जुल्म के खिलाफ सांस्कृतिक प्रतिरोध के लिए एकजुटता जरूरी
लखनऊ। भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) लखनऊ ने इप्टा के 75 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में स्थापना दिवस अपने कार्यालय 22 कैसरबाग में जनगीतों एवं नाटक ‘हवालात’ की प्रस्तुति के साथ मनाया।
कार्यक्रम के आरम्भ में इप्टा के राष्ट्रीय महासचिव राकेश ने इप्टा के इतिहास पर विस्तार से प्रकाश डाला. उन्होंने बताया कि यह गौरव की बात है कि जानी मानी लेखिका डॉ रशीद जहाँ तथा अमृतलाल नागर के नेतृत्व में लखनऊ में इप्टा की स्थापना हुई थी. इसकी सांस्कृतिक व्यापकता ही थी कि इससे न सिर्फ संस्कृति के क्षेत्र की बड़ी हस्तियां जुड़ीं बल्कि मशहूर वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा, देश के प्रसिद्ध मजदूर नेता एन एम जोशी, कम्युनिस्ट नेता हीरेन मुखर्जी, कलाकार चित्तो प्रसाद जैसों की इसके गठन में महत्वपूर्ण भूमिका रही। इसकी पहली महासचिव श्रीलंका मूल की अनिला डि सिल्वा थी।
आज हम जिस दौर में हैं वह चुनौतियों से भरा है। हमने इसे स्वीकार किया है। पूरे साल देश भर में इप्टा का प्लैटिनम जुबली समारोह का आयोजन किया जायेगा और इसके माध्यम से जनता के बड़े हिस्से तक हम पहुंचेंगे।
इस मौके पर जन संस्कृति मंच के प्रांतीय कार्यकारी अध्यक्ष, कवि एवं लेखक कौशल किशोर ने शुभकामनाएं देते हुए कहा कि इप्टा का स्वरूप सांस्कृतिक जन आंदोलन का रहा है। उसने सामाजिक सवालों को भी अपने संस्कृतिक कर्म के माध्यम से संबोधित किया। प्रगतिशील आंदोलन की यह बड़ी विशेषता रही कि उसने हिन्दी और उर्दू के रचनाकारों को गोलबन्द किया, उन्हें डी कास्ट व डी क्लास किया। आज जब इतिहास को विकृति किया जा रहा है, गाोडसे का महिमामंडन हो रहा है, शिक्षा, संस्कृति व ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र का भगवाकरण किया जा रहा है, यह आज के समय की जरूरत है कि इप्टा एवं अन्य सांस्कृतिक संगठन मिल कर किसान, मजदूर, दलित, महिलाओं पर हो रहे जुल्म के खिलाफ अपना प्रतिरोध दर्ज करें ।
सी आई टी यू के प्रांतीय सचिव आर एस बाजपेयी ने भी अपनी शुभकामनाएं प्रस्तुत कीं। उन्होंने कहा कि आज ऐसे माध्यम की जरूरत है जिससे हम ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच सके तथा जनता की चेतना को उन्नत कर सके।
आयोजन का प्रमुख आकर्षण गीत गायन और नाट्य प्रदर्शन था। युवा संगीतकार कमलाकांत के निर्देशन में गोरख पाण्डे के गीत ‘हमारे वतन की नई जिन्दगी हो, नई जिन्दगी एक मुक्कमल खुशी हो’ नागार्जुन की कविता ‘नये गगन में नया सूर्य जो चमक रहा है’ तथा शलभ श्रीराम सिंह के मार्चिग सांग ‘नफस नफस कदम कदम’ की प्रस्तुतियों के साथ कार्यक्रम की शुरुआत हुई। इसमें सुशील बनर्जी, ज्ञानचंद्र शुक्ला, संध्या दीप, छाया बनर्जी, राजू पाण्डे और खुशी अरोरा शामिल रहे।
इसके बाद प्रख्यात कवि एवं नाटककार सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के नाटक पर केन्दित ‘हवालात’ का मंचन किया गया। नाटक को सामयिक बनाने के लिए इसमें आज के सन्दर्भों को जोड़ा गया है। नाटक में भगवा सिंह, धर्मवीर एवं कसाब अली नामक तीन भटके हुए नवयुवक हैं जो गोरक्षा एवं हिन्दू तथा मुस्लिम कट्टरता के आधार पर निर्दोष लोगों की हत्या करते हैं ताकि उन्हें प्रसिद्धि मिल सके। इसलिए वो एक महिला पुलिस दरोगा से हवालात ले जाने की गुहार लगाते हैं। बहुत सारी मनोरंजक एवं नाटकीय घटनाओं के बीच यह युवक अपने उद्देश्य में सफल नहीं होते हैं।
नाटक में दरोगा के रूप में रजनी, तथा तीन नवयुवकों की भूमिकाएं अनुज, शेखर तथा बबलू खान ने निभाईं हैं। नाटक का निर्देशन युवा कलाकार इच्छा शंकर ने किया। इस मौके पर वेदा राकेश, प्रदीप घोष, अजय सिंह, उषा राय, विमल किशोर, किरन सिंह, कल्पना पाण्डेय आदि मौजूद थे.