समकालीन जनमत
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20 साल से नियम-कानून की धज्जियाँ उड़ाती रही है वेदांता

साल था 1992. केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी. प्रधानमंत्री थे पी. वी. नरसिम्हा राव. एक साल पहले 1991 में विदेशी पूँजी के लिए भारत के सारे दरवाजे खोल दिए गए थे. महाराष्ट्र में भी कांग्रेस सत्ता में थी. मुख्यमंत्री थे सुधाकर राव नाईक. इसी साल महाराष्ट्र इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कारपोरेशन ने रत्नागिरी के ज़दगांव में स्मेल्टर (जहाँ धातुओं को गलाया जाता है) बनाने के लिए 500 एकड़ जमीन एक कंपनी को आबंटित किया.

स्थानीय लोगों द्वारा इसका बहुत विरोध हुआ. मामला कोर्ट में पहुँच गया. उधर कंपनी निर्माण शुरू कर चुकी थी. एक साल बीत गया. साल था 1993. तारीख थी 15 जुलाई. रत्नागिरी के जिला कलेक्टर ने कंपनी को अपना निर्माण बंद करने का आदेश दे दिया. लोगों का विरोध जारी था। कंपनी 100 करोड़ खर्च कर चुकी थी। मामला अभी कोर्ट में लंबित है. कंपनी पहुंची जिला तूतीकोरिन ( स्थानीय नाम तुथुकूड़ी). तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई से करीब छह सौ किलोमीटर दूर. तब तमिलनाडु की मुख्यमंत्री थीं जयललिता.

साल 1994. तारीख 1 अगस्त। तमिलनाडु पॉल्यूशन कण्ट्रोल बोर्ड ने इस कंपनी को “नो ऑब्जेक्शन” सर्टिफिकेट दे दिया. लेकिन कहा कि कंपनी मन्नार की खाड़ी से 25 किमी दूर होनी चाहिए. कंपनी के पास पर्यावरण प्रभाव आकलन नहीं था बावजूद इसके वन और पर्यावरण मंत्रालय ने 16 जून 1995 को पर्यावरणीय मंजूरी दे दी. मन्नार की खाड़ी से 25 किमी के बाहर कंपनी को स्मेल्टर बनाना था लेकिन कंपनी 14 किमी के भीतर की स्मेल्टर बनाने लगी.

फिर से स्थानीय लोगों का विरोध शुरू हुआ. तमिलनाडु पॉल्यूशन कण्ट्रोल बोर्ड ने लाइसेंस दे दिया और कहा कि कंपनी 25 मीटर के दायरे में ग्रीनबेल्ट बनाये और यदि कंपनी जल और वायु प्रदूषित करेगी तो लाइसेंस रद्द कर दिया जायेगा.

नेशनल ट्रस्ट फॉर क्लीन एन्वायरमेंट ने फैक्ट्री पर केस कर दिया. स्थानीय विरोध लगभग ख़त्म सा हो गया.

5 मई 1997 को कंपनी से गैस लीक होने की वजह से कंपनी के करीब रमेश फ्लावर्स की एक महिला कर्मचारी बीमार हुई और कई कर्मचारी बेहोश हो गए.
पुनः 20 मई 1997 को तमिलनाडु विद्युत बोर्ड के एक कर्मचारी ने शिकायत की कि कम्पनी के धुएं की वजह से सिरदर्द, कफ और घुटन हो रही है. तमिलनाडु पॉल्यूशन कण्ट्रोल बोर्ड ने ध्यान नहीं दिया.

माह नवम्बर, साल 1998. मद्रास हाई कोर्ट (नेशनल ट्रस्ट फॉर क्लीन एन्वायरमेंट के केस में) के निर्देशन में राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान का एक अध्ययन सामने आया. स्मेल्टर मन्नार की खाड़ी से 14 किमी दूर ही बना है, ग्रीनबेल्ट नहीं बनाया गया. जल और वायु प्रदूषित हो रहा है, गैस लीक हुई थी.

23 नवम्बर 1998 को मद्रास हाई कोर्ट ने फैक्ट्री को बंद करा दिया. ठीक एक हफ्ते बाद मद्रास हाई कोर्ट ने फैक्ट्री को चालू करने का आदेश दे दिया और राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान,नागपुर को पुनः अध्ययन करने को कहा. संस्थान ने दो महीने के भीतर ही अध्ययन करके रिपोर्ट तैयार की और फैक्ट्री को क्लीन चिट दे दिया गया.

2 मार्च 1999 में आल इंडिया रेडियो के 11 कर्मचारियों ने गैस लीक की शिकायत की. उनको गैस लीक की वजह से उलझन हुई लिहाजा वो हॉस्पिटल गये. तमिलनाडु पॉल्यूशन कण्ट्रोल बोर्ड ने फिर से फैक्ट्री को क्लीन चिट दे दिया. बाद में भी स्थानीय लोगों ने कई बार बोर्ड में शिकायत की थी.

यहाँ ध्यान देने की बात ये है कि स्मेल्टर के बनने से पहले ही पर्यावरणीय प्रभाव आकलन हो जाना चाहिए था लेकिन इसकी रिपोर्ट सिर्फ एक बार 2003 में तैयार हुई. तमिलनाडु पॉल्यूशन कण्ट्रोल बोर्ड ने फैक्ट्री की क्षमता 40000 टन से 30000 टन ज्यादा यानी 70000 टन कॉपर उत्पादन के लिए कहा लेकिन 2004 में फैक्ट्री ने 175242 कॉपर का उत्पादन किया.  उत्पादन को बढ़ाने के लिए फैक्ट्री ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी. सितम्बर 2004 में ही सुप्रीम कोर्ट की जाँच कमेटी ने निरीक्षण किया. निरीक्षण के बाद टीम ने पाया कि सालाना 300000 टन उत्पादन की मंजूरी न दी जाय.

निरीक्षण के वक्त फैक्ट्री ने उत्पादन बढ़ाने के लिए प्लांट तैयार कर लिए थे।
इसके ठीक  एक दिन बाद ही पर्यावरण और वन मंत्रालय ने फैक्ट्री को पर्यावरणीय मंजूरी दे दी। साथ ही इसी साल अगस्त में सल्फ्यूरिक एसिड बनाने के लिए कंपनी ने प्लांट बना लिए जबकि तमिलनाडु पॉल्यूशन कंयरोल बोर्ड की मंजूरी ही नहीं मिली थी।

2008 में फैक्ट्री ने कॉपर उत्पादन क्षमता 900 टन प्रति दिन से बढाकर 1200 टन प्रति दिन कर लिया।

28 सितम्बर 2010 को पुनः मद्रास हाई कोर्ट ने फैक्ट्री को बंद करने का आदेश दिया लेकिन तीन दिन बाद सुप्रीम कोर्ट ने स्टे लगा दिया। 2 अप्रैल 2013 को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत में कॉपर (तांबा) के उत्पादन में इस फैक्ट्री का बड़ा योगदान है। यह फैक्ट्री 1300 लोगों को रोजगार दे रही है। इसके मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने फैक्ट्री पर 100 करोड़ का जुर्माना लगाया. यह राशि पर्यावरण पर खर्च होगी, ऐसा कहा।

साल 2013 में ही गैस लीक के कई मामले सामने आये जिससे लोगों को घुटन, कफ की दिक्कत हो रही थी। स्थानीय लोगों ने शिकायत करके कहा कि हवा में सल्फर डाई ऑक्साइड ज्यादा है जो फैक्ट्री से लीक होकर हवा में मिल रहा है।

तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने प्लांट बंद करने को कहा तो फैक्ट्री नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल पहुँच गयी। ट्रिब्यूनल ने जाँच कमेटी बनाई और फैक्ट्री को क्लीन चिट दे दिया और कहा कि तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का फैसला जल्दबाज़ी में लिया गया था।

कंपनी ने लाइसेंस को रिन्यू करने के लिये अप्लाई किया लेकिन तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपील खारिज कर दिया। कंपनी ने पर्यावरण और वन मंत्रालय से भी कहा था कि कंपनी को पुराने लाइसेंस पर 18 महीने और चलने की इजाजत मिले पर अभी मंत्रालय ने भी इजाजत नहीं दी थी। मार्च में ही फैक्ट्री बंद हो गयी।

इस कंपनी ने 20 साल तक नियम कानून की धज्जियाँ उड़ायी. इन 20 सालों में केंद्र और राज्य में पार्टियां आयी गयीं लेकिन इस कंपनी का कुछ नहीं हुआ.

इस कुख्यात कंपनी का नाम है स्टरलाइट कॉपर जो वेदांता समूह की कंपनी है. यह कंपनी बॉक्साइट, जिंक और कॉपर के खनन और कॉपर के प्रोडक्ट बनाने का काम करती है.

22 मई को लोग कंपनी को बंद करने की मांग को लेकर यहाँ प्रदर्शन कर रहे थे. आंदोलन का सौवाँ दिन था. बीस हजार से ज्यादा लोग थे. लोगों की मांग थी कि कंपनी को हमेशा के लिए बंद कर दिया जाये. प्रदर्शन उग्र हो गया. पुलिस ने गोली चलाई और 13 लोग मर गए. गोली पैरों पर मारी जाती है लेकिन यहाँ पुलिस ने निशाना लगाकर लोगों की हत्याएं की. वेदांता का न कुछ हुआ है न होगा क्योंकि वेदांता समय-समय पर पार्टियों को चंदा देकर खुश करता रहा है. याद करिये इसीलिए छत्तीसगढ़ का बाल्को संयंत्र सस्ते दाम पर वेदांता को बेच दिया गया था. तब वेदांता ने जमीन कब्ज़ा करके हजारों पेड़ कटवा दिया था.

कांग्रेस हो या भाजपा वेदांता दोनों दोनों की ही चहेती कंपनी है. अनायास ही नहीं बाद में पी चिदंबरम वेदांता रिसोर्सेज के निदेशक बने. इसकी ही वजह से छत्तीगढ़ में 2009 में 40 से ज्यादा मजदूर मारे गए थे तब भी वेदांता का कुछ नहीं बिगड़ा था. नियमगिरि में वेदांता का विरोध काफी हुुआ. लिंगराज आज़ाद तथा कुनी सिकाका को माओवादी बताकर दमन किया गया था. (इस पर विस्तार से एक रिपोर्ट और जल्द ही)

कुल मिलाकर कांग्रेस, भाजपा भले ही लोगों का वोट पाकर सत्ता में आती हैं लेकिन काम पूंजीपतियों का ही करती हैं. मुझे याद है 2014 का चुनाव. उस वक्त मैं बनारस में ही था जब सारे शहर को बड़े-बड़े कट आउट और होर्डिंग से पाट दिया गया था. याद करिये जब मोदी की रैलियों पर करोड़ों खर्च होते थे. ये पैसा इसी वेदांता, अडानी और अंबानी का था जिसके बदले आज मोदी सरकार उनका काम कर रही है जबकि वेदांता पर 1 लाख करोड़ का कर्ज है.

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