लखनऊ. इन दिनों लखनऊ का घंटाघर सुर्खियों में है। शाहीनबाग से सीएए, एनआरसी और एनपीआर के विरोध में औरतों ने जिस धरने के शुरुआत की थी, उसने विरोध की एक नयी राह दिखाई। सबसे बड़ी खूबी यह थी कि इसकी पहल औरतों ने की। एक नहीं, कई शाहीनबाग देश में खड़े हो गये। इसने जन आन्दोलन का रूप ले लिया। इस तरह के आन्दोलन का, जिसमें महिलाएं केन्द्र में हों, कोई दूसरा उदाहरण शायद ही मिले।
इस आंदोलन को बदनाम करने तथा जन मानस को इसके विरोध में खड़ा करने की कम कोशिश नहीं की गयी। पर आन्दोलन जारी है। इसके आवेग में कोई कमी नहीं दिख रही। बल्कि यह व्यापक हुआ है, हो रहा है। इसी की कड़ी में लखनऊ के घंटाघर पर औरतें धरना दे रही हैं। 9 फरवरी 2020 को उनके धरने का 24 वां दिन था।
17 जनवरी को कुछ महिलाएं दिल्ली के शाहीनबाग की तर्ज पर लखनऊ के घंटाघर पर आकर बैठ गई। उनकी जिद थी कि सरकार सीएए कानून वापस ले। उनका कहना था कि हमें एनआरसी, एनआरपी स्वीकार नहीं। उनका नारा था – हम कागज नहीं दिखायेंगे। वे संख्या में कम थी पर दो दिन बाद उनकी संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई। घंटाघर पर औरतों की संख्या बढ़ती गई। धरना से लेकर व्यवस्था तक को इन्होंने अपने हाथ में लिया। उत्तर प्रदेश पुलिस-प्रशासन की ज्यादितयों को भी औरतों ने सहा। आन्दोलन को खत्म कराने तथा घंटाघर से औरतों को हटाने के लिए योगी सरकार की पुलिस क्रूर और निरंकुश हो गयी। उसने क्या नहीं किया ?
देखा गया है कि समाज में जब भी उथल-पुथल मचता है, आलोड़़न आता है, उसकी अभिव्यक्ति सबसे पहले कविता और सहित्य में होती है। शाहीनबाग का आंदोलन ऐसा ही है। इस दौरान बड़ी संख्या में कविताएं लिखी गयीं। गीतों की रचना हुई। नुक्कड़ नाटक खेले गये, खेले जा रहे हैं। पोस्टर बनाये गये। सोशल मीडिया को लोगों ने अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम ही नहीं मंच बनाया है। इस संदर्भ में दिल्ली की संस्कृतिक टीम ‘संगवारी’ की चर्चा करना प्रासंगिक होगा। इस टीम ने सीएए, एनआरसी और एनपीआर को लेकर खास कार्यक्रम तैयार किया है। इस टीम के मुख्य कर्ता-धर्ता लेखक व संस्कृतिकर्मी कपिल शर्मा हैं। उनके नेतृत्व में शाहीनबाग व कई जगह कार्यक्रम किये गये।