समकालीन जनमत
ज़ेर-ए-बहस

जनता के जीवन और रोजगार के संकट से सरकार ने पूरी तरह अपने को “क्वारंटीन” कर लिया है

इस बात की काफी चर्चा है कि संसद में मोदी सरकार ने कहा कि उसे लॉकडाउन के चलते मरने वाले मजदूरों की संख्या की जानकारी नहीं है.  मोदी सरकार के श्रम और रोजगार मंत्रालय में स्वतंत्र प्रभार राज्य मंत्री संतोष गंगवार ने 14 सितंबर को लोकसभा में एक अतारांकित प्रश्न के उत्तर में कहा कि लॉकडाउन के दौरान मरने वाले मजदूरों का कोई डाटा उपलब्ध नहीं है.श्रम और रोजगार मंत्री ने यह भी कहा कि चूंकि मरने वाले मजदूरों का कोई डाटा नहीं रखा गया,इसलिए उनके मरने पर मुआवजा देने का प्रश्न ही नहीं उठता.

यह बेहद निर्मम और हृदयहीन किस्म का उत्तर है,जो दर्शाता है कि लॉकडाउन की अवधि में जब लाखों की तादाद में मजदूर सड़कों पर पैदल चलने को विवश हुए,सड़कों और रेल की पटरियों पर उन्होंने प्राण गंवाए तो केंद्र सरकार पूर्णतया संवेदनहीन बनी हुई थी.

केंद्र सरकार ने लोकसभा में राज्यवार आंकड़ा दिया कि कितने मजदूर अपने राज्यों को वापस लौटे.केंद्र सरकार के अनुसार यह संख्या 10466152 है.हालांकि  इस आंकड़े में उत्तराखंड (जहां बड़ी तादाद में कामगार वापस लौटे) समेत कुछ अन्य राज्यों का आंकड़ा नहीं है, लेकिन फिर भी यह सवाल तो पैदा होता ही है कि जो सरकार राज्यवार वापस लौटने वाले मजदूरों का आंकड़ा जुटा सकती है,उसके पास लॉकडाउन के चलते जान गंवाने वाले मजदूरों का आंकड़ा कैसे नहीं है ?

पर यह इकलौती बात नहीं है,जिसकी जानकारी नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार को नहीं थी. इसके अलावा भी लोगों के जीवन और जीविका के बहुतेरे सवाल थे,जिनसे सरकार गाफ़िल रही और लोकसभा में उसने बेशर्मी से कह दिया कि इस मामले कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है !

सरकार से पूछा गया कि राज्यवार निशुल्क राशन पाने वाले मजदूरों की संख्या बताए तो सरकार ने कह दिया कि राज्यवार आंकड़ा उसके पास नहीं है.

15 सितंबर को लोकसभा में केंद्र सरकार से किसानों की आत्महत्या के संबंध में सवाल पूछा गया तो कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने जवाब दिया कि “ऋणग्रस्तता और दिवालियेपन के कारण किसानों द्वारा की गयी आत्महत्या के आंकड़े 2016 के बाद से उपलब्ध नहीं हैं.”

रोजगार का संकट,इस समय देश के सामने सबसे बड़ा संकट है. यह संकट इस कदर बढ़ गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन को युवाओं ने बेरोजगार दिवस घोषित कर दिया है.

रोजगार की बिगड़ती स्थिति के बारे में संसद में सवाल पूछे गए,जिनमें से कुछ का जवाब मिला और कुछ के बारे में जानकारी न होने के तर्क के साथ सरकार ने हाथ झाड़ दिये !

बेरोजगारी के आंकड़ों के संदर्भ में सरकार ने बताया कि बेरोजगारी दर 2012-13 में 4 प्रतिशत थी,2013-14 में 3.4 प्रतिशत,2015-16 में 3.7 प्रतिशत,2017-18  में 6 प्रतिशत और 2018-19 में 5.8 प्रतिशत है. साथ ही 2018-19 में कामगार-जनसंख्या अनुपात 35.3 प्रतिशत था.

लेकिन रोजगार से संबंधित बाकी प्रश्नों का कोई जवाब सरकार के पास था ही नहीं. बीते 12 महीनों में संगठित एवं असंगठित क्षेत्र में रोजगार छिनने का आंकड़ा सरकार से पूछा गया तो उसने मौन साध लिया.

रोजगार सृजन के लिए किए गए उपायों संबंधी सवालों के जवाब में केंद्र सरकार ने आत्मनिर्भर भारत और बीस लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज का ढोल खूब पीटा,लेकिन रोजगार गंवाने वालों की संख्या का कोई आंकड़ा सरकार नहीं बता सकी. 14 सितंबर को लोकसभा में श्रम राज्य मंत्री से पूछा गया कि क्या  कोविड 19 से रोजगार छिनने का कोई आकलन सरकार के पास है तो मंत्री जी  ने जवाब दिया कि ऐसा कोई आकलन सरकार ने नहीं किया है.

नरेंद्र मोदी जी की सरकार के संसद में दिये गए सवालों से स्पष्ट है कि यह सरकार जिस काम के लिए चुनी गयी है,उस काम को तक ठीक से नहीं कर रही है. संसद सत्र शुरू होने से पहले कहा जा रहा था कि कोविड 19  के चलते प्रश्न काल नहीं होगा. फिर प्रश्न काल की निरर्थकता सिद्ध करने के लिए अभियान चलाया गया. संसद में दिये गए सवालों के जवाब बताते हैं कि दरअसल केंद्र सरकार प्रश्न काल क्यूँ नहीं चाहती थी ! ऐसा इसलिए था कि लॉकडाउन का उपयोग मोर को दाना खिलाने,वर्चुअल रैली करने और विरोधियों को ठिकाने लगाने के लिए किया गया. जनता के जीवन और रोजगार के  संकट से सरकार ने पूरी तरह अपने को “क्वारंटीन” कर लिया. जब लोगों के जीवन और रोजगार से सरकार का कोई सरोकार ही नहीं है तो बेहतर है कि इस सरकार को जनता भी “लॉकडाउन” ही कर दे !

 

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