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वरिष्ठ कन्नड़ दलित साहित्यकार सिद्धलिंगय्या को विदाई सलाम

हीरालाल राजस्थानी


वरिष्ठ कन्नड़ दलित साहित्यकार माननीय सिद्धलिंगय्या (1954 से 11 जून 2021) का जाना एक युग का बीत जाना है.

कन्नड़ के जाने माने व पूरी संजीदगी से पढ़े जाने वाले  वरिष्ठ दलित साहित्यकार माननीय सिद्धलिंगय्या का जन्म  3 फरवरी 1954 में मनचनाबेले, मगदी, कर्नाटक में हुआ। सिद्धलिंगय्या लगभग पिछले 30-35 वर्षों से दलित लेखन एवं सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में नियमितरूप से सक्रिय थे। इसके अतिरिक्त वे कर्नाटक राज्य की प्रमुख दलित बुलंद आवाज़ों में से एक थे तथा कन्नड़ दलित साहित्य के शुरूआती पहली पीढ़ी के लेखकों में शुमार थे। इन्होंने कन्नड़ भाषा में स्वर्ण पदक के साथ एम.ए. की डिग्री प्राप्त की, बाद में बंगलोर विश्वविद्यालय से पी.एच.डी. पूरी की । पिछले तीस वर्षों से स्नात्तकोत्तर स्तर के छात्रों को ‘ सेन्टर ऑफ कन्नड़ स्टडिज ‘ बंगलोर यूनिवर्सिटी में पढ़ाया और आर्टस फैकल्टी के डीन भी रहे।

सिद्धलिंगय्या न केवल लेखन कार्य में सक्रिय रहे बल्कि इस वैचारिक ताप को राजनीतिक कार्यभारों द्वारा व्यावहारिक रूप भी प्रदान किया। 1988 से लेकर 2001 तक वे एम.एल.ए. रहे। इसके अलावा उन्होंने विभिन्न बोर्ड , आयोग , मंत्रालय का कार्यभार भी संभाला। हाल तक में कर्नाटक सरकार के कन्नड़ विकास प्राधिकरण के चैयरमेन
के पद पर कार्यरत थे।

उन्होंने मुख्यता कविता के साथ साथ नाटक व आलोचना में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान सिद्ध किया। साथ ही 1974 में बनी ‘दलित संघर्ष समिति’ के संस्थापकों के रूप में भी उनका योगदान उल्लेखनीय था। सिद्धलिंगय्या जी अपने पीछे आठ से अधिक पुस्तकों का एक बड़ा काव्यसंग्रहों, आत्मकथा, नाटक, निबंध संग्रह, लघुकथा, कहानी संग्रह व कुछ अनुवादित पुस्तकों का बड़ा समूह छोड़ गए हैं। जिनमें से निम्नलिखित कन्नड़ कृतियों के नाम प्रमुखता से लिए जा सकते हैं।-

1. होलेमादिगारा हादु (होलीया और मदिगा के गीत, 1975)
2. साविरारु नादिगालु (हजारों नदियाँ,1979)
3. कप्पू कादिना, हादु (द सॉन्ग ऑफ द ब्लैक फॉरेस्ट, 1982)
4. आयदा कविथेगलु (चयनित कविताएँ,1997)
5. मेरावनिगे (जुलूस,2000)
6. नन्ना जनगलु मट्टू इतारा कवितागलु (मेरे लोग और अन्य कविताएँ, 2005),
7. कुदिवा नीलिया कदलु (2017)
8. ऊरु सागरवगी (2018)

उनका पहला कन्नड़ काव्यसंग्रह ‘होल मदीगारा हदु’ नाम से 1975 आया। इसी के साथ कन्नड़ दलित साहित्य की दुनिया में उनका योगदान शामिल हुआ। उनकी कविताएँ में – निन्ने दिन नन्ना जाना, यारिगे बंटू, एलीगे बंटू नलवत्तेलारा स्वातंत्र्य, ओडिरला, इकराला जैसी रचनाओं को आंदोलन व वंचित समाज की आवाज का प्रयाय माना जाता है।

उनकी आत्मकथा ‘ऊरु केरी’ तीन खंडों में आई। जिसका पहला खंड 1997 में, दूसरा 2006 में तथा तीसरा खंड 2014 में प्रकाशित हुआ। ऊरु केरी के पहले खंड को साहित्य अकादमी दिल्ली द्वारा 2003 में प्रकाशित किया तथा ‘ऊरु केरी’ के पहले खंड ‘गांव गली’ का हिंदी अनुवाद प्रो. टी. वी. कट्टीमनी ने किया। उन्होंने तीन नाटक 1.पंचम  2.नेलसामा  3.एकलव्य लिखे। जिसमें से एकलव्य को  बारहवी कक्षा के पाठ्यक्रम में पढाया जाता है तथा अनेक थेटरों में इसको कई बार मंचित भी किया गया और नुक्कड नाटकों में यह बहुत आम था। साथ ही कहानी संग्रह : अवतार-1981, यड-बल ( राइट लेफ्ट )। इसके अलावा कुछ आलोचनात्मक पुस्तकें भी उन्होंने लिखी जिनके नाम हैं – अवतारगलु, ग्रामदेवतेगलु, हक्किनोटा जनसंस्कृति और आ मुख ए मुख: भी उनके साहित्य कर्म को समृद्ध करते हैं।

सिद्धलिंगय्या जी बैंगलोर विश्वविद्यालय में कन्नड़ के प्रोफेसर पद पर कार्यरत थे और मात्र 34 वर्ष की उम्र में, सन 1988 में, कर्नाटक विधान परिषद के सदस्य हुए। उन्हें अनेक पुरस्कारों से नवाजा गया जिनमें- कर्नाटक सरकार द्वारा 2019 में उन्हें कन्नड़ में सर्वोच्च साहित्यिक पुरस्कार “पम्पा पुरस्कार” से सम्मानित किया गया था। 2018 में बीबीएमपी द्वारा नृपतुंगा पुरस्कार, 2007 में हम्पी विश्वविद्यालय द्वारा नादोजा पुरस्कार, 1986 में कर्नाटक सरकार द्वारा कर्नाटक राज्योत्साव पुरस्कार तथा 1998-99 में कर्नाटक राज्य फिल्म पुरस्कार (सर्वश्रेष्ठ गीतकार) फिल्म ‘प्रतिभातने’ के गीत हसीविनिंदा सत्थोरू के लिए दिया गया। इसके अतिरिक्त सिद्धलिंगय्या को उनके योगदानों के लिए बाबू जगजीवन राम अवार्ड 2005 , ( कर्नाटक ), डॉ अम्बेडकर अवार्ड 2002, बेहतरीन फिल्मी गाने के लिए 1984, 1999 का कर्नाटक सरकार द्वारा अवार्ड। इसके अतिरिक्त कर्नाटक साहित्य अकादमी की तरफ से उनके उल्लेखनीय साहित्यिक कार्यों के लिए 1996 में सम्मान भी दिया गया।

सिद्धलिंगय्या जी का जाना कन्नड़ दलित साहित्य की अपूरणीय क्षति के रूप में माना जायेगा। यूट्यूब चैनल पर उनके अनेक व्याखान उपलब्ध हैं। जिन्हे सुनकर उनकी  मानवीय मूल्यों के प्रति चेतना को समझा जा सकता है।

डॉ. सिद्धलिंगय्या की सुप्रसिद्ध कविताएँ

1.नन्न जनगलु

अनुवाद — सुरेश मुले

अपने लोग
__________

भूख से मरनेवाले
पत्थरों को ढोनेवाले
लातों के दर्द सहनेवाले,
देखो ऐसे हैं अपने लोग, ऐसे हैं मेरे जन
हाथ पैर पकडनेवाले
हाथ बांधे रहनेवाले
भक्त बन बैठे हैं कैसे ये मेरे जन
खेतों में हल जोतनेवाले
फसल काटते काटते
पसीने से भिगनेवाले
कड़ी धूप में सदा तपनेवाले
देखो ऐसे हैं अपने लोग , मेरे लोग ।
खाली हाथ आने वाले
उशः कहकर बैठनेवाले ,
पेट कपडा बांधे मेहनत करनेवाले
देखो वे अपने लोग , देखो वे मेरे लोग।

मिट्टी के घर बनानेवाले,
बंगलों का निर्माण करनेवाले,
नीव में ही फंसनेवाली
मेरी जनता ।

गलियों में गिरनेवाली
दर्द सहे  मौन उठनेववाली ,
अंदर ही सिसकियाँ भरनेवाली , मेरी जनता।
कर्जे का ब्याज देनेवाली ,
भाषणों की आग में सुलनेवाली ,  मेरी जनता ।
परमात्मा का नाम बताकर, मिस्ठान खानेवालों के
बुट- चप्पल सिलनेवाली, मेरी जनता ।
खान से सोना निकालनेवाली ,
पर खाना ही न पानेवाली ,
महीन कपडा बुननेवाली,
नंग- धड़ंग ही जानेवाली ,
जो कहे वह सुननेवाली, मेरी जनता ।
हवा में ही जीनेवाली मेरी जनता।।

2.साविरारु नादिगालु
अनुवाद — तेजस्वी कट्टीमनी

हजारों नदियाँ
____________

कल के दिन
मेरे जन
पहाड़ बनकर आये थे ।
काला चेहरा सफेद दाढ़ी धधकती आंखे
दिन रात चीरकर लात मारे नींद को
कंबल फट चुके उनके कोध से
धरती कांप उठी उनके पागल नृत्य से ।
चींटियों सी रेंगते बाघ शेर की दहाड़
धिक्कार है धिक्कार है अमीरों के घमंड का
लाखों नाग छोड़ आये अपना वाल्मीकि
गांव भर रेंग गये
पाताल में उतर गये
आकाश को छलांग मारे
हाट बाट में
पेड़ पौधों की आड़ में
साहूकारों के महल में मालिक की गद्दी में
हर कहीं मेरे जन पानी की तरह ठहर गये ।
इनका मुंह खुलते ही
उनका मुंह बंध गया
इनकी आवाज सुनते ही
उनकी आवाज दब गयी
क्रांति की आंधी में हाथ हिलाये मेरे जन
छड़ी प्रहार करने वालों की
गर्दन पकड़ी
पुलिसों की लाठी दलालों के कठार
वेद शास्त्र पुराण बंदूकों के गोदाम
सूखे पत्ते कूड़े कचरे बन
आंधी में बह गये
विद्रोह के सागर की
हजारों नदियाँ।।

(हीरालाल राजस्थानी, पूर्वअध्यक्ष : दलित लेखक संघ, दिल्ली.
जन्म : 9 जून 1968, प्रसाद नगर, दिल्ली.
शिक्षा : बी एफ ए (मूर्तिकला विशेष), फैकल्टी ऑफ फाइन आर्ट, जामिया मिल्लिया इस्लामिया, दिल्ली.
कार्यक्षेत्र : कलाध्यापक दिल्ली प्रशासन.
कविता संग्रह : मैं साधु नहीं
संपादन : गैर दलितों की दलित विषयक कहानियां
संपादन : ‘प्रतिबद्ध’ दलित लेखक संघ की मुखपत्र पत्रिका व दलित कविताओं की तीन पीढियां एक संवाद.)
फोन नं. 9910522436
ईमेल : hiralal20000168@gmail.com)

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