समकालीन जनमत
कविता

भारत की कविताएँ कोमलता को कुचल देने वाली तानाशाही कठोरता का प्रतिकार हैं

 विपिन चौधरी


अपना रचनात्मक स्पेस अर्जित करने के बाद हर युवा रचनाकार पहले अपनी देखी, समझी हुई उस सामाजिक समझ को पुख्ता करता है जिससे वह अपने आज तक के जीवन में रूबरू हुआ है. फिर धीरे-धीरे उस स्पेस में वह उन चीजों को शामिल करता है जिसकी उसने जरूरत महसूस की है. इसके बाद वह अपनी समझ से नैतिकता के बीज उस ज़मीन पर छिड़कता है.इस सारी प्रक्रिया में उस युवा कवि के भीतर समाहित ठसक, जोश और समझबूझ भी उसका हौसला बढ़ाते हैं.

युवा कवि भारत आर्य इसी रीत को अपनाते हुए अपनी कविताओं में कोमल चीज़ों के नज़दीक आने वाली हर कठोरता को दूर कर देना चाहते हैं.
जैसे हर पीढ़ी के पास प्रेम की अपनी समझ होती है जिसे वह अपनी संवेदना के ज़रिए ग्रहण करता है और वह अपने समय की हर विभीषिका से अपने प्रेम से बचाए रखता है.

युवा पीढ़ी के इस कवि की प्रेम कविताएं बताती है कि वे जीवन की हर कठिनाई के समांतर प्रेम की अनुभूतियों को रखते हुए जीवन को सलीके से जीने लायक बनाने के हिमायती हैं.

उनकी कविताएं प्रेम की ओट में जीवन की हर बुराइयों से बचा ले जाने की बात करती हैं. उनके नज़दीक प्रेम एक ऐसी पारदर्शी आड़ है जिसमें सुस्ताते हुए वे जीवन के बहुरंगी फूलों का उगना देखते हैं.

वह समाज जिसने प्रेमियों को सदा ही परेशान किया है और उन्हें अलग करने के बाद उनकी स्मृति-चिन्ह पर रोने वाले समाज से प्रश्न करती है भारत की यह कविता.

प्रेमिकाओं से बिछुड़े हुए प्रेमी,
आखिर कहाँ गये?
इस सवाल के जेहन में उतरते ही,
चमकने लगती है ताजमहल की मीनारें,
खनकने लगती है जगजीत सिंह की आवाज,
और दूर कहीं समुद्र के नीचे
तैरने लगती हैं युगंधर की द्वारिका,
मछलियों की तरह मथुरा की खोज में
लेकिन फिर भी इन अभिशापित प्रेमियों का पता नही मिलता,
तब मैं इतिहास खंगालता हूँ (प्रेमिकाओं से बिछुड़े प्रेमी)

कभी उनकी कविताओं में जलती मशाल लेकर आगे चाहने वाली क्रांतिवाहक ऊर्जावान युवा शक्ति दिखाई देती है. वर्तमान सामाजिक, आर्थिक स्थिति और राजनीति को लेकर आक्रोश की भावना लेकर आर्य भारत की कविताएँ क्षेत्रियता से निकल कर पूरे विश्व का भ्रमण करती हैं.

वे महाभारत काल को खंगालते हैं, वर्तमान के विध्वंस पर भी नज़र डालते हैं. इसी क्रम में इतिहास और वर्तमान दोनों कटघरे में पाए जाते हैं. इतिहास, जहां किसी भी वास्तविक हीरो को न्याय नहीं मिला. परिणामस्वरूप छदम नायक ही हमें अपने इतिहास से मिले. कुछ ऐसे ही प्रश्न ‘बिलकिस बानो’ कविता में कवि करता है.

तुम्हें इतिहास में किस तरह लिखा जाएगा बिलकिस बानो?
ठीक उसी तरह जैसे वीरांगनाएं लिखी गई?
खून से लथपथ उनकी तलवारों का लोहा लिखा गया?
पसीने से लथपथ उनके कंधे, उनकी छातियां लिखी गई?

जीवन के रोज़मर्रा के संघर्ष किस तरह से इंसान को खत्म करते जाते हैं एक संवेदनशील कवि के तौर पर कवि इसी चिंता के जद में है.

उनकी कविताएँ बताती हैं कि किसी गरीब की देह संसार की कठोरता से जब रगड़ खाती है तो जीवन कितना तनावग्रस्त हो जाता है. आम आदमी के लिए रोटी कपड़ा और मकान के लिए संघर्ष में प्रेम जैसी कोमल भावनाएं देहरी से बाहर हो जाती हैं. यही नहीं पैसों के बूते आगे बढ्ने वाली सारी दुनियादारी एक ही मार्ग पर चलती दिखती है जहाँ कठोरता से जीवन-व्यवहार के सारे कामकाज होते हैं.

‘जिंदगी:वर्ग सेंटीमीटर” में शीर्षक से लिखी गई कविता में कवि इस दैनिक संघर्ष का सटीक वर्णन करता है.

हड्डियों का कैल्शियम
चूना बन गया है
शरीर का खून कत्था
लगता है यह निचाट अकेलापन
मुझे पान बनाएगा
चबाएगा
और थूक देगा

भारत की कविताओं में ऐसी दृढ़ता देखने को मिलती है जिसके बूते वे दुनिया की तमाम विडंबनाओं का गला पकड़ कर उन्हें सीधा कर देना चाहते हैं. कोमलता को कुचल देने वाली तानाशाही कठोरता और उसके मंसूबों से बनी दुनिया को खारिज़ कर एक नई दुनिया बनाने का सपना देखने वाले इस आशावान कवि से यह उम्मीद जरूर बनती है कि वे अपने आग और पानी वाले तेवर को कविता में पिरोते हुए दूर तक जाएंगे और कविता के बढ़िया कीमियागर साबित होंगे.

 

भारत आर्य की कविताएँ

 

1. बिलकिस बानो

तुम्हे इतिहास में किस तरह लिखा जाएगा बिलकिस बानो?
ठीक उसी तरह जैसे वीरांगनाएं लिखी गई?
खून से लथपथ उनकी तलवारों का लोहा लिखा गया?
पसीने से लथपथ उनके कंधे, उनकी छातियां लिखी गई?

भयानक हिनहिनाते हुए युद्धक्षेत्र में तुम्हारे चीत्कार का चित्र
नही उकेरा जाना चाहिए इतिहास में
मुझे तो ऐसा ही लगता है

तुमको इतिहास में सहारा के बर्फ की तरह लिखा जाना चाहिए
पानी के जंगल की तरह
पहाड़ो के पतझड़ की तरह लिखा जाना चाहिये
फूलों के पत्थर की तरह
हाथों के मक़तल की तरह लिखा जाना चाहिए
बिलकिस बानो!

तुम्हें मुसलमान कवि की प्रेमिका की तरह
हिंदुओ के इतिहास में दर्ज किया जाना चाहिए बिलकिस बानो!
जो इस सभ्यता के प्रेरणा पुरुष हिमालय को
विवश कर दे
अपने हाथों गंगा का गला दबाने के लिए
अन्यथा भगीरथ को भी तुम किसी रोज
सर्वोच्च न्यायालय में खड़ा होने के लिए मजबूर कर दोगी

बिलकिस बानो तुम्हें लिखने वाली ऐतिहासिक कलमे
जब चल कर देखेंगी द्वारिका के मलबे को
उन्हें तुम्हारा अस्तित्व
कृष्ण और बलराम की उपस्थिति में
सबसे मज़बूत बताना पड़ेगा
हीरे की तरह कठोर बताना पड़ेगा

लिखना पड़ेगा की पौराणिक कथाओं की द्वारिका
जब गोधरा मे तब्दील हो रही थी
वहां कुछ भी नही बचा
सिवाय बिलकिस बानो के

बिलकिस बानो तुम्हे लिखा जाएगा
संघर्ष के आदम शोक के रूप में
कलिंग विजय के बाद बचे अशोक के रूप में

 

2)प्रेमिकाओं से बिछुड़े प्रेमी

प्रेमिकाओं से बिछुड़े हुए प्रेमी,
आखिर कहाँ गये?
इस सवाल के जेहन में उतरते ही,
चमकने लगतीहै ताजमहल की मीनारें,
खनकने लगती है जगजीत सिंह की आवाज,
और दूर कहीं समुद्र के नीचे
तैरने लगती हैं युगंधर की द्वारिका,
मछलियों की तरह मथुरा की खोज में
लेकिन फिर भी इन अभिशापित प्रेमियों का पता नही मिलता,
तब मैं इतिहास खंगालता हूँ ,
विश्वयुद्ध में मारे गये सैनिकों का इतिहास
क्यूबा में,घाना में,वियतनाम में,फलिस्तीन में,
नेफा में,बस्तर में और अक्साई चीन में,
मारे गये सैनिकों का इतिहास,
देखने लगता हूँ साइबेरिया का तापमान,
हिन्द महासागर की विशाल जल राशि,
प्रशांत महासागर का मेरियाना गर्त
गाजा पट्टी,अफ्रीका,कोरिया का भूगोल
पढने लगता हूँ विज्ञान
नाभिकीय विखंडन के सूत्र
जिससे समाप्त गयी हो नागासाकी की नस्ले,
लेकिन इन गुमशुदा प्रेमियों का पता बताने में
सारे के सारे पन्ने नाकाम हो जाते हैं,
लगता हैं अपने बिछुड़ने का किस्से के साथ
ये प्रेमी भी हाकिंस के ब्लैक होल में विलीन हो गये,
या चले गये किसी अनंत दिशा की ओर मंगल से वृहस्पति होते हुए,
आकाश गंगा के बाहर,
धरती पर किसी भी फैक्ट्री में बिना हड़ताल किये हुए,
इनको रोजगार के नाम पर कारतूस देने वालों,
मैं तुमसे पूछता हूँ ,
प्रेमिकाओं से बिछुड़े हुए ये प्रेमी
आखिर कहाँ गये?

 

3.चला आऊंगा तुम्हारे पास

मेरा मन भले रूठ जाए
मेरे पाँव हमेशा प्रसन्न रहेंगे
मैं प्रसन्नता के पदचाप छोड़ते हुए
चुपचाप चला आऊंगा तुम्हारे पास

समुद्र की सबसे निचली सतह से तैरते हुए
पथरीली घाटियों को पार करते हुए
खरगोशों को पीछे छोड़ते हुए
अपनी पीठ पर यात्राओं के मानचित्र उगाए
मैं कछुए की तरह चुपचाप
चला आऊंगा तुम्हारे पास

मेरी थकावटों को पहचाने वाले
अपनी थकावट लेकर
बार-बार आता रहूंगा
सुनाऊंगा तुम्हें सड़को की पीप पीप
पटरियों की छुकछुक
बनारस के बारे में बताऊंगा
उस घाट के बारे में भी
जहां तुम मेरे होंठो पर रखे सिगरेट को
संधा-बाती की तरह सुलगा देती थी
मैं तंबाकू भर प्रकाश के लिए
चुपचाप चला आऊंगा तुम्हारे पास

मैं जर्जर होता जा रहा
मेरे रक्त में चींटियों ने चहलकदमी शुरू कर दी है
गले की सुरंग में टार भरता जा रहा
फेफड़े अमेजन की जंगलो की तरह जल रहे
मैं मृत्यु से भयभीत होकर तुलसी वाली चाय पीने
चुपचाप चला आऊंगा तुम्हारे पास

तुमको तो मालूम है ताज पहने राजा की नही
खड़ाऊं पहने सम्राट बनने की सनक थी मुझमे
जो युद्ध में बिना रथ और मुकुट के
लंकाधीश को ललकार सके
लम्बा चलेगा युद्ध तो पहिये की जगह पांव घिसेंगे
मैं घिसे हुए पांव से एक जोड़ी चप्पल की तलाश में
चुपचाप चला आऊंगा तुम्हारे पास

 

4) कांट्रेक्टर (ठेकेदार)

खारिज करता हूं मैं

इस दुनिया में मजदूरों को लेकर
रचे गए शब्द-विन्यास की पोथियों को
जहां कोलाहल के कारतूस सांत्वना के फूल से
ढक दिए गए

खारिज करता हूँ मैं

उन तमाम पतलून पहने नायक-नायिकाओं को
जिनकी प्रतिमाओं के सामने हमारे फेफड़े और बाजुओं को प्रयोग
नारों के गुब्बारे उड़ाने के लिए किया गया

खारिज करता हूँ मैं

उन तमाम राग-रागिनियों को
जिनकी धुनों से एक हल्की मरोड़ भी
तानाशाहों की आंतों में उमड़ न पाई

खारिज करता हूँ मैं

तर्कों के उन विशालकाय कारखानों को
जिनकी कसौटियों पर हमारे उपभोग के लिए
उत्पादन स्वरूप अंतरिक्षयान कसे गए
जो हमारी तश्तरियों से उड़े और उड़न तश्तरी बन गए

मैं विज्ञान के विशेष ज्ञान को
स्वरों के सातों आसमान को
नारों में नायकस्थान को
कवियों के समूचे खानदान को
खारिज करके

ठेकेदारी की प्रथा के खिलाफ
एक अर्जी दायर कर रहा….

मैं सृष्टि में एक भी ठेकेदार नही चाहता

 

5) सरकार! मजदूर से आपका क्या अभिप्राय है?

सड़क पर बेलचे उठाए
खदानों में कमर तोड़ते
गगनचुंबी इमारतों पर शीशा चढ़ाते
दाल-भात-चोखा खाते
फ़टी-चिथड़ी मनुष्यता के लबादे में
आक्सीजन और कार्बन के बीच
सामंजस्य स्थापित करने के लिए
फड़फड़ाते फेफड़े का फार्च्यून?

या फिर सूरज से पीठ सेंक
धरती की प्रानीचतम गांठो को खोलने के लिए
पहाड़ो पर पेशियों से
खोपड़ी को तहस-नहस करने लायक प्रहार करता
दो सौ छह हड्डियों वाले ढांचे का
एक हिंसक जुनून?

सरकार! मजदूर से आपका क्या अभिप्राय है?

 

6) जिंदगी:वर्ग सेंटीमीटर में

(1)
हड्डियों का कैल्शियम
चूना बन गया है
शरीर का खून कत्था
लगता है यह निचाट अकेलापन
मुझे पान बनाएगा
चबाएगा
और थूक देगा

(2)

सुबह ढहती हुई पीठ की दीवार को
छाती से लगा संभालता हूं
फेफड़े हरकत करते हैं
दोपहर कंधों से लटकाता हूं
अपना सर विहीन अस्थि पंजर
फेफड़े हरकत करते हैं
रात दिमाग की नसों में विहंसती
माइग्रेन की मरीचिका को
दिखाता हूं लौ-लपट-धुंआ
फेफड़े हरकत करते हैं

(3)

एक सन्नाटा है आसपास
जिसे कूलर के पंखे ने हवा दे दी है
बल्ब ने नमूदार कर दिया है
कमरे में लगी झोलों ने स्थिर
मैं उसके प्रभाव को कम करने के लिए
चिल्लाता हूं, कविताएं पढ़ता हूँ,गीत गाता हूं
नाचता हूं, थकता हूं
थकते ही सन्नाटा मुझ पर
साइलेंसर लगी पिस्तौल से वार करता है
मेरे शरीर से रिसते पसीने आवाज करते हैं

(4)

कमरे में अपनी मौजूदगी के लिए
अंदर से ताला लगाता हूं
बाहर जाते वक्त साथ ले जाता हूँ ताला-चाभी
चाहता हूं कोई आए औ
उठा ले जाए तल्प से मेरी चादर
जो मेरी छटपटाहटों के केंचुलो से अटा पड़ा है
वह कलमदान,
जिसकी हरेक कलम की स्याही
फट चुकी है
वह कुर्सी,
जो मेरी रीढ़ की हड्डियों की तरह फंफूदग्रस्त है
मैं चाहता हूं
मेरे आने से पहले
वह इस कमरे के छत से लटकी सीलिंग फैन
जरूर उतार लें जाए
और जल्दी जल्दी में छोड़ जाए अपने जूते
ताकि मैं उसके पैरों की नाप से समझ सकूं
पृथ्वी पर जिंदगी कितने वर्ग सेंटीमीटर में फैली हुई है..

 

(कवि भारत आर्य की कलम नई है। 3/11/1994 में जन्में भारत बलिया उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं। फिलहाल वे सिनेमा के शोधार्थी हैं। बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर यूनिवर्सिटी लखनऊ से शोध-कार्य चल रहा है।  रंगमंच-राजनीतिक मुद्दों पर सक्रिय भागीदारी रखते हैं।

संपर्क:7905867724

टिप्पणीकार कवयित्री विपिन चौधरी समकालीन स्त्री कविता का जाना-माना नाम हैं। वह एक कवयित्री होने के साथ-साथ कथाकार, अनुवादक और फ्रीलांस पत्रकार भी हैं.

संपर्क: vipin.choudhary7@gmail.com)

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