद्र सरकार ने रिकवरी रेट बढ़ाने के लिए डिस्चार्ज के नियमों में भारी फेरबदल किया. आठ मई को सरकार ने फैसला किया कि अब जिनमें हल्के बुखार या मध्यम लक्षण हैं, उन्हें लक्षणों का शुरु होना दिखाई देने के 10 दिन बाद डिस्चार्ज कर दिया जाएगा और उन्हें आरटी-पीसीआर टेस्ट के बिना ही रिकवर्ड मान लिया जाएगा, बस उन्हें बुखार न हो. दरअसल सरकार ने पहले ही मान रखा ही 85 प्रतिशत केस जिनमें हल्के या मध्यम लक्षण दिखें है उन्हें सीरियसली लेने की ज़रूरत नहीं है. इसी नीति के तहत रिकवरी रेट में फेरबदल किया गया. और इसका व्यापक असर भी पड़ा है आँकड़ों को बदलने में.
स्वास्थ्य मंत्रालय की वेबसाइट पर दर्ज आँकड़ों के मुताबिक कोविड-19 रिकवरी रेट 49.47% हो गई है। 12 जून तक मंत्रालय की वेबसाइट पर कोविड-19 के सक्रिय केसों की संख्या 1,41,842 है जबकि रिकवर केसों की संख्या 1,47,194 है। 8498 लोगो की अब तक कोविड-19 से मौत हुई है।
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Recovery Rate increases to 49.47% as a total of 1,47,194 individuals have been cured of #COVID19https://t.co/oVNDmPo8E6@PMOIndia @drharshvardhan @AshwiniKChoubey @PIB_India @COVIDNewsByMIB @CovidIndiaSeva @DDNewslive @airnewsalerts
— Ministry of Health (@MoHFW_INDIA) June 12, 2020
वहीं अन्य देशों की तुलना में भारत में कोविड-19 से होने वाली मृत्युदर अपेक्षाकृत कम है। तो क्या कम मृत्युदर के चलते सरकार ने कोविड-19 को गंभीरता से लेना छोड़ दिया है.