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शेखर जोशी स्मृति आयोजन से शहर ने किया अपने प्रिय साहित्यकार को याद

हिंदी साहित्य के सशक्त रचनाकार और इलाहाबाद शहर के गौरव शेखर जोशी के जन्मदिन के अवसर पर बीते 9-10 सितम्बर को  द्वि- दिवसीय शेखर जोशी स्मृति आयोजन किया गया। दो दिन का  यह आयोजन कुल चार सत्रों में रखा गया था।  प्रगतिशील लेखक संघ, जनवादी लेखक संघ और जन संस्कृति मंच के सयुंक्त तत्वावधान में विज्ञान परिषद सभागार में इसे आयोजित किया गया।

9 सितम्बर को उद्घाटन  सत्र की शुरुआत में   डॉ० बसंत त्रिपाठी ने बतौर संचालक शेखर जोशी की, उनके अंतिम दिनों में लिखी गई कविता, ‘नवें दशक की दहलीज पर’ पढ़कर की जिसकी मुख्य पंक्तियाँ इस प्रकार हैं,
मुझे ग्यारह रन और बनाने हैं
सिर्फ ग्यारह रन
एक छक्का ,एक चौका और एक रन
या दो चौके और तीन एकल रन
मेरा शतक पूरा हो जायेगा

नहीं थका हूँ मैं अभी
डटा रहूँगा मैदान में
पूरे दमखम के साथ

सत्र का स्वागत वक्तव्य अविनाश मिश्र ने दिया। स्वागत वक्तव्य देते हुए अविनाश मिश्र ने कहा कि अपने समकक्षों में शेखर जी तथा एक पीढ़ी नीचे के लोगों में शेखर दादा के नाम से समादृत  साहित्य के अजातशत्रु थे । उन्होंने आगे शेखर जोशी के साहित्य पर बात करते हुए कहा कि शेखर जोशी के साहित्य की विशेषता उसकी जन पक्षधरता के साथ-साथ समाज के निचले तबके के लोगों के संघर्ष और उनकी भावनाओं को उकेरना रहा है ।

प्रमुख वक्ता नवीन जोशी ने शेखर जोशी के जीवन के बारे में बात करते हुए कहा कि उन्हें तीन घटनाएं याद आती हैं, जिन्होंने उनके जीवन और लेखन पर गहरा प्रभाव डाला।

जिसने एक पिछड़े गाँव के चन्द्र शेखर जोशी को एक प्रतिष्ठित रचनाकार शेखर जोशी के रूप में स्थापित किया । उन्होंने इन घटनाओं को बचपन में माँ की मृत्यु, साहित्य के लगाव के कारण ग्यारहवीं में फेल होकर तथा छात्र जीवन के दौरान दिल्ली में उनका जाना , और बाद में इलाहाबाद आ जाना तथा यहीं बसकर रचनाकर्म करना था।

नवीन जोशी ने बताया कि शेखर जोशी ने बचपन में सुमित्रानंदन पंत की कविता ‘उच्छ्वास’ को पढ़ा, यहीं से उन्हें कविता के संस्कार भी मिले ।

नवीन जोशी ने कहा कि उन्हें शेखर जोशी की कहानियों में एक सहजता दिखाई देती है , कहीं भी हड़बड़ी नहीं दिखाई पड़ती है । उनका लेखन उनके व्यक्तित्व के अनुरूप है ।

कृष्णा जोशी ने कहा कि उनके पापा (शेखर जोशी) और इलाहाबाद का वैसा ही रिश्ता था, जैसे शादी के बाद युवती का उसके मायके से होता है । उन्होंने शेखर जोशी के प्रकृति प्रेम, साहित्य प्रेम , कला और संगीत प्रेम को भी उल्लेखित किया । उन्होंने शेखर जोशी के साथ बिताये गये समय से उन प्रमुख बातों को साझा किया जो शेखर जोशी के सरल, आत्मीय व्यक्तित्व को व्याख्यायित करता है ।

कवि हरीश्चंद्र पांडे ने शेखर जोशी से अपनी दो खास मुलाकातों का जिक्र किया, जिनमें पहली मुलाकात तब की है, जब वह शेखर जोशी से व्यक्तिगत रूप से मिले । शेखर जोशी ने जिस आत्मीयता और सहजता से उनसे मुलाकात की वह आज भी उनकी यादगार स्मृतियों में से एक थी ।

शेखर जोशी के लेखन पर बात करते हुए  कहा कि उन्होंने कम लिखा लेकिन बहुत प्रभावपूर्ण लिखा।
उन्होंने नागार्जुन द्वारा भेजी गई शेखर जोशी को चिट्ठी में लिखी उस बात का जिक्र किया जिसमें लिखा था,

“अच्छा है कम लिखते हो लेकिन दमदार लिखते हो । मुझे यकीन है कि तुम कभी भूसा नहीं बिखेरोगे”

शेखर जोशी के बड़े पुत्र प्रतुल जोशी ने अपनी बात रखते हुए सबसे पहले इस कार्यक्रम के आयोजकों को धन्यवाद देते हुए कहा कि इस प्रकार के आयोजन इसलिए भी जरूरी हैं  क्योंकि इसी बहाने बौद्धिक और जनहित की चिंता करने वाले लोग एक साथ बैठते हैं और चर्चा करते हैं ,जो कि आज के फेक न्यूज़ के जमाने में बहुत जरूरी है।

उन्होंने शेखर जोशी के बारे में बोलते हुए कहा कि वह शेखर जोशी से पिता से ज़्यादा लेखक के रुप में जुड़े हुए थे । प्रतुल जोशी ने आगे बताया कि उनका बचपन ननिहाल में गुजरा जहाँ से इन्हें समृद्ध संस्कार मिले । उनके पिता शेखर जोशी उन्हें यह हिदायत देते थे कि वह जीवन में सफलता अपनी मेहनत के दम पर हासिल करें न कि उनके पिता शेखर जोशी के नाम के कारण ।
उन्होंने कहा कि अपने पिता के साथ रहते हुए उन्होंने यह अनुभव किया कि लेखक को समझ लेना अत्यंत दुष्कर कार्य है ।

शहर के वरिष्ठ साहित्यकार नीलकांत ने अपना वक्तव्य देते हुए कहा कि उनके समय में शहर में तमाम गोष्ठियां होती रहती थी जिसमें शेखर जोशी, अमरकांत और मार्कण्डेय बराबर दिखाई पड़ते थे। उन्होंने कहा कि शेखर जोशी का गद्य की गति, रिदम पहाड़ से उतरती हुई नदी की याद दिलाती है ।शेखर जोशी तथ्यों की गहनता से छानबीन करते थे।

इस सत्र की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि,आलोचक प्रो. राजेन्द्र कुमार जी ने कहा
‘फ़कीरों के शहर इलाहाबाद ‘ शीर्षक अपने आप में सार्थक है उन्होंने फकीर के माध्यम से बताया कि यह शहर उन फ़कीरों का नहीं जो हर समय झोला उठाकर चल देने को तत्पर रहते हैं बल्कि यहाँ के फकीर उस प्रकार के हैं जो हर मुश्किलों का डटकर सामना करते हैं । शेखर जोशी, भैरव प्रसाद गुप्त, अमरकांत और मार्कण्डेय ऐसे ही फ़कीर रहे हैं । उन्होंने बताया कि उनका सौभाग्य रहा है कि उन्हें इन चारों के साथ उठने- बैठने और उनसे बहुत कुछ सीखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है ।
उन्होंने कहा कि शेखर जोशी का स्वभाव ही ऐसा था कि जो भी उनसे सम्पर्क में आ जाता था तो उसका शेखर जोशी से उनका रिश्ता सिर्फ साहित्यिक ही नही बल्कि पारिवारिक भी हो जाता है ।

उनके लेखन के बारे उन्होंने कहा कि जिस प्रकार शेखर जोशी का लेखन उत्कृष्ट था वैसे ही उनका जीवन भी कई आदर्शों से परिपूर्ण था ।

कार्यक्रम के दौरान दो पुस्तकों का विमोचन भी किया गया जिसमें पहली पुस्तक ‘फकीरों के शहर इलाहाबाद में’ शीर्षक से है यह शेखर जोशी द्वारा लिखित उनके इलाहाबाद से जुड़े  संस्मरणों का संग्रह है तथा दूसरी पुस्तक ‘शेखर जोशी :कुछ जीवन की कुछ लेखन की’ जो नवीन जोशी द्वारा लिखी गयी है, शामिल है ।

कार्यक्रम में शेखर जोशी पर आधारित डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म ‘अभी मुझे ग्यारह रन और बनाने हैं ‘ के एक खास हिस्से का प्रदर्शन भी किया गया।

साथ ही शेखर जोशी की एक चर्चित कहानी ‘दाज्यू’ का खूबसूरत और भाव विभोर कर देने वाला मंचन भी किया गया । यह मंचन एक्स्ट्रा ऑर्गेनाइजेशन संस्था के कलाकारों की तरफ से किया गया इस नाटक को अजीत बहादुर के निर्देशन में तैयार किया गया था।

दूसरा दिन शेखर जोशी के साहित्य पर केन्द्रित था।

इसका पहला सत्र ‘सादे पृष्ठों का इतिहास ‘ शीषर्क से आयोजित किया गया। इस सत्र की बातचीत शेखर जोशी के रचना संसार पर केंद्रित थी।

सत्र की शुरुआत प्रियदर्शन मालवीय के वक्तव्य से हुई । उन्होने शेखर जोशी पर अपनी बात रखते हुए कहा कि लेखक शेखर जोशी अपने कथा साहित्य के माध्यम से मध्यमवर्गीय जीवन की छोटी -छोटी सच्चाइयों को हमारे सामने रखते हैं । उन्होंने कहा शेखर जोशी की अपने समाज , साहित्य और संस्कृति के बारे में बहुत गहन जानकारी थी और यह जानकारी उनके कथा पात्रों में भी साफ झलकती है ।
मुख्य वक्ता संजीव कुमार ने शेखर जोशी की कहानी पर विस्तार से बात की । उन्होंने वक्तव्य देते हुए कहा कि उनके कथा पात्रों को देखने पर लगता है ये शेखर जोशी के व्यक्तित्व का ही हिस्सा है । शेखर जोशी स्वाभिमानी व्यक्तित्व के धनी थे। यह स्वाभिमान उनकी कहानी ‘बोझ ‘ के प्रमुख पात्र में देखा जा सकता है । उन्होंने जोशी जी की एक अन्य कहानी ‘बदबू’ के माध्यम से भी उनके व्यक्तित्व के गुणों पर चर्चा की ।

मीना इरफान ने कहा कि ‘ शेखर जोशी की कहानियों में पहाड़ जीवन का यथार्थ चित्रण मिलता है । उनकी कहानियों में सिर्फ पहाड़ ,नदी की खूबसूरती ही नही बल्कि वहाँ जो लोग निवास कर रहे हैं उनकी रोजमर्रा की ज़िंदगी तथा उनमें आने वाली चुनौतियों का भी चित्रण है।

नलिन रंजन सिंह ने शेखर जोशी पर अपनी बात रखते हुए कहा कि पलायन या मूल से कट जाने का दर्द शेखर जोशी के अंदर बराबर रूप से विद्यमान  था यह दर्द उनकी कहानी ‘दाज्यू’ में देखा जा सकता है ।

उस समय कहानी की जो तीसरी धारा बह रही थी उसके अगुआ शेखर जोशी थे। वह तीसरी धारा मजदूर- श्रमिक के जीवन आदि सन्दर्भों को लेकर लिख रहे थे । उस्ताद, बदबू, जी हुजूरिया को इस धारा की प्रमुख कहानियों के रूप में देखा जा सकता है ।

शकील सिद्दीकी ने कहा कि शेखर जोशी की कहानी में आत्मीयता का भाव केंद्र में रहता है वह चाहे अपने पात्र की बात करे, हथौड़े या फिर मिट्टी की उसमें बेहद आत्मीयता दिखाई पड़ती है। उन्होंने शेखर जोशी के मेंटल, डांगरीवाला आदि कहानी का ज़िक्र करते हुए अपनी इस बात को स्पष्ट किया ।

जी० पी० मिश्र ने कहा कि शेखर जोशी की प्रेरणा और प्रेम ने उन्हें इलाहाबाद आकर बसने को प्रेरित किया। इलाहाबाद में लूकरगंज में वह और शेखर जोशी पड़ोसी थे ।

इस सत्र का अध्यक्षीय वक्तव्य रवि भूषण ने दिया।
उन्होंने कहा कि स्वाधीन भारत के कथा साहित्य को निगाह में रखकर शेखर जोशी के कथा साहित्य पर बात रखते हुए उन्होंने कहा कि शेखर जोशी की कहानी दबे पाँव के साथ- साथ सधे पाँव भी चलती है । शेखर जोशी न तो यथार्थ की रचना करते हैं, न उसका अन्वेषण करते हैं बल्कि वे यथार्थ को उधेड़ते हैं ।

इस सत्र का संचालन के०के०पांडे ने किया ।

भोजनावकाश के बाद कार्यक्रम का अंतिम सत्र आयोजित हुआ इस सत्र का शीर्षक ‘अंकित होने दो’ था । इस सत्र में वक्ताओं के द्वरा शेखर जोशी के बाद के कथा  परिदृश्य पर बात रखी गई ।

प्रथम वक्ता के रूप में मनोज पांडे ने अपना वक्तव्य देते हुए ‘समकालीन हिंदी कहानी में विविधता का सवाल’ शीर्षक के सहारे अपनी बात रखी । उन्होंने कहा कि सारे कथाकार मिलकर हिंदी कहानी के परिदृश्य की मुक्कमल तस्वीर बनाते हैं। इसके उदाहरण के रूप में उन्होंने हिंदी कहानी के कई अहम नाम गिनाये ।

कविता ने अपना वक्तव्य देते हुए शेखर जोशी के बाद की प्रमुख स्त्री कथाकारों की कहानियों की चर्चा की ।उन्होंने कहा कि नये स्त्री कथाकारों में उन्हें अबसे ज़्यादा अलका सरावगी की कहानियाँ आकर्षित करती हैं । अलका सरावगी की कहानी स्त्री विमर्श की कहानियाँ नही है बल्कि उनकी कहानी पाठकों को संवेदनशील बनाती हैं उन्होंने उनकी कहानी ‘एक पेड़ की मौत’ का ज़िक्र करते हुए इस बात को और स्पष्ट किया ।

विवेक निराला ने शेखर जोशी की कविताओं पर अपनी बात रखी उन्होंने कहा कि उन्हें पहला परिचय शेखर जोशी से तब हुआ जब 1962 में लहर पत्रिका में उन्हें शेखर जोशी की कविता मिली यह कविता निराला को श्रद्धांजलि स्वरूप लिखी गई थी ।

श्री प्रकाश शुक्ल ने कहा कि अभिव्यक्ति की जो प्रमुख प्रवत्ति रही है वह कविता की है और अन्य विधाएं कविता से ही निकली हुई है ।
उन्होंने कहा कि नई कहानी को दो प्रमुख भागों में बांटा जा सकता है शहर आधारित कहानी और गांव आधारित कहानी । उन्होंने कहा इसके आगे वाले समय में जहाँ कविता में अकविता का दौर आया तो कहानी में अ-कहानी का ।

योगेंद्र आहूजा ने अपने वक्तव्य की शुरुआत शेखर जोशी की प्रमुख कहानियों का ज़िक्र करते हुए किया उन्होंने कहा कि शेखर जोशी का लेखन अंतिम दिनों में कुछ मंद जरूर हुआ था लेकिन कभी रुका नही ।

अध्यक्षीय वक्तव्य वरिष्ठ कथाकार शिवमूर्ति ने दिया। उन्होंने कहा शेखर जोशी के बाद हिंदी कहानी किस तरफ गई इस पर विचार करने के लिये रखा गया यह सत्र बहुत महत्वपूर्ण है । शेखर जोशी, अमरकांत, रेणु, कमलेश्वर , मोहन राकेश ने जिस तरह अपनी कहानी के माध्यम से पुराने रचनाकारों द्वारा बनाई गई जमीन को अपने लेखन से तोड़ा था उसी प्रकार इस बात पर भी मंथन करने की ज़रूरत है कि शेखर जोशी के बाद में आने वाले लेखक यह करने में सफल हो पाये या नहीं ।

कार्यक्रम के इस अंतिम सत्र का संचालन प्रेमशंकर ने किया

कार्यक्रम के अंत में प्रणय कृष्ण ने कार्यक्रम में आये सभी वक्ताओं और अतिथियों का आभार ज्ञापन दिया ।

इसके साथ ही दो दिवस तक चले शेखर जोशी स्मृति आयोजन का समापन हो गया

कार्यक्रम में  रवि भूषण ,रवि किरण जैन,सुधांशु मालवीय ,के०के० राय, सरोज सिंह, रामजी राय ,रूपम मिश्र, प्रियदर्शन मालवीय, अजामिल, असरार गांधी,विनोद तिवारी, श्री प्रकाश मिश्र, मनोज पांडे, पदमा सिंह,रश्मि मालवीय, प्रणय कृष्ण,आनंद मालवीय, अजय जेटली, हिमांश रंजन,रीता वर्मा,विवेक तिवारी , गायत्री ,शांति घिल्डियाल, विवेक सत्यांशु,कुमार वीरेंद्र, अरविंद बिंदु, गायत्री गांगुली, राजेन्द्र कुमार ,हरीश चन्द्र पांडे, आंनद मालवीय ,अजामिल, मीना राय, रूपम मिश्र, बसंत त्रिपाठी, अनीता त्रिपाठी, गायत्री ,अंशुमान, लक्ष्मण प्रसाद गुप्त,अमरजीत राम, ,प्रकर्ष मालवीय,अजय प्रकाश, अविनाश मिश्र,राकेश बिहारी ,सीमा आज़ाद, सोनी आजाद
शेखर जोशी के पारिवारिक लोग तथा शहर के अन्य बौद्धिक जन, शोधार्थी तथा छात्र उपस्थित रहे।

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