Sunday, October 1, 2023
Homeख़बरकोयला क्षेत्र के हड़ताली मज़दूरों के समर्थन में दिल्ली के जंतर-मंतर पर...

कोयला क्षेत्र के हड़ताली मज़दूरों के समर्थन में दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन

श्वेता राज


नई दिल्ली, 24 सितम्बर 2019 : ऐक्टू समेत कोयला क्षेत्र की पाँच ट्रेड यूनियन संगठनों द्वारा बुलाई गई हड़ताल के समर्थन में, दिल्ली के विभिन्न इलाकों से आए मज़दूरों ने जंतर मंतर पर विरोध प्रदर्शन किया। ज्ञात हो कि मोदी सरकार द्वारा कोयला क्षेत्र में सौ फीसदी विदेशी निवेश की घोषणा करने से कोयला उत्पादन से जुड़े मज़दूर व यूनियन काफी गुस्से में हैं।

सौ फीसदी विदेशी निवेश – मतलब जनता की संपत्ति को लूटने की छूट

1972-73 में कोयला उद्योग के राष्ट्रीयकरण के पश्चात, कोयला उत्पादन 7.9 करोड़ टन से बढ़कर 60 करोड़ टन से भी ज़्यादा हो चुका है। देश मे 92 प्रतिशत से ज़्यादा कोयला उत्पादन सरकारी कंपनियां द्वारा किया जाता है। कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) जो कि देश की सबसे बड़ी कोयला उत्पादक कंपनी है, मोदी सरकार के निशाने पर लगातार बनी हुई है। पिछले एक दशक में कोयला क्षेत्र की सरकारी कंपनियों ने भारत सरकार को 1.2 लाख करोड़ से ज़्यादा लाभांश व राजस्व प्रदान किया है।
इसके बावजूद भी मोदी सरकार, सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को निजीकरण और विनाश की राह पर धकेल रही है। विदेशी निवेश और कोल इंडिया को छोटी कंपनियों में बांटने जैसे फैसलों से न सिर्फ लाखों मज़दूर आहत होंगे बल्कि सरकार का राजस्व भी घटेगा।
अपने पिछले कार्यकाल में मोदी सरकार ने ‘कोल माइंस प्रोविज़न एक्ट, 2015’ लाकर निजी कंपनियों को कोयला उत्खनन व बेचने की छूट दे दी थी। इस जन-विरोधी कदम से कोयला उद्योग के राष्ट्रीयकरण को जबरदस्त चोट पहुंची।

मोदी 2.0 – सरकारी/सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के निजीकरण की पूरी तैयारी

संतोष रॉय, अध्यक्ष, ऐक्टू दिल्ली ने कहा कि लाखों सालों तक धरती के गर्भ में तैयार होनेवाला कोयला, इस देश की जनता की संपत्ति है, पर अब मोदी सरकार इसे मुनाफाखोरों के हाथ दे रही है। उन्होंने ये भी कहा कि नीति आयोग द्वारा पूर्व में कोल इंडिया लिमिटेड को छोटी कम्पनियों में तोड़ने का प्रस्ताव आया था, पर इसे ट्रेड यूनियनों के दबाव के चलते नही माना गया था। अब जब साम्प्रदायिक उन्माद की फसल काटकर मोदी सरकार दोबारा आई है, तो वो रेलवे, बैंक, बीमा, डिफेंस, कोयला, इत्यादि के निजीकरण और तमाम जन विरोधी फैसलों को जल्द से जल्द लागू करना चाहती है। निर्मला सीतारमण ने बजट पेश करते हुए ये साफ कहा था कि सरकारी कम्पनियों को बेचकर सरकार 1.05 ट्रिलियन रुपयों की उगाही करना चाहती है।

श्वेता राज, सचिव, ऐक्टू दिल्ली ने अपने संबोधन में कहा कि, ” सरकार जनता के पैसे को ‘हाउडी मोदी’ जैसे वाहियात प्रचार कार्यक्रमों पर खर्च कर रही है। प्रधानमंत्री देश की गिरती अर्थव्यवस्था, बेरोज़गारी, दिनोंदिन आग की तरह देश को जलाते साम्प्रदायिक उन्माद और लिंचिंग पर खामोश हैं, वो देश की खनिज संपदा व जल-जंगल-जमीन को बेचना चाहते हैं। सरकारी कंपनियों में लाखों लोगों को रोजगार मिलता है व आरक्षण जैसी ज़रूरी व्यवस्था लागू हो पाती है – निजीकरण के पश्चात ये सभी खत्म हो जाएंगे।”

कोयला क्षेत्र के मज़दूरों की ये हड़ताल, एक लम्बी लड़ाई की शुरुआत है। गौरतलब है कि ऐक्टू समेत अन्य ट्रेड यूनियन संगठनों ने आगामी 30 सितंबर को पार्लियामेंट स्ट्रीट पर मोदी सरकार की जन-विरोधी नीतियों के खिलाफ, एक संयुक्त कन्वेंशन की घोषणा की है।

(श्वेता राज, ऑल इंडिया कॉउन्सिल ऑफ सेंट्रल ट्रेड यूनियन्स (AICCTU) की दिल्ली राज्य की सचिव हैैं।)

RELATED ARTICLES

2 COMMENTS

Comments are closed.

- Advertisment -
Google search engine

Most Popular

Recent Comments