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आइसा के प्रदेश उपाध्यक्ष नितिन राज के खिलाफ लखनऊ पुलिस नहीं पेश कर पाई रिपोर्ट, हाई कोर्ट ने 21 दिन का समय दिया

अतुल 

 

लखनऊ। आइसा के प्रदेश उपाध्यक्ष कॉमरेड नितिन राज की जमानत याचिका पर आज हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने लखनऊ पुलिस को  ‘काउंटर रिपोर्ट’ देने के 21 दिन का समय दिया।

गौरतलब है कि सेशन्स कोर्ट में भी लखनऊ पुलिस ने अपनी रिपोर्ट देने में जरूरत से ज्यादा समय मांगा था. पूरे लॉक डाउन के दौरान एवं उसके बाद भी दो महीने गुज़र जाने के बावजूद पुलिस नितिन राज के खिलाफ चार्ज शीट तक नहीं पूरी कर पाई थी. रिपोर्ट देने में की जा रही यह देरी एवं बहानेबाज़ी लखनऊ पुलिस की नीयत पर सवाल उठाती है. इन सब तथ्यों से यह बिल्कुल साफ हो जाता है कि पुलिस राजनीतिक दबाव में काम कर रही है तथा जानबूझकर अपनी कार्यवाहियों में हीला-हवाली बरत रही है.

उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ योगी आदित्यनाथ की सरपरस्ती वाली सरकार विरोध की हर आवाज़ को कुचलकर अपने विरोधियों को जेलों में ठूंस देने की हमेशा से हिमायती रही है. नितिन राज की गिरफ्तारी एवं पुलिस द्वारा न्यायिक प्रक्रिया को बेमतलब लम्बा खींचना इस बात की ओर स्पष्ट संकेत कर रहा है कि पुलिस सरकार के इशारे पर ही यह सब कर रही है.

आइसा नेता शिवम सफीर का कहना है कि, “केंद्र और विभिन्न प्रदेशों में सत्तासीन भाजपा सरकारें अपने विरोधियों एवं हाशिये के तबकों के दमन-उत्पीड़न के मामले में कीर्तिमान स्थापित कर देना चाहती हैं. आज सुप्रीमकोर्ट ने कॉमेडियन मुनव्वर फ़ारूक़ी को अंतरिम जमानत दी है. मुनव्वर को,उस गुनाह के लिए जोकि उन्होंने किया भी नहीं था, 34 दिन जेल में रखा गया. नितिन राज की गिरफ्तारी भी इसी तरह से देखी जानी चाहिए. दलित समाज से आने वाले नितिन राज को सत्ता का वाजिब विरोध, जोकि उनका लोकतांत्रिक अधिकार है, करने के ‘जुर्म’ में बीती 12 जनवरी से ही जेल में रखा गया है. इससे बढ़कर लोकतंत्र का हनन और क्या होगा !”

सत्ता प्रतिष्ठानों का जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों के दमन में इस तरह का इस्तेमाल इतने बुरे रूप में शायद ही कभी देखा गया था. यह सब बेहद निंदनीय एवं बड़े अर्थों में, लोकतंत्र को बचाये रखने के अर्थों में, बेहद चिंताजनक भी है.

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