समकालीन जनमत
ख़बर

लॉक-डाउन के दौरान मज़दूरों की दुर्दशा और सरकार की मज़दूर-विरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ देश भर में प्रदर्शन

 

22 मई, 2020
दिल्ली

ऐक्टू समेत अन्य केन्द्रीय ट्रेड यूनियन संगठनों द्वारा आयोजित विरोध-दिवस के मौके पर देश के कई राज्यों में, लॉक-डाउन के दौरान मजदूरों की दुर्दशा और सरकार की मजदूर-विरोधी नीतियों के खिलाफ प्रदर्शन किया.

गौरतलब है कि इस विरोध-दिवस का आयोजन ऐक्टू समेत इंटक, एटक, सीटू, एच.एम.एस,ए.आई.यू.टी.यू.सी, यू.टी.यू.सी, टी.यू.सी.सी, एल.पी.एफ, सेवा जैसे केन्द्रीय ट्रेड यूनियन संगठनों के संयुक्त आह्वान पर किया गया था.

संघ-भाजपा समर्थित भारतीय मजदूर संघ के अलावा सभी केन्द्रीय ट्रेड यूनियन संगठनों ने आज के कार्यक्रम में हिस्सा लिया. बैंक, बीमा, कोयला, रेल इत्यादि क्षेत्रों के मजदूर-फेडरेशनों ने भी आज के प्रदर्शन में भागीदारी की.

दिल्ली के राजघाट पर प्रदर्शन कर रहे ट्रेड-यूनियन नेताओं की हुई गिरफ्तारी
ऐक्टू के राष्ट्रीय महासचिव राजीव डिमरी समेत अन्य मौजूद टेड यूनियन नेताओं को दिल्ली पुलिस द्वारा न्यू-राजेन्द्र नगर थाने ले जाया गया. कामरेड राजीव डिमरी ने कहा ,“चारों तरफ हाहाकार फैला हुआ है, मजदूर पैदल चलकर गाँव जाने की कोशिश कर रहे हैं, जिसमें कई मजदूर मारे भी जा चुके हैं. मालिकों ने न सिर्फ मजदूरों की छटनी की, बल्कि वेतन देने से भी मना कर दिया.

देश में आई-टी सेक्टर से लेकर औद्योगिक और निर्माण क्षेत्र के मजदूर छटनी और भुखमरी के शिकार हो रहे हैं. अगर केंद्र सरकार को मजदूरों की जरा भी चिंता होती तो वह श्रम-क़ानूनो को और सख्त बनाती, पर केंद्र स्तर पर लेबर-कोड और राज्य स्तर पर ‘आर्डिनेंस’ के माध्यम से सारे अधिकार छीने जा रहे हैं. काम के घंटे बढ़ाए जा रहे हैं. हम इसका विरोध करते हैं.”

दिल्ली के ही वजीरपुर, नरेला, कादीपुर, संत-नगर, कापसहेड़ा, संगम विहार, मंडावली, झिलमिल, नजफगढ़ समेत अन्य इलाकों में मजदूरों ने विरोध प्रदर्शन किया. संगठित-असंगठित क्षेत्रों के कामगारों ने आज के प्रदर्शन में अच्छी हिस्सेदारी की.

तमिल-नाडु, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, असम, दिल्ली, गुजरात इत्यादि राज्यों में मजदूरों ने लिया विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा देश के लगभग सभी राज्यों में, मजदूरों ने केंद्र और राज्य की सरकारों द्वारा श्रमिकों को मौत के मुंह में धकेलने के खिलाफ अपना विरोध दर्ज करवाया.

इससे पहले भी ट्रेड यूनियनों ने अपने-अपने कामकाज के इलाकों में प्रदर्शन किया है परन्तु राष्ट्रीय स्तर पर केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा बुलाया गया यह पहला विरोध-प्रदर्शन था. बिहार, दिल्ली, तमिल नाडु, राजस्थान, कर्नाटक, असम, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, तेलंगाना इत्यादि राज्यों में कई जगहों पर कार्यक्रम किए गए.

बिहार में ऐक्टू के प्रदर्शनकारियों को पुलिस ने रोकने का भरपूर प्रयास किया परन्तु ट्रेड यूनियनों ने अपना कार्यक्रम जारी रखा. उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में भी पुलिस की प्रदर्शनकारियों से झड़प हुई.

तमिल नाडु में कई ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं के ऊपर मुकद्दमे दर्ज किए गए हैं. इंडियन रेलवेज एम्प्लाइज फेडरेशन (आई.आर.ई.एफ) ने कपूरथला, राय बरेली, वाराणसी, चित्तरंजन इत्यादि जगहों पर प्रदर्शन किया.

मजदूरों की स्थिति के लिए केंद्र व राज्य की सरकारें ज़िम्मेदार
लगातार हो रहे पलायन और दुर्घटनाओं की ज़िम्मेदारी केंद्र व राज्य सरकारों की है. मोदी सरकार द्वारा पहले तो बिना किसी तैयारी और योजना के लॉक-डाउन लाया गया और फिर लॉक-डाउन की आड़ में श्रम कानूनों को खत्म करना, काम के घंटे बढ़ाना, सरकारी कंपनियों का निजीकरण इत्यादि काम किए गए. गृह मंत्रालय द्वारा सभी मजदूरों को वेतन भुगतान का आदेश पहले तो लागू नहीं किया गया और फिर वापस ले लिया गया !

सरकार द्वारा घोषित तमाम पैकेज खोखले निकले – इनमे मजदूरों के लिए कुछ भी नहीं. लगातार मजदूरों को रेल व सड़क पर पैदल चलाकर मरने के लिए मजबूर किया जा रहा है. अगर सरकार ट्रेड यूनियनों की बात मान लेती तो शायद ये दिन नहीं देखना पड़ता.

आज के प्रदर्शन से में – सभी मजदूरों को कम से कम 10,000 रूपए गुज़ारा भत्ता (या न्यूनतम वेतन, जो भी ज्यादा हो) प्रदान किए जाने , घर जाने के इच्छुक सभी मजदूरों के लिए मुफ्त व सुरक्षित लौटने का इंतजाम, श्रम कानूनों पर हमले बंद करने, वेतन कटौती और छटनी पर रोक लगाने, निजीकरण/ कोर्पोरेटीकरण के फैसले वापस लिए जाने व भारतीय खाद्य निगम के भंडार आम जनता के लिए खोले जाने – जैसी मांगों को उठाया गया.

Related posts

Fearlessly expressing peoples opinion