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झारखंड जनाधिकार महासभा ने स्टैन स्वामी पर कुर्की कार्यवाही की निंदा की

21 अक्टूबर को खूंटी पुलिस ने रांची के निकट नामकुम में स्थित बगाइचा परिसर में 83-वर्षीय स्टैन स्वामी के निवास पर कुर्की कार्रवाई की. पुलिस उनके कमरे से दो टेबल, तीन कुर्सी, एक अलमारी और एक गद्दा जप्त कर के ले गयी. स्टैन इस दौरान मौजूद नहीं थे.

यह कुर्की स्टैन (व 19 अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं व बुद्धिजीवियों) के विरुद्ध दर्ज देशद्रोह के मामले में की गयी. जुलाई 2018 में खूंटी पुलिस ने पत्थलगड़ी मुहीम में लोगों को भड़काने के आरोप में उनपर देशद्रोह का मामला दर्ज किया था. प्राथमिकी उनके द्वारा किए गए फेसबुक पोस्ट्स के आधार पर दर्ज किया गया था. इन पोस्ट्स में मुख्यतः पत्थलगड़ी गावों में सरकार की कार्रवाई व आदिवासियों के अधिकारों पर हो रहे हमलों के विरुद्ध टिपण्णी की गयी थी. देशद्रोह के आरोप के साथ-साथ, उनपर सूचना प्रोद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66A अंतर्गत भी मामला दर्ज किया गया है. मज़ेदार बात है कि सर्वोच्च न्यायालय ने धारा 66A को 2015 में ही निरस्त कर दिया था. हाल में किए गए तथ्यान्वेषण में झारखंड जनाधिकार महासभा ने पाया था कि राज्य सरकार द्वारा पत्थलगड़ी आन्दोलन के विरुद्ध भयानक दमन और हिंसा की गई है. मानवाधिकारों का व्यापक उल्लंघन हुआ है. हजारों आदिवासियों के विरुद्ध देशद्रोह का फ़र्ज़ी मामला दर्ज किया गया है. स्टैन के फेसबुक पोस्ट्स अनुलग्नक 1 में देखें.

अगस्त 2018 में स्टैन स्वामी (व अलोका कुजूर, राकेश रोशन किरो एवं विनोद कुमार, फेसबुक पोस्ट्स सम्बंधित मामले में आरोपित अन्य तीन व्यक्तियों) ने प्राथमिकी को ख़ारिज करने की अपील उच्च न्यायालय में की. जब उच्च न्यायालय में इस मामले में सुनवाई चल रही थी, उसी दौरान खूंटी कोर्ट ने 19 जून 2019 को, स्थानीय पुलिस के दलील के आधार पर, इनके विरुद्ध गिरफ़्तारी का वारंट जारी कर दिया (IPC के धारा 73 के अंतर्गत). यह गौर करने की बात है कि ऐसा वारंट तभी निर्गत किया जा सकता है जब यह साबित हो कि अभियुक्त छुपा हुआ है अथवा गिरफ़्तारी से बचने का प्रयास कर रहा है. वारंट निर्गत होने से पहले, न तो खूंटी पुलिस ने स्टैन व अन्य तीन अभियुक्तों के घर जाकर उनकी उप्लब्द्धता के विषय में पूछ-ताछ की और न ही उन्हें इस सम्बन्ध में किसी प्रकार का नोटिस भेजा. इससे वारंट की वैध्यता पर ही सवाल उठता है. सोचने की बात है कि इसके ठीक एक सप्ताह पहले, भीमा-कोरेगांव मामले में महाराष्ट्र पुलिस द्वारा, झारखंड पुलिस की उपस्थिति में, स्टैन के कमरे पर छापा मारा गया था (भीमा-कोरेगांव मामले में स्टैन व अन्य 10 राष्ट्रीय मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर फ़र्ज़ी आरोप दर्ज किए गए हैं). छापे के दौरान स्टैन की बगईचा में उपस्थिति की खबर मीडिया में भी आई थी. इसके बावज़ूद, खूंटी पुलिस ने एक सप्ताह के अन्दर उनके विरुद्ध गिरफ़्तारी का वारंट निर्गत करवा लिया.

चारों अभियुक्तों ने गिरफ़्तारी वारंट के विरुद्ध उच्च न्यायलय में अपील दायर की थी. उसके कुछ दिनों में ही, 22 जुलाई 2019 को, खूंटी कोर्ट ने पुलिस के दलील पर स्टैन को भगोड़ा घोषित कर दिया. इसके विरुद्ध भी स्टैन ने उच्च न्यायालय में अपील दायर की. 24 सितम्बर को खूंटी कोर्ट ने कुर्की का आदेश दे दिया. स्टैन के वकील ने इस विरोधाभास को न्यायालय के समक्ष रखा कि जिस दौरान खूंटी पुलिस ने स्टैन को भगोड़ा घोषित किया था, उसी दौरान वे भीमा-कोरेगांव मामले में अपने आवास पर मौजूद रहकर जांच में पूर्ण सहयोग कर रहे थे. इससे यह स्पष्ट समझ में आता है कि न वे भागे हुए थे और न ही जांच में सहयोग करने से मना कर रहे थे. जब न्यायालय ने इस विषय पर सरकारी वकील से स्पष्टता मांगी, तो वकील द्वारा समय की मांग की गयी. न्यालालय ने उन्हें अगली सुनवाई (23 अक्टूबर) को यह स्पष्ट जवाब देने को बोला कि किस आधार पर स्टैन को भगोड़ा माना जा रहा है. सुनवाई के ठीक दो दिनों पहले हुई इस कुर्की से पता चलता है कि स्टैन द्वारा उनकी गिरफ़्तारी वारंट को निरस्त करने की अपील को निष्फल करवाने की पुलिस द्वारा यह एक कोशिश है.

स्टैन झारखंड के एक जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता हैं. वे कई वर्षों से राज्य के आदीवासी व अन्य वंचित समूहों के लिए कार्य कर रहे हैं. उन्होंने विशेष रूप से विस्थापन, संसाधनों की कंपनियों द्वारा लूट, विचाराधीन कैदियों, पेसा कानून, व वन अधिकार अधिनियम, व सम्बंधित कानूनों पर काम किया है. स्टैन ने समय समय पर सरकार के भूमि अधिग्रहण कानूनों में संशोधन करने के प्रयासों की आलोचना भी की है.

महासभा सामाजिक कार्यकर्ताओं व बुद्धीजीवियों, जो भाजपा सरकारों की नीतियों की आलोचना करते रहे हैं, के प्रतारण की कड़ी निंदा करती है. इस प्रकार की कार्रवाई असहमति की आवाजों को दबाने एवं वंचित समूहों के अधिकारों के लिए कार्यरत लोगों में भय पैदा करने के लिए सरकार द्वारा प्रयास हैं. विधान सभा चुनाव के ठीक पहले स्टैन को भगोड़ा घोषित करने और कुर्की कार्रवाई करना भाजपा द्वारा भ्रम फैला कर चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश लगती है.

स्टैन एक बेहद सौम्य, सच्चे व जनता के हित में कार्य करने वाले व्यक्ति हैं. झारखंड जनाधिकार महासभा का उनके व उनके कार्य के लिए उच्चत्तम सम्मान है. महासभा मांग करती है कि स्टैन व अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं पर लगे देशद्रोह व अन्य झूठे मुकदमें वापिस लिए जाए एवं प्राथमिकी को रद्द की जाए. साथ ही, पत्थलगड़ी गावों में मानवाधिकार उल्लंघन एवं स्टैन स्वामी व अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं पर झूठा मुकदमा बनाने के लिए ज़िम्मेवार खूंटी पुलिस के विरुद्ध कार्रवाई की जाए.

झारखंड जनाधिकार महासभा द्वारा जारी

 

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