(समकालीन जनमत की प्रबन्ध संपादक और जन संस्कृति मंच, उत्तर प्रदेश की वरिष्ठ उपाध्यक्ष मीना राय का जीवन लम्बे समय तक विविध साहित्यिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक हलचलों का गवाह रहा है. एक अध्यापक और प्रधानाचार्य के रूप में ग्रामीण हिन्दुस्तान की शिक्षा-व्यवस्था की चुनौतियों से लेकर सांस्कृतिक संकुल प्रकाशन के संचालन, साहित्यिक-सांस्कृतिक आयोजनों में सक्रिय रूप से पुस्तक, पोस्टर प्रदर्शनी के आयोजन और देश-समाज-राजनीति की बहसों से सक्रिय सम्बद्धता के उनके अनुभवों के संस्मरणों की श्रृंखला हम समकालीन जनमत के पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं. -सं.)
ससुराल
रूप भी दिखा। मेरी तबीयत खराब थी। सर्दी ज़ुकाम और बुखार भी था। पूरा बदन दर्द कर रहा था। कमरे में सिर बांधकर लेटी थी। कमरे में आईं और मुझे इस हाल में देखकर दरवाजा बंद कर मेरे मना करने के बावजूद मेरा सिर और कंधा, पीठ आदि दबाईं।
उसके बाद विदाई की तैयारी होने लगी। ननद लोग ही मायके में सबको देने के लिए मेरे बक्से से साड़ियां निकालीं। मैंने ननद से ही कहा कि पहली बार मायके जा रही हूं तो जेवर भी ले जाना चाहती हूं, उसके बाद नहीं ले जाऊंगी। मुझे जेवर पहनने का कोई शौक भी नहीं है। मां भइया से कहलवाई है कि पहली बार लोग देखते हैं। ननद जाकर मां से बोली होगीं। माता जी और ननद मेरे कमरे में आईं और बताईं कि उधर तुम्हारे भइया को तिलक पर पैसा चढ़ाने से मुन्ना ने रोक दिया और इधर तुम्हारे लिए जेवर बनवाने से भी उसी ने मना कर दिया। मैंने कहा ठीक ही किए, जब पैसा ही नहीं मिला तो जेवर कहां से बनता। कोई बात नहीं दीदी। जो मायके से मिला है वही लेकर चली जाऊंगी। आपलोग परेशान न हों।