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विदेशों में फँसे लोगों को एयरलिफ्ट किया लेकिन देश के प्रवासी मजदूरों के लिए कोई व्यवस्था नहीं

तीन दिन से इंदिरापुरम, उत्तराखंड में फँसे सैकड़ों मजदूर रोते हुए कहते हैं हम दो दिन से भूखे हैं हमारे पास न खाने को कोई सामान है, न बाहर से खरीदकर खाने के पैसे, न ही कोई साधन है कि हम  बिहार स्थित अपने गांव लौट सकें। इन मजदूरों की सहायत के लिए उत्तराखंड सरकार को कल रात से ही कॉल किया गया पर सुबह तक कोई रिप्लाई नहीं आया। इनका वीडियो सोशल मीडिया पर डालते ही वायरल हो गया लेकिन बिहार सरकार और उत्तराखंड सरकार तक फिर भी नहीं पहुँचा।

एक दूसरा वीडियो उत्तर प्रदेश के बदायूँ का है। लॉकडाउन के बाद रहने खाने का संकट पैदा होने पर ग्वालियर मध्यप्रदेश से उत्तरप्रदेश स्थित अपने गाँव के लिए निकले मजदूरों को बदायूँ के पास यूपी पुलिस ने पकड़ा और उन्हें मारने पीटने के बाद सड़क पर ही कान पकड़कर उकडूँ-मुकड़ूँ बैठाकर रेंगवाया। मजदूर जब पुलिस द्वारा मुकर्रर की गई सजा भुगतते समय उनकी पीठ पर सामान से भरा बैग भी लदा हुआ था। 

वीडियो सामने आने के बाद बदायूँ के पुलिस अधिकारी ने खेद भी जाताया है।

ऐसी सैंकड़ों तस्वीरें फिलहाल सोशल मीडिया में तैर रही हैं जिनमें सैकड़ों मजदूर छोटे छोटे बच्चों और बुजर्गों के साथ सिर पर अपना सामान लादे सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा पैदल तय करने को विवश हैं ऊपर से रास्ते में मिले वाले पुलिसकर्मियों की बर्बरता का खतरा है सो अलग।

एक 90 वर्षीय बूढ़ी स्त्री पैदल ही दिल्ली से 400 दूर राजस्थान स्थित अपने गाँव के लिए लाठी टेकते चल पड़ी है। पता नहीं वो अपने गाँव तक पहुँचेगी या रास्ते में ही काल कवलित हो जाएगी पता नहीं।

जयपुर राजस्थान में काम करने वाले मजदूर बिहार सुपौल के लिए सड़क मार्ग से दूरी 1205 किलोमीटर दूरी तय करने में लगे हैं, प्रतिदिन 120 किलोमीटर पैदल चलने पर इन्हें ये दूरी तय करने में 10 दिन लग जाएंगे अगर बीच में पुलिस की यातना से बच गए तो।

ऐसे ही हजारों मजदूर जगह जगह फँसे हुए हैं। विलासपुर में पश्चिम बंगाल, यूपी, बिहार, उड़ीसा आदि कई राज्यों के सैकड़ों मजदूर फँसे हुए हैं।

प्रवासी मजदूर कंपनी कारखाने में ही रहते हैं लॉकडाउन के बाद उनसे जाने को कह दिया गया

अधिकांशतः यूपी, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा जैसे गरीब राज्यों के मजदूर जम्मू, राजस्थान हरियाणा, दिल्ली, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में स्थित कंपनी, कारखानों में रोजी रोटी की तलाश में हजारों किलोमीटर आते हैं। यहां आने के बाद अधिकांश कारखाने और कंपनी मालिक मजदूरों को ठहरने के लिए कंपनी या कारखाने में ही व्यवस्था करके रखते हैं। ताकि वो मजदूर ज़्यादा घंटे तक कंपनी कारखाने के लिए काम कर सकें। और इनसे 12-14 घंटे काम भी लिया जाता है।

लेकिन 22 मार्च को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा कोविड-19 महामारी के मद्देनज़र 21 दिन के लिए ऑल इंडिया लॉकडाऊन की घोषणा के बाद और इस लॉकडाउन की समय सीमा और बढ़ाए जाने की प्रबल संभावना के चलते कंपनी ने मजदूरों को टाटा बॉय बॉय कह दिया। आखिर जब उत्पादन ही नहीं होगा तो कंपनी कारखाना मालिक मजदूरें के रहने खाने का खर्च क्यों वहन करें। ऊपर से कंपनी कारखाना आवास में मजदूरों के रहने से कंपनी कारखाना मालिक के खिलाफ़ भी कार्रवाई का डर रहता सो अलग।  

उन्नाव की एक फैक्टरी में काम करने वाले अवधेश कहते हैं- “पीएम मोदी ने मजदूरों से अपील की है कि वे घर ना जाने की बजाय, जहां पर वहीं रहें पूछने पर अवधेश बताते हैं- – “मैं भी यह नहीं करना चाहता, लेकिन कोई विकल्प नहीं है। मैं उन्नाव की एक स्टील फैब्रिकेसन कंपनी में काम करता हूं। मैं वहीं रुका हुआ था, जहां उन्होंने रखा था। 23 फरवरी की रात मैनेजमेंट ने हमें खाली करने के लिए कह दिया। उन्होंने हमसे कहा कि हम यहां नहीं रह सकते। ऐसे में हमारे पास घर जाने के अलावा क्या विकल्प है। परिवहन की सुविधा नहीं है। इसलिए हम कुछ एक ही गांव के रहने वाले हैं, जिन्होंने तय किया कि हम पैदल ही गांव चलेंगे।”

लॉकडाउन से पहले प्रधानमंत्री ने लाखों प्रवासी मजदूरों के बार में क्यों नहीं सोचा

24 मार्च को रात आठ बजे प्रधानमंत्री मोदी टीवी स्क्रीन पर प्रकट होते हैं और कहते आद आर 12 बजे के बाद से 21 दिनों तक ऑलइंडिया लॉकडाउन रहेगा। यानि प्रधानमंत्री की घोषणा और लॉकडाउन लागू होने के बीच सिर्फ रात के 4 घंटे की मियाद थी। महज 4 घंटे में प्रवासी मजदूर कहाँ जाएं। वो भी तब जब ट्रेन और बस सब पहले से ही बंद थीं। इससे यही साबित होता है कि मौजूदा सरकार मजदूर मेहनतकश वर्ग के प्रति बेहद लापरवाह और असंवेदनशील है। यदि सरकार को गरीब मेहनतकश वर्ग की थोड़ी भी फिक्र होती तो वो लॉकडाऊन की घोषणा करने से पहले मजदूरों को अपने गांव घर लौटने के लिए एक-दो दिन का समय देती। या फिर लॉकडाऊन की घोषणा के बाद उन कंपनियों और कारखानों को आदेश देती के मजदूरों के रहने खाने का इंतेजाम उनके जिम्मे है। या पिर लॉकडाउन के बाद मजदूरों को उनके घर छोड़ने के लिए विशेष अभियान चलाती।

गुजरात के भिमंडी और सूकत में बहुस से प्रवासी मजदूर रहते हैं। भिमंडी में एक साड़ी कंपनी में रँगाई का काम करने वाले रमेश कहते हैं- “यही सरकार ने 22 मार्च को जब एक दिन के लिए जनता कर्फ्यू लगाया था तभी बता देते तो हम सब अपने गाँव घर परिवार के पास लौट जाते। हम अब यहां महीने- दो महीने बैठकर कैसे गुजारा करेंगे। कंपनी मालिक ने कंपनी बंद कर दिया है। हाथ में ज़्यादा पैसे नहीं हैं। इतना मिलता ही नहीं था कि घर भेजने के बाद कुछ बचे। मॉर्च की पगार तो गई अब। हम मजदूर शहर नगर में बैठकर नहीं खा सकते हमारे पास इतनी बचत पूँजी नहीं होती। समझ में नहीं आ रहा कि हम क्या करें कहाँ जाएं। कुछ लोग कह रहे हैं 14 अप्रैल के बाद सरकार लॉकडाउन की मियाद को दो-तीन महीने के लिए और बढ़ा सकती है। वॉट्सअप पर मेसेज मिलत है हम देखते हैं बाहर सड़कों पर भी पुलिस मजदूरों को पीट रही है।”

विदेशों में फँसे लोगों को एयरलिफ्ट किया जा सकता है देश के दूसरे राज्यों में फँसे प्रवासी मजदूरों को क्यों नहीं

कोविड-19 महामारी के चलते मोदी सरकार ने कई देशों में फँसे भारतीयों को एयरलिफ्ट करके विदेशों से निकालकर उन्हें उनके घर पहुँचाया है। चीन ईरान, इटली से तो कई खेप में एयरलिफ्ट करके इंडिया लाया गया। यदि ये सरकार विदेश में फंसे लोगो को एयरलिफ्ट कर सकती है तो ये सरकार देश की ही अलग अलग राज्यों में फँसे प्रवासी मजदूरों को विशेष साधनों की व्यवस्था करके उन्हें उनके घर पहुँचाने की व्यवस्था क्यों नहीं करती।

दरअसल इस सवाल को सरकार और व्यावस्था के क्लास-कैरेक्टर (वर्ग-चरित्र) को जाने बिना नहीं समझा जा सकता। सरकार ने जिन लोगो को कोविड-19 संक्रमित देशों से एयरलिफ्ट के जरिए निकाला है वो सत्ताधारी वर्ग के लोग थे। पूँजीवादी वर्ग व्यवस्था में वो वर्ग बुर्जुआ वर्ग कहलाता है। जबकि देश के भीतर तमाम राज्यों में फँसे प्रवासी मजदूर सत्ताधारी वर्ग के नहीं हैं। मनुवादी व्यवस्था में भी वो निचले पायदान पर हैं और शोषणकारी पूँजीवादी व्यवस्था में भी वो मजदूर वर्ग से संबंध रखते हैं जिनके शोषण उत्पीड़न पर ही पूरी व्यवस्था टिकी है। पूँजावादी, फासीवादी व्यवस्था में।  

अगर याद हो तो इसी मोदी योगी सरकार 2018 में कांवड़ियों पर पुष्पवर्षा के लिए हेलीकॉप्टर मुहैया करवाया था लेकिन पुलवामा में अर्धसैनिकों को वहां से एयरलिफ्ट करने के लिए हेलीकॉप्टर नहीं मुहैया करवाया गया।

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