कोरोना महामारी के चलते मानवता पर आये संकट के दौर में भी नफरत की राजनीति करने वाले अपने हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं. मीडिया का एक बड़ा हिस्सा हिंदू-मुसलमान के घृणित जहरीले प्रचार में जुड़ा हुआ है. इसके चलते कई घटनाएँ भी हो चुकी हैं. इसके बावजूद आम लोग आपसी सद्भाव बनाये हुए हैं और रोज नयी नयी मिसाल पेश का रहे हैं. सद्भाव के इन मिसालों ने अज़ीज़ लखनवी की इन पंक्तियों के मौजूं किया है-जीते हैं कैसे ऐसी मिसालों को देखिए, पर्दा उठा के चाहने वालों को देखिए/ क्या दिल जिगर है चाहने वालों को देखिए/मेरे सुकूत अपने सवालों को देखिए/अब भी हैं ऐसे लोग कि जिन से सबक़ मिले/दिल मुर्दा है तो ज़िंदा मिसालों को देखिए/जीते हैं कैसे ऐसी मिसालों को देखिए.
कोविड-19 महामारी काल में अब तक कई ऐसे मामले आए हैं जिसमें पड़ोसी हिंदू की अर्थी को मुस्लिम समुदाय के लोगो ने कन्धा देकर शमशान तक पहुँचाया और उनका अंतिम संस्कार हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक किया. इस बीच वो लगातार सहज भाव से ‘राम नाम सत्य है’ का जाप भी करते दिखे.
लॉकडाउन के चौथे दिन 28 मार्च को वायरल हुए एक वीडियो को पूरी दुनिया ने देखा, जिसमें बुलंदशहर तीन दर्जन से अधिक मुस्लिम युवा ‘ राम नाम सत्य है ‘ का उद्बोधन करते हुए एक हिंदू पड़ोसी के पार्थिव शरीर को कंधे पर उठाए शमशान पहुंचाने जा रहे थे. कोरोना के संक्रमण और यूपी पुलिस की लाठियों गालियों से बिल्कुल बेपरवाह होकर.
In Bulandshahr, a man named Ravishankar died. Because of the #COVID fear, none of his relatives came to lift the bier. His Muslim neighbours came,lifted the bier & also chanted "Ram Naam Satya hai" in the funeral procession. pic.twitter.com/g4TLPsxdpH
— Zainab Sikander (@zainabsikander) March 29, 2020
रवि शंकर अपने दो बेटे व पत्नी के साथ बुलंदशहर के घनी मुस्लिम आबादी वाले आनंद विहार इलाके में रहते थे. शनिवार 28 मार्च को रविशंकर का देहान्त हो गया. वो लंबे समय से कैंसर से पीड़ित थे। जब रविशंकर की मौत हो गई तो उसके बेटे ने अपने रिश्तेदारों, दोस्तों और पड़ोस के नजदीकियों को इस बात की जानकारी दी लेकिन, कोरोना संक्रमण के भय और लॉकडाउन के चलेत गरीब परिवार के रविशंकर को श्मशान तक अंतिम संस्कार के लिए ले जाने के लिए कोई आने को तैयार नहीं हुआ. दुख की ऐसी घड़ी में रिश्तेदारों और दोस्तों के ऐसे व्यवहार ने पीड़ित परिवार का दर्द और बढ़ा दिया. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वे शव को अंतिम संस्कार के लिए श्मशान तक कैसे ले जाएं। तभी मुस्लिम पड़ोसी आगे बढ़कर आए और अंतिम संस्कार का बीड़ा उठाते हुए न केवल आर्थिक मदद की, बल्कि अर्थी को कांधा देकर पूरे हिंदू रीति-रिवाज से मृतक को अंतिम विदाई दी.
9 अप्रैल को लॉकडाउन के दौरान पश्चिम बंगाल के मालदा जिले में 90 वर्षीय व्यक्ति की मौत हो जाने के बाद मुस्लिम पड़ोसियों ने उसकी अर्थी को कंधा दिया और हिंदू धर्म की परंपरा के अनुसार ‘राम नाम सत्य है’ बोलते हुए शव को 15 किलोमीटर दूर स्थित श्मशान घाट ले गए। पश्चिम बंगाल के मालदा जिला स्थित कालियाचक (दो) ब्लॉक के लोयाइटोला गांव के निवासी 90 वर्षीय विनय साहा का निधन हो गया, जिसके बाद उनके पड़ोस में रहने वाले मुस्लिम मित्रों ने साहा की अर्थी को कंधा दिया. गौरतलब है कि लोयाइटोला में साहा अकेला हिंदू परिवार है और बाकी लगभग सौ परिवार मुस्लिम हैं.
साहा के पुत्र श्यामल के मुताबिक लॉकडाउन के कारण कोई रिश्तेदार उनके घर नहीं आ सका. ऐसे में उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि पिता का अंतिम संस्कार कैसे किया जाए. ऐसी परिस्थिति में उनके पड़ोसी मदद के लिए आगे आए और पिता के अंतिम संस्कार में कोई बाधा नहीं आई. मुस्लिम पड़ोसियों ने चेहरे पर मास्क लगाकर अर्थी को कंधा दिया और ‘बोल हरि, हरि बोल’ और ‘राम नाम सत्य है’ कहते हुए श्मशान घाट तक ले गए.
3 अप्रैल को मुंबई के उपनगर बांद्रा के गरीब नगर इलाके में रहने वाले 68 वर्षीय प्रेमचंद्र बुद्धलाल महावीर का निधन हो गया. राजस्थान के एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाले महावीर लंबे वक्त से बीमार थे. उनके पुत्र मोहन महावीर ने उसके बाद अपने भाईयों, रिश्तेदारों और दोस्तों को इस दुखद घटना के बारे में सूचित किया, लेकिन वे लॉकडाउन के कारण नहीं आ सके.
मुस्लिम बहुल बस्ती में हिन्दू बुजुर्ग की मौत होने के बाद पड़ोसी मुस्लिमों ने पूरे हिंदू रीति रिवाज से अंतिम संस्कार करवाया. मुस्लिमों ने ही अपने हाथों से नहलाया, सामान लाकर अर्थी बनाई और कंधे देकर मरहूम के पार्थिव शरीर को ‘राम नाम सत्य है’ बोलते हुए श्मशान घाट ले गए.
ऐसा नहीं था कि उस बुजुर्ग के परिवार का कोई नहीं था. मरहूम बुजुर्ग का एक बेटा था पर उसे अपने रीति रिवाजों की जानकारी नहीं थी और दूसरे भाई-बहन लॉकडाउन में मुबंई से बाहर फंसे हैं, जहाँ से वो आ नही सकते थे।
मरहूम के पुत्र मोहन के मुताबिक- “मैं पास के पालघर जिले के नालासोपारा इलाके में रहने वाले अपने दो बड़े भाइयों से संपर्क नहीं कर सका. मैंने राजस्थान में अपने चाचा को पिता के निधन की सूचना दी, लेकिन लॉकडाउन के कारण वे नहीं आ सके. ऐसे में मुस्लिम पड़ोसी आगे आए और शनिवार को अंतिम संस्कार करवाने में मदद की. मेरे पड़ोसियों ने मृत्यु संबंधी दस्तावेज बनवाने में मदद की और मेरे पिता के शव को श्मशान घाट ले गए. इस स्थिति में मेरी मदद करने के लिए मैं उनका शुक्रगुजार हूँ . ”
13 अप्रैल को जयपुर के भट्टा बस्ती थाना क्षेत्र के बजरंग नगर कच्ची बस्ती में एक हिंदू युवक का अंतिम संस्कार मुस्लिम परिवारों ने किया. मुस्लिम परिवार अर्थी के साथ श्मशान घाट पहुंचे और उसका अंतिम संस्कार किया. मरहूम राजेंद्र दिहाड़ी मजदूरी का काम करता था और काफी दिनों से कैंसर से पीड़ित था. राजेंन्द्र जयपुर में अपनी मौसी के यहाँ रह रहा था.
लॉक डाउन होने के बाद से वह घर पर ही था और तबीअत बिगड़ने पर 12 अप्रैल की रात को उसका देहांत हो गया. इस पर पड़ोस में रहने वाले मुस्लिम परिवारों ने ही उसके अंतिम संस्कार के क्रिया कर्म का इंतजाम किया. सुबह परिवार के अन्य लोगों के साथ मुस्लिम परिवार के लोग ही अंतिम यात्रा में शामिल हुए और श्मशान घाट जाकर अंतिम संस्कार किया. इसके अलावा उनके क्रिया कर्म के लिए मुस्लिम समुदाय के लोगो ने आर्थिक सहयोग भी दिया.
पड़ोंस के लोग-बाग बताते हैं कि लॉक डाउन के बीच मुस्लिम परिवार ही अब तक इस परिवार की मदद करते आ रहे हैं, राशन से लेकर आर्थिक मदद तक यहां लोग कर रहे हैं। मृतक के परिजनों का कहना है कि उनके पड़ोसी मुस्लिम मुस्लिम भाइयों ने इस दुख की घड़ी में उनका खूब साथ दिया है ऐसे में वे उनका एहसान कभी नहीं भुला पाएंगे.
कोरोना महामारी के संकट के दौरान 6 अप्रैल की सुबह इंदौर के साउथ तोदा इलाके में रहने वाली द्रोपदी बाई की मृत्यु हो गई. उसका अंतिम संस्कार आसपास रहने वाले मुस्लिम परिवारों ने किया. हिंदू रीति रिवाज से अर्थी को मुस्लिम युवाओं ने अर्थी को कंधा देते हुए शव श्मशान घाट पर ले गए और विधि-विधान से अंतिम संस्कार किया.
हमारा मज़हब इस्लाम सिर्फ और सिर्फ इंसानियत ही सिखाता है और आज हमने साउथ तोड़ा इंदौर में हमारे हिन्दू बहन की अर्थी उठाई और उनका अंतिम संस्कार किया (मेरा मज़हब देहशत गर्दी नहीं सिखाता) pic.twitter.com/lA0Op5Jhes pic.twitter.com/s7hg4n1fLX
— Aamir Hamza (@AamirHa27257192) April 7, 2020
पड़ोसियों के मुताबिक द्रोपदी लंबे समय से बीमार चल रही थी, कोरोना वायरस के इस संकट में महिला का 6 अप्रैल की सुबह निधन हो गया. महिला के अंतिम संस्कार को जब कोई नहीं ले गया तो आसपास के मुस्लिम लोगों ने महिला की हिंदू रीति-रिवाज से अंतिम विदाई दी।
मोहल्ले वाले उन्हें दुर्गा मां के नाम से पुकारते थे. उनके दो बेटे कहीं रहते थे. मां की मौत की सूचना भेजकर उन्हें बुलाया गया. जब वो आए तो उनके पास इतने पैसे भी नही थे कि अपनी मां का अंतिम संस्कार कर सके. यह जानने के बाद उनके मुहल्ले के अकील, असलम, मुदस्सर, राशिद, इब्राहिम, इमरान सिराज जैसे मुस्लिम सामने आए और अंतिम संस्कार करवाया.