( हिंदी के वरिष्ठ कथाकार शेखर जोशी ने इलाहाबाद के 508 आर्मी बेस वर्कशॉप में नौकरी करते हुए लम्बा समय कारख़ाने में कारीगरों के बीच बिताया. कारख़ाने के अपने अनुभव के कारण ही वे ‘बदबू’ , ‘सीढ़ियाँ’, ‘आख़िरी टुकड़ा’, ‘उस्ताद’, ‘मेंटल’ जैसी शानदार कहानियां लिख सकें. पिछले कुछ समय से वे कभी -कभी कविता भी लिखते रहे हैं. आज ‘विश्वकर्मा जयंती’ पर पेश है उनका कविता रिपोतार्ज़ ‘विश्वकर्मा पूजा’. सं.)
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विश्वकर्मा पूजा : रिपोर्ताज़
वे आज आए हैं
फूल –पाती लेकर
बूढ़े, अधेड़ और जवान
कुछ नई भर्ती वाले बछड़े भी
(जो आज मनाएंगे अपनी पहली पूजा)
सभी प्रफुल्लित
सभी उत्सवित .
उतार लिए हैं घरेलू कपड़े
पहन ली है अपनी –अपनी डांगरियां
अब सभी एक सी वर्दी में
फौजियों की तरह
उतर आए हैं अपने –अपने ठिये पर.
बांटा गया है पेन्ट हरा
बांटे गए हैं ब्रश छोटे और बड़े
सफ़ाई के लिए कॉटन वेस्ट
भीमाकार मशीनों को पोंछकर
शुरू हो रही पुताई
शियरिंग, ब्रेक प्रेस, पावर प्रेस
कुछ मंझोली खराद, मिल्लिंग, शेपर, ड्रिलिंग और ग्राइंडर
नटखट करेला को टोक दिया फोरमैन महावीर ने
‘ज्यादा कलाकारी नहीं करेले!
यह शमशाद चचा का ट्रक नहीं
कि हेडलाइट के ऊपर भंवें बना दो
और कोरों पर काजल, माथे पर बिंदी
यह सरकारी मशीनें हैं
सिर्फ़ ओ. जी. पेन्ट
हां, ग्रीज़ पॉइंट पर लाल गोला बना सकते हो.
फिटरों ने अपने टूलकिट ख़ाली कर लिए हैं
एक – एक औज़ार को चमका रहे हैं
प्लास, पेंचकस, छेनी, हथौड़ी, स्पैनर कई –कई, हैकशा
रेतियां छोटी- बड़ी, बर्मे, पंच और भी बहुत कुछ
सजा रहें हैं उन्हें कतार में रखकर
अब रंगा जा रहा है खाली टूलकिट
लिखाया जाएगा उसमें अपना टोकन नंबर लाल गोले में.
बढ़इयों ने चमकाए हैं अपने औज़ार
आरियां, रंदे, वसूले, छेनियां, बर्मे और रुखानी.
रंगी जा रही है दुल्हिन की तरह बड़ी मशीनें
सर्कूलर और बैण्डसा, प्लेनर और ग्राइंडर
दर्जी और मोची शॉप में
चमकाई जा रहीं हैं सिलाई मशीनें
कतार में सजीं हैं कैंचियां, रांपियां, सूए, नपने
वल्कनाइज़र शॉप में
अयूब मियां के बंदों ने
चमकाया है एयरकम्प्रेशर
कतार में सजाया दीगर सामान .
लोहारखाना क्यों पीछे रहे
दूल्हे सा सजा है पावर हैमर
दुलहिन सी सजी है निहाई
भट्टियों की चिमनियां भी नई सी लग रहीं हैं
चमचम कर रहे हैं घनों और हथौड़ों के बैंट
राइफलों सी कतार में रखी हैं सणसियां
ड्राइवरों ने गाड़ियों के आगे सजाये
जैक, लिवर, स्पेनर, पेंचकश और ग्रीज़गन
जगमगा उठी है वर्कशॉप
फूलपत्तियों से प्रणति दी है कारीगरों ने
अपनी अन्नदाता मशीनों, औज़ारों को.
उधर छोटे ट्रक में
बाज़ार जा चुके हैं इंतजामकार
ख़ाली कार्टन और थैले लेकर
उन्हें विदा करते बोले टाइमकीपर चटर बाबू
कादिर का बादाम लौंज जरूर लाना
‘बड़ा चटोर है चटर बाबू’, किसी ने जुमला कसा
बड़ी भीड़ थी बाज़ार में
ट्रक खड़ा कर दिया है घंटाघर पर
एक दल गया मिठाई बाज़ार की ओर
सैकड़ों की संख्या में लेने हैं लड्डू, बालूशाही, खस्ता और बताशे
शर्मा जी चले हवन सामग्री लेने
लाला जयदेव पंचामृत का सामान
सकोरे, दोने और तुलसीदल, फूल, माला कपूर
कादिर की लौंज बड़ी महंगी है
बजट से बाहर
फिर भी, ले लें पाव भर
पंचमेल प्रसाद के लिए
चटर बाबू की बात भी रह जायेगी
जा बैठे फटाफट गाड़ी में.
मंदिर कमेटी वाले बहुत व्यस्त
ले आए हैं बैजनाथ फ्रेम में मढ़ी हुई विश्वकर्मा जी की तस्वीर
बिछ रहे हैं तिरपाल
किनारों पर लगा दी गई हैं बेंचें
सुपरवाइज़र नेतागण और बाबू लोगो के लिए
आसन पर जमेंगे कथावाचक
चौकी पर साहब
टिक गई है तिपाई पर विश्वकर्मा जी की तस्वीर .
बड़े साहब को पूजा का समय बताने पहुंचे मंत्री
साहब की अपनी हिचक:
‘भई मैं वर्दी में कैसे बैठूँगा हवन में
छोटे साहब को ले जाओ
वही सम्पन्न कर देंगे’
निराश लौटे मंत्री
छोटे अफ़सर को बताई पूरी बात
छाई रही चुप्पी कुछ देर
इन्ही लोगों के बीच से उठकर
पहुंचा है बड़ी कुर्सी तक छोटा अफ़सर
नीति निपुण, अच्छा अनुभवी
सबका चहेता
सबका हितू
‘ठीक है’ कहकर विदा किया मंत्री को
फिर पठाए अपने दो पैरोकार
दोनों ही बड़े उस्ताद
शौकत अली और भगवानदीन
बाअदब पहुँचे दरबार में
‘हुज़ूर आपसे एक गुजारिश है’ बोले शौकत
‘कहिये ?’
‘सरकार, बाप के रहते चाचा पूजा में बैठे
आज के दिन यह शोभा नहीं देता’ बोले भगवानदीन
साहब ने दुहराई अपनी हिचक
‘नहीं सर, आज तो हमारा ख़ास पर्व है
पूजा आपके ही हाथों शोभा देगी’ भगवानदीन अड़े रहे.
पशोपेश में पड़ गए साहब
‘वर्दी में इतनी देर …..’ अपनी हिचक दुहराई साहब ने’
‘बहुत देर नहीं होगी सर.
पंद्रह या बीस मिनट, बस
आप चौकी पर बैठेंगे आराम से पैर लटकाकर
बस जूते उतारने होंगे, मोज़े भी नहीं.’
हामी भरनी ही पढ़ी जजमानी के लिए
मन में शंका उठी – यह रचना छोटे की है
तत्काल मन को आश्वस्त किया
नहीं, पक्का भरोसेमंद है सहायक
हम वर्दी वालों से ज्यादा समझता है अपने लोगों के मानस को
मेरे हित में ही सोचा होगा
फिर अन्तरंग मंत्रणा हुई
एक सौ आठ स्वाहा –स्वाहा में ‘ओम भूर्भु’ की आहुतियों में लगेगा टैम बहुत
पंद्रह –बीस मिनट कह आए हैं साहब से
‘अरे पांडे महाराज संक्षेप में निपटा देंगे
वह गांव के माने हुए कथावाचक हैं’ सुझाया अवध ने
तय हुआ इस बार कथा ही होगी –हवन नहीं.
आर्यसमाजी शर्मा जी भुनभुनाये
‘यहां भी साली पालिटिक’
पांडे अवध के गोल के हैं और वे समर के.
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मंत्री ले आए साहब को
उतारे अपने जूते ही नहीं मोज़े भी
कर प्रक्षालन कराया पांडे ने
स्वयं सिर पर बांधा अपना रुमाल
बैठे चौकी पर आराम से
पैर लटकाकर .
टिन टिन टिन बजी घंटी
अब भई कथा शुरू
आज के इस पावन पर्व में
हम स्मरण करते हैं
उन सभी देवी –देवताओं को
जो बचाते हैं हमें चोट –चपेट से
दुर्घटना से, हारी बीमारी से
हम बंदगी करते हैं अपने उस्तादों को
जिन्होंने हमें अपना हुनर सिखाया
किसी लायक बनाया.
हम बंदगी करते हैं अपने पुरखों को
जिन्होंने यह कारखाना आबाद किया.
अपना खून पसीना बहाकर
और सौंप गए अपनी विरासत हमें
हम बंदगी करते हैं विश्वकर्मा महाराज की
बनी रहे हम पर उनकी किरपा …….
चतुर कथावाचक ने छेड़ा
कृष्ण और सुदामा की मैत्री का प्रसंग
बचपन की कथा
खाते –पीते घर के किशन
गरीबी में पला सुदामा
संदीपन गुरु के आश्रम के दिन
कभी सूरदास के पद
कभी नरोत्तम दास का कवित्त
कभी गद्य में कभी पद्य में
कभी नागर भाषा में
तो कभी गंवई गांव की बोली में
समां बांध दिया पाण्डे ने
माखन चोरी भी
चीरहरण भी
कालिया मर्दन भी
गोवर्धन पर्वत भी
उधर सुदामा की दीन दशा
अधपेट भोजन और
भरपेट लन्तरानियाँ
ऐसे थे ऐसे थे, ऐसे थे हमारे सखा
अब बैठे हैं राजगद्दी पर द्वारिका में.
ऊब गई बामणी सुनते –सुनते
खीजकर कहा जाते क्यों नहीं द्वारिका
क्या निहाल करते हैं तुम्हे
एक दिन चल पड़े सुदामा द्वारका की दिशा में
मियां भाई लोग नहीं बैठे थे तिरपाल पर
उनका गोल जमा था सामने रैम्प पर
लोहारखाने के आगे
पीपल की छांव में
बतियाते गपियाते
पान –पत्ता चबाते
सूर्ती-खैनी फांकते
अचानक बोले शरीयत के पाबंद शमीउल्ला
‘ए भाई, ई बतावा तबर्रुक लेना जायज है ?
चटख गए बी. पी. के मरीज वैल्डर नईम
‘ए समीउलवा, तैं बड़ा आलिम बनत है में
विश्वकर्मा जी कोनो पीर –पैगम्बर रहे का बे ?
वह तो रहे हमा – सुमा की तरै कारीगर
बड़े आला दर्जे के कारीगर’
‘जैसन अपने मोईन भाई’, पत्ता लगाया नचनिया ओमप्रसाद ने
जो आ बैठा था इस गोल में पान –पत्ते के चक्कर में.
संकोच में पड़ गए
सौम्य शालीन मोईन भाई
जिनकी शोहरत है दूर –दूर तक
जमाया एक धौल नचनिया की पीठ पर
‘बहुत बोले लगे हो आजकल.’
उधर अब समापन पर है कथा
सुदामा पहुंचे द्वारिकापुरी
खूब स्वागत किया किशन जी ने
फटी बिवाई वाले सखा के पैर देखकर रोये भी .
नया कुर्ता, धोती, दुशाला पहनाया
चार दिन खूब खातिर की
राजकाज छोड़कर बतियाते रहे रात दिन
फिर विप्र को विदा किया
पर एको धेला नहीं दिहिन राहखर्ची के बरे
(श्रोताओं ने लगाया ठहाका)
लौटे मुंह लटकाकर
उधर किशन जी ने संदेश भेजा विश्वकर्मा जी को
‘बना दें एक आलीशान भवन
पण्डित की कुटिया के आगे’
विश्वकर्मा जी जुट गए रात दिन
कुछ ही दिनों में बन गया आलीशान भवन
किशन जी ने पठाये बिछावन, कपड़े –लत्ते, बर्तन –बासन
जम गई गृहस्थी
सज गई ब्राह्मणी
कई दिन बाद लौटे सुदामा जी
हैरान, परेशान
खोज रहे हैं अपनी कुटिया को
नजर पड़ गई बाट जोतती पत्नी की
फूट गई रुलाई
बांह थामकर ले गई अन्दर .
जैकारा लगा, बोल विश्वकर्मा महाराज की जै.
कुछ आवाजें उठी रैंप पर से भी
सब आये
पाया प्रसाद
लिया पंचामृत भक्तिभाव से .
साहब ने आरती की थाली में रखा एक खजूर छाप नोट
जूते पहन चले ऑफिस की ओर
प्रसाद का दोना लेकर चल रहे हैं साथ में भगवानदीन
न रहा गया, पूछ ही लिया साहब से
‘सर, कैसी लगी पूजा आपको?
‘वंडरफुल, थैंक्स ए लौट’ गदगद भाव से बोले सर.
हो गई छुट्टी
लौटे अपने –अपने घर को सब लोग
बचे रहे कुछ इंतजामकार
समेटना है सब कुछ
लाला जयदेव के चमचे सालिग ने
अपने झोले से निकाला गिलास
पंचामृत के तलछट में जमा चिरौंजियों की खातिर
हर साल ले आता है गिलास घर से .
(रचनाकाल :10 सितम्बर , 2018)
( फ़ीचर्ड तस्वीर के छायाकार निहाल कुमार बनारस के काशी विद्यापीठ में फाइन आर्ट के अंतिम वर्ष के छात्र हैं. वह दस्तावेज़ी छायाकार हैं और अपनी कहानियां तस्वीरों के ज़रिये कहना पसंद करते हैं. अभी हाल में उनके काम को पुरुस्कृत किया गया है. निहाल से nihal19mumar@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.)
फ़ीचर्ड तस्वीर का विवरण : f /10.0, ISO 200, 43 mm, shutter speed 1/60