जगन्नाथ
केंद्र सरकर द्वारा हालिया बनाये गए तीन कानूनों – किसान उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) क़ानून-2020, कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन समझौता और कृषि सेवा पर करार क़ानून-2020, आवश्यक वस्तु क़ानून (संशोधन)-2020 – के ख़िलाफ़ देशभर के किसान, विशेष कर हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश, आन्दोलन कर रहे हैं.
लाखों की संख्या में किसान दिल्ली से आसपास के राज्यों से सटे बॉर्डरों पर महीनों तक आन्दोलन करने की पूरी व्यवस्था के साथ डटे हुए हैं. इसी बॉर्डर में से एक- सिंघु बॉर्डर- किसान आन्दोलन का हॉटस्पॉट बन गया है.
लोग इसकी तुलना सीएए-एनआरसी के खिलाफ़ आन्दोलन का केंद्र बिंदु बने ‘शाहीनबाग’ से कर रहे हैं. तो किसान उधर टिकरी बॉर्डर और यूपी-दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर पर भी डटे हुए हैं. इससे पहले पंजाब में दो महीनों से अधिक समय से प्रदर्शन कर रहे किसानों ने रेलवे आवाजाही को भी बाधित किया था.
इसके बावजूद भी केंद्र सरकार के किसी मंत्री और न इसके किसी प्रतिनिधि ने किसानों से बात की. इसके बाद ही किसानों के सैकड़ों संगठनों ने 26-27 नवम्बर को राष्ट्रव्यापी हड़ताल सहित ‘दिल्ली चलो’ का नारा दिया था.
पंजाब और हरियाणा से जब किसान दिल्ली के तरफ कूच कर रहे थे, तो पहले हरियाणा सरकार ने किसानों को रोकने की कोशिश की, उसके बाद केंद्र सरकार की दिल्ली पुलिस ने सिंघु बॉर्डर को कांटीले तार का छावनी बना दिया.
आंसू गैस गोले छोड़े गये, वाटर कैनन से पानी की बौछार की गई. पंजाब से चले किसान जत्थों को हरियाणा-पंजाब के शम्भू बॉर्डर पर रोकने की कोशिश में न सिर्फ सड़क पर गड्ढे खोदे गये, बल्कि शिपिंग कंटेनर, सीमेंट से बने पिलर आदि को भी बीच सड़क रखा गया.
आखिर में केंद्र सरकार किसान को दिल्ली कूच करने से रोक नहीं पाई, तो इनके भोपुओं ने आन्दोलन के खिलाफ़ अफ़वाहें भी तेज़ कर दी.
वैसे आप गौर करेंगे, तो पाएंगे कि भाजपा की सरकार बनने के बाद ही सरकार के हर विरोधी आवाज़ को कुचलने की कोशिश की जाती रही हैं. छात्रों के आवाज़ को जहाँ ‘देशद्रोही’ करार दे दिया जाता हैं, अल्पसंख्यकों को ‘आतंकवाद’, तो आदिवासी की आवाज़ को नक्सल कह कह कर दबा दिया जाता है. शिक्षकों, एक्टिविस्टों, मानवाधिकार कार्यकर्त्ताओं, वकीलों को ‘अर्बन नक्सल’ कह कर उनके आवाज़ कुचल दी जा रही है.
समाज में इन सबों के खिलाफ़ एक नया परसेप्शन बना दिया जाता रहा है. किसानों का आन्दोलन भी इससे कैसे बच सकता था. आखिर यह आवाज़ भी तो सरकारी नीतियों के खिलाफ़ ही है. इसीलिए किसान आन्दोलन पर विपक्ष द्वारा मिसलीडिंग का आरोप लगाया गया.
इंडिया टीवी के रजत शर्मा ने अपने वेबसाइट पर एक लेख लिखा है. जिसका शीर्षक है- “कैसे नेता और बिचौलिए किसानों को कर रहे हैं गुमराह”. वह अपने लेख में कांग्रेस के कुछ नेताओं का नाम लेकर लिखता है कि ये लोग किसानों के गुस्से को भड़काने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. जबकि सच्चाई यह हैं कि कांग्रेस का एक भी बड़ा नेता अब तक किसानों से मिला नहीं हैं और न ही आन्दोलन में गया है.
इसके अलावा, सरकार के भोपूं चैनलों यथा- ज़ी न्यूज़, आज तक, न्यूज़ नेशन, सीएनएन न्यूज़18, रिपब्लिक टीवी, टीवी-9 आदि ने बाक़ायदा शो चलाया कि किसानों को विपक्ष गुमराह कर रही हैं. इन चैनलों के शो का नाम कुछ इस प्रकार होते थे/हैं- ‘ किसान आदोलन के पीछे कौन हैं!’, ‘हु इज़ मिसलीडिंग फार्मर्स?’, ‘क्या विपक्ष किसानों को मिसलीड करने की कोशिश कर रहा हैं ?’ ‘ किसान को कौन भड़का रहा हैं?’, ‘किसान और सरकार के बीच किसकी साज़िश?’ आदि-आदि..
लेकिन जब विपक्ष की साज़िश ढूंढने में सफलता नहीं मिली फिर इसे खालिस्तान परस्त बता दिया गया. हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर सहित कई राजनेताओं ने किसानों के आंदोलन में खालिस्तानी अलगाववादियों की उपस्थिति का आरोप लगाया है. सरकार के सबसे बड़ी भोपूं चैनल ‘ज़ी न्यूज़’ के डीएनए शो में सुधीर चौधरी भी कहता है कि ‘किसान आन्दोलन में खालिस्तानियों की एंट्री हो चुकी हैं’ और किसान की इस आन्दोलन को खालिस्तानी और राजनीतिक पार्टियों ने हाईजैक कर लिया है.
चौधरी यहीं तक नहीं रुकता. पुरे किसान आन्दोलन को उग्र आन्दोलन तक बता देता हैं. प्रदर्शनकरिओं के हाथ में झंडे को वह डंडा बता कहता है कि पुलिस पर लाठियां तानी गई. प्रिंट मीडिया में दैनिक जागरण ने सरकार के प्रति वफादारी साबित करते हुए दो कदम और आगे बढ़ गई. एक ख़बर के शीर्षक में इसने यहाँ तक लिख डाला कि किसानों के जत्थे में पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगे. जबकि ख़बर के बीच में वह कहता है कि वह इस ख़बर की पुष्टि नहीं करता है. इसी तरह भाजपा के आईटी सेल ने भी सोशल मीडिया पर किसान आन्दोलन के खिलाफ़ दुष्प्रचार फैलाने की पूरी कोशिश की.
आईटी सेल के वर्कर्स द्वारा सोशल मीडिया पर एक विडियो वायरल किया जा रहा हैं. जिसमें कथित तौर पर खालिस्तान-पाकिस्तान के समर्थन में और पीएम मोदी के विरोध में नारे लग रहे हैं. इस वीडियो को सोशल मीडिया पर इस दावे के साथ वायरल किया जा रहा है कि यह किसानों के आन्दोलन का एक दृश्य है.
जबकि वीडियो यूनाइटेड किंगडम में ICC विश्व कप 2019 का है. इस विडियो का फैक्ट चेक इंडिया टुडे ने किया है.
केंद्र सरकार के सभी वफ़ादार चैनलों और भाजपा के आईटीसेल के कार्यकर्त्ताओं ने किसान आन्दोलन के खिलाफ़ न सिर्फ अफ़वाह उड़ाने की कोशिश की हैं, बल्कि एक अवधारणा (परसेप्शन) भी बनाने की कोशिश कर रही हैं- जो किसान आन्दोलन के खिलाफ़ और केंद्र सरकार पक्ष में है.
हालाँकि जिस प्रकार अब अलग-अलग राज्यों में प्रदर्शन होने शुरू हुई हैं और किसानों के जत्था दिल्ली के तरफ कूच कर रहे हैं, उससे सरकरी भोपूं चैनलों की साज़िशें नाकामयाब होते दिख रही है.
(जगन्नाथ दिल्ली विश्वविद्यालय में शोधार्थी हैं)