(1999 में प्रदर्शित सैम मेंडेस निर्देशित ‘अमेरिकन ब्यूटी’ को सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म, सर्वश्रेष्ठ अभिनेता, सर्वश्रेष्ठ निर्देशन के ऑस्कर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था । यहाँ प्रस्तुत है फ़िल्म पर मुकेश आनंद की टिप्पणी: सं.)
मुकेश आनंद
अमेरिकन ब्यूटी(1999) बाहर से खुशहाल दिखती किन्तु भीतर से जर्जर हो चुकी मध्यवर्गीय दाम्पत्य जीवन की त्रासदी बयान करती है। लेस्टर बर्नहम और उनकी पत्नी केरोलिन दोनों नौकरीशुदा है और ऊपरी तौर पर अपनी इकलौती बेटी जेन के साथ खुशहाल जीवन जीते दिखते हैं। लेकिन भीतरी सच यह कि उनका दाम्पत्य प्रेमविहीन हो चुका है।
स्थिति यहाँ तक बदतर है कि लेस्टर अपनी पत्नी के साथ एक ही बेड पर सोते हुए मास्टरबेट करता है। साफ है कि उनके जीवन में दाम्पत्य सुख नहीं है, बल्कि वे दोनों दाम्पत्य को एक सजा की तरह काट रहे हैं।
फ़िल्म उन कारणों की तरफ नहीं जाती या उस तरफ भरपूर इशारा नहीं करती जिसके चलते आधुनिक मध्यवर्ग में ऐसी स्थितियाँ विषाणु की गति से फैल चुकी हैं। लेकिन परिवारों के भीतर आये इस बिखराव को और उसके दर्दनाक परिणामों को फ़िल्म प्रामाणिकता से सामने लाती है।
लेस्टर और कैरोलिन दोनों दाम्पत्य की मर्यादा का उलंघन करते हैं। और दोनों उस पीड़ा को भोगते हैं जो संबंधों के बिखराव से पैदा होती है। फ़िल्म इस बात को सामने लाती है कि यह तनाव जानलेवा है।
कैरोलिन दुर्भाग्य से रूबरू ग़ैरपुरुष के साथ अपने पति के समक्ष आ जाती है। इस विद्रूप स्थिति के बाद उसके मानसिक तनाव को प्रभावशाली ढंग से फिल्माया गया है।बरसती रात में वह तेज गति से शहर के सड़कों पर कार दौड़ाती है। गन उठाती और रखती है। यह भीषण कशमकश की स्थिति है।
दूसरी तरफ लेस्टर अपनी बेटी जेन की दोस्त एंजेला पर फिदा है। एंजेला अपनी भंगिमा और भाषा दोनों में उन्मुक्त है। एक घिसटता-सा दाम्पत्य जी रहे लेस्टर की जिंदगी में एंजेला के आगमन को सुर्ख गुलाबी फूलों के जरिये नई बहार के आगमन की तरह फिल्माया गया है। लेस्टर के जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ तब आता है जब रतिक्रिया के मध्य ही एंजेला उसे बताती है कि वह वर्जिन है। दरअसल लेस्टर भी उसी पुरुषीय मानसिकता से ग्रस्त व्यक्ति है जो यह धारणा बना लेता है कि जो स्त्री उन्मुक्त स्वभाव की है वह चरित्रहीन भी होगी। ऐसी राय क़ायम कर लेना वाला लेस्टर फ़िल्म में अकेला नहीं है, एंजेला की दोस्त जेनी और उसका बॉयफ्रेंड भी यही सोचते हैं।
खैर, एंजेला के इस खुलासे के बाद लेस्टर को गहरा धक्का लगता है। अपनी पत्नी की सच्चाई को प्रायः स्वीकार कर चुका लेस्टर अपनी हकीकत के सामने हिल जाता है। जहां कैरोलिन पति से नजर मिलाने का साहस नहीं जुटा पा रही और आत्महत्या की दहलीज को बार-बार छूके लौटती है, वहीं लेस्टर खुद से निगाह मिलाने की स्थिति में नहीं रहा।अंततः वह आत्महत्या कर लेता है।
कुल मिलाकर फ़िल्म गम्भीर प्रश्न खड़े करती है। उन प्रश्नों का जवाब देने की कोशिश नहीं करती। शायद कला के लिहाज से इसकी जरूरत भी नहीं है। खोखले पूंजीवादी समाज में संबंधों के नाम बचे हैं, उनसे जुड़ी परम्परागत प्रतिबद्धता की धारणा बची है, किन्तु इस प्रतिबद्धता को बनाये रख सकने वाला प्रेम और आत्मीयता चूकती जा रही।
लेस्टर और कैरोलिन का दाम्पत्य जीवन ही उनको दांपत्य की मर्यादा के बाहर बलपूर्वक ठेलता है। और जब वे सामाजिक मर्यादा का उल्लंघन कर चुके होते हैं तब नये तनाव में घिरकर आत्महत्या की हद तक पहुँचते हैं।