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बीएचयू में आइसा का मार्च एवं विद्यार्थी परिषद की ‘आहत भावनाएं ’

अतुल 

 

30 जनवरी को बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (AISA) इकाई ने दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलनरत किसानों के साझा मंच ‘ किसान एकता मोर्चा ‘ के देशव्यापी आह्वान पर विश्वविद्यालय परिसर में भी किसान आंदोलन की मांगों के समर्थन में एक मार्च निकालकर आक्रोशपूर्ण प्रदर्शन किया था। यह विरोध मार्च महिला महाविद्यालय (MMV) गेट से शुरू होकर लंका चौराहा स्थित सिंह द्वार तक प्रस्तावित था।

तय समय पर मार्च शुरू हुआ और MMV गेट के सामने से गुजरते हुए आगे बढ़ा। मार्च की शुरुआत करते हुए आइसा कार्यकर्ताओं ने नारेबाजी की और तीनों किसान विरोधी कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग की। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर एवं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चित्रों को जलाकर आइसा कार्यकर्ताओं ने प्रतीकात्मक आक्रोश का प्रदर्शन किया।

कृषि मंत्री और प्रधानमंत्री के चित्रों के जलने की देरी थी कि इतने में वहां अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) के कार्यकर्ता आ धमके और आइसा कार्यकर्ताओं से मारपीट शुरू कर दी एवं प्रदर्शन के लिए लाए गए प्लेकार्डस भी फाड़ दिए। विद्यार्थी परिषद के लोगों का कहना था कि उपरोक्त चित्रों को जलाने से ‘देश की गरिमा’ को ठेस पहुंचती है। साथ ही उनका यह भी कहना था कि आइसा कार्यकर्ताओं के ऐसे कृत्य से उनकी भावनाएं ‘आहत’ हो गयी हैं।

असल में भावनाओं के आहत होने का तो जैसे यह स्वर्णकाल हो ! यह जो ABVP की वैचारिकी वाले लोग हैं इनकी भावनाएं कभी किसी फिल्म से आहत हो जाती हैं, कभी किसी के भाषण से, कभी किसी प्रदर्शन से तो कभी पत्रकारिता से भी ! इन ABVP कार्यकर्ताओं को शायद याद होगा कि 2014 से पहले इन्होंने भी कई बार निवर्तमान सरकारों से अपनी असहमति ज़ाहिर करते हुए प्रधानमंत्री के पुतले जलाए होंगें। पुतला या चित्र जलाना प्रतीकात्मक रूप से उस व्यक्ति से या किसी निर्णय विशेष से अपनी असहमति व्यक्त करने का एक जरिया मात्र होता है। यह राजनीतिक संस्कृति का एक हिस्सा है। लेकिन ‘ भावना आहत समुदाय ‘ को कोई क्या समझाए !

लेकिन हक़ीक़त दरअसल यह है कि देश में हर जगह इस तरह की घटनाएं हो रही हैं। किसान आंदोलन से सम्बंधित किसी भी कार्यवाही को हर सम्भव तरीके से क्षतिग्रस्त करना भाजपा के तमाम आनुषंगिक संगठनों का कार्यभार होता जा रहा है। अभी हाल ही में हमने यह प्रयास सिंघु बार्डर पर मौजूद किसानों के मोर्चे पर हुए हमले के रूप में भी देखा।

लोकतंत्र में कितनी श्रद्धा विद्यार्थी परिषद जैसे संगठनों की है, वो हम सब भली-भांति जानते हैं ! इसके पहले भी अन्य कई विश्वविद्यालय परिसरों में हमने इसी विद्यार्थी परिषद की गुंडागर्दी को देखा है। मूल रूप में बीएचयू में हुआ हालिया हमला इस बात को प्रदर्शित करता है कि ABVP जैसे संगठनों का ‘कैम्पस डेमोक्रेसी’ जैसे शब्द से दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं है, बल्कि हर लोकतंत्र पसन्द आवाज़ का दमन ही उनका मुख्य काम है। इसकी जितनी मज़म्मत की जाय कम है।

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