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झारखंड जनअधिकार महासभा ने स्टैन स्वामी के घर छापामारी की कड़ी निंदा की

रांची. झारखंड जनअधिकार महासभा ने स्टैन स्वामी पर बार-बार हो रही छापामारी और अन्य मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी की कड़ी निंदा की है.

महासभा की ओर से जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि 12 जून की सुबह करीब 7:15 बजे महाराष्ट्र पुलिस की आठ-दलीय टीम ने रांची के निकट नामकुम में स्थित बगाइचा परिसर में 83-वर्षीय स्टैन स्वामी के निवास पर छापा मारा. पुलिस ने साढ़े तीन घंटों तक उनके कमरे की छानबीन की. पुलिस ने स्टैन स्वामी की हार्ड डिस्क और इंटरनेट मॉडेम ले लिया और जबरन उनसे उनके ईमेल व फ़ेसबुक के पासवर्ड मांगे. उसके बाद पुलिस ने ये दोनों पासवर्ड बदले और दोनों अकाउंट को ज़ब्त कर लिया. पिछले वर्ष 28 अगस्त 2018 को भी महाराष्ट्र पुलिस ने स्टैन स्वामी के कमरे की तालाशी ली थी.

स्टैन झारखंड के एक जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता हैं. वे कई वर्षों से राज्य के आदीवासी व अन्य वंचित समूहों के लिए सालों से कार्य कर रहे हैं. उन्होंने विशेष रूप से विस्थापन, संसाधनों की कंपनियों द्वारा लूट, विचाराधीन कैदियों व पेसा कानून पर काम किया है. स्टैन ने समय समय पर सरकार की भूमि अधिग्रहण कानूनों में संशोधन करने के प्रयासों की आलोचना की है. साथ ही, वे वन अधिकार अधिनियम, पेसा, व सम्बंधित कानूनों के समर्थक हैं. वे एक बेहद सौम्य, सच्चे व जनता के हित में कार्य करने वाले व्यक्ति हैं. झारखंड जनाधिकार महासभा का उनके व उनके कार्य के लिए उच्चत्तम सम्मान है.

महासभा सत्ता में आए राजनैतिक दल व सरकार की आलोचना करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं व बुद्धीजीवियों के प्रतारण व गिरफ़्तारी से बेहद हैरान है. पिछले वर्ष सुरेन्द्र गाडलिंग, सुधीर धावले, महेश राउत, शोमा सेन और रोना विलसन को 6 जून को गिरफ़्तार किया गया था. वे अभी तक येरवाड़ा केन्द्रीय जेल में कैद हैं. 28 अगस्त 2018 को पुलिस ने पांच अन्य कार्यकर्ताओं – सुधा भारदवाज, अरुण फेरेरा, वेर्नन गौन्जाल्विस, वरावरा राव और गौतम नवलखा – को गिरफ़्तार किया. ये लोग भी अभी तक रिहा नहीं हुए हैं. ये छापामारियाँ व गिरफ्तारियां वंचित समूहों के अधिकारों के लिए कार्यरत लोगों में भय पैदा करने के लिए सरकार द्वारा प्रयास हैं.

केंद्र सरकार व भाजपा के करीबी मीडिया के अनुसार ये मानवाधिकार कार्यकर्ता भीमा-कोरेगांव मामले से सम्बंधित एक माओवादी साज़िश के हिस्सेदार हैं.

झारखंड जनाधिकार महासभा मांग करती है कि इन कार्यकर्ताओं की छापामारियाँ तुरंत बंद हो, उनके विरुद्ध सब झूठे मुक़दमे वापस लिए जाए और जो जेल में कैद हैं, उनकी तुरंत रिहाई हो.

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