कवि व आलोचक चन्द्रेश्वर के दूसरे कविता संग्रह कविता संग्रह ‘ सामने से मेरे ’ का विमोचन
लखनऊ, 4 जून। जाने-माने कवि व आलोचक चन्द्रेश्वर के दूसरे कविता संग्रह ‘सामने से मेरे’ का विमोचन एक जून को उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, हजरतगंज के निराला सभागार में हुआ। इसका आयोजन जन संस्कृति मंच ने किया था।
विमोचन समारोह के विशिष्ट अतिथि दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर, आलोचक व ‘आलोचना’ पत्रिका के संपादक प्रो आशुतोष कुमार थे। चन्देश्वर की कविताओं पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि चन्द्रेश्वर प्रेम और प्रतिरोध के कवि हैं। ऐसी कविताओं की जरूरत थी। ये अपनी रचना प्रक्रिया और कन्टेन्ट में समकालीन कविताएं हैं। यहां व्यंग्य चित्र हैं, बहुत कुछ कार्टून की तरह। ये कविताएं जितनी सरल हैं, इन्हें लिखना उतना ही कठिन है। यहां सरलता जीवन मूल्य है। यह कठिन होने के बरक्स है। कठिन होना आज के समय में ओढ़ी हुई संस्कृति है जिसमें पाखण्ड है, धूर्तता है। इस मायने में चन्द्रेश्वर आज के समय की आलोचना ही नहीं करते बल्कि उसका सौन्दर्यशास्त्र भी गढ़ते हैं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कवि व प्रसिद्ध साहित्य-समाज चिन्तक प्रो रमेश दीक्षित ने किया। उन्होंने कहा कि चन्द्रेश्वर की कविताएं राजनीतिक कविताएं हैं, समय से मुठभेड़ करने वाली। प्रेम और प्रकृति पर लिखी कविताओं में भी राजनीतिक दृष्टि मिलेगी। आज के हिंसक समय में प्रेम की कविता लिखना भी प्रतिरोध है। वे अपनी एक कविता में कहते हैं ‘सरल होना मानवीय होना है’। सरल होना मुश्किल काम है।
वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना ने कहा कि आज के सच को कविताएं अभिव्यक्त करती हैं, इसकी प्रशंसा की जानी चाहिए लेकिन कथ्य पर यह जोर उचित नहीं हैं। कविता करना आसान नहीं। कविता कभी-कभी ही हो पाती है। कवियों के संग्रह आ रहे हैं पर इस पर भी विचार जरूरी है कि क्या कविताएं उन्हीं संग्रहों में कैद तो नहीं हो जा रही हैं।
इस अवसर पर चन्द्रेश्वर की कविताओं पर बीज वक्तव्य कवि व आलोचक रविकान्त ने दिया तथा आलोचक रघुवंश मणि, कवयित्री वन्दना मिश्र और युवा आलोचक अजीत प्रियदर्शी ने भी अपने विचार प्रकट किये। कार्यक्रम का संचालन जन संस्कृति मंच के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष कौशल किशोर ने किया।
वक्ताओं का कहना था कि चन्द्रेश्वर की कविताएं हमारे लोकतंत्र से लोक के बेदखल हो जाने को सामने लाती हैं और फासीवाद के बढ़ते खतरे की ओर इंगित करती हैं। राजा को केन्द्र कर लिखी कविताएं इसी सत्य का उदघाटन करती हैं। इन कविताओं की जमीन वैचारिक है। यह जहां एक तरफ विचार के पक्ष में मजबूती से खड़ी हैं, वहीं विचारहीनता तथा विचार को पाषाण बना देने के विरुद्ध है। ये समय में डूबी, उससे संवाद करती कविताएं हैं। समय से टकराना चन्द्रेश्वर की विशेषता है और ये कविताएं इसी प्रक्रिया में सृजित हुई हैं।
लेखक व संस्कृतिकर्मी प्रतुल जोशी ने इस मौके पर चन्द्रेश्वर के नये संग्रह से चुनिन्दा कविताओं का पाठ भी किया जिनमें ‘राजाजी की दो आंखें’, ‘राजाजी के दो कान’, ‘कामरेड जमा खान’, ‘हरियाली का सफर’ प्रमुख थीं। जसम लखनऊ के संयोजक श्याम अंकुरम ने सभी का धन्यवाद ज्ञापन किया। इस मौके पर सुधाकर अदीब, भगवान स्वरूप कटियार, अजय सिंह, हिरण्मय धर, किरन सिंह, उषा राय, विजय राय, विमल किशोर, एम जोशी हिमानी, डाॅ निर्मला सिंह, इंदू पाण्डेय, राजेश कुमार, अवधेश कुमार सिंह, विनय दास, अनिल अविश्रांत, शीला पाण्डेय, मोहित पाण्डेय, के के वत्स, आशीष, वीरेन्द्र त्रिपाठी आदि उपस्थित थे।