(पांच अगस्त को हिंदी के कवि वीरेन डंगवाल का जन्म दिन होता है । देश भर में कवि की याद में हुए आयोजनों में से कुछ झलकियाँ यहां प्रस्तुत हैं ।)
बरस रही थी कवि की याद
कल पांच अगस्त को कवि वीरेन डंगवाल का जन्मदिन था .कवि तो बहुत हैं और उनकी यादें भी ,परन्तु मैंने लोगों को जिस तरह वीरेन डंगवाल को याद करते हुए सुना है ,देखा है वैसा किसी को नहीं .जो उनसे एक बार भी मिला है ,जो उनसे लोगों को मिलते हुए देखा भर है, उसके पास भी कहने और उन्हें महसूसने के लिए बहुत कुछ है .सब ने याद किया उनके मस्ती और फक्कड़पन को, उनमें छुपे उनके साथीपन को.
इब्बार रब्बी जी, अपनी मुलाकातों को साझा करते हुए कहते हैं कि ,वे हर समय भरे रहते थे मुलायम और नाज़ुक भावों से. इब्बार रब्बी जिस तरह से सुना रहे थे उनको सुनकर मन में एक कचोट उठ रही थी कि,काश! हमारी पीढ़ी को भी मिला होता उनसे संवाद और मुलाकात का मौका. उन्होंने ‘पाइप के पानी की नींद’और ‘दुश्चक्र में स्रष्टा’ कविता का जिक्र किया और कहा कि वह अद्भुत कवि था. ये कविताएँ विश्व की महानतम कविताओं में शामिल होने योग्य हैं लेकिन हिन्दी का दुर्भाग्य अपनी जगह है . वीरेन ने ‘डिक्लास’ होकर कविता का अनुभव प्राप्त किया था.
वीरेन डंगवाल के साथी और वरिष्ठ पत्रकार मनोहर नायक ने भी उनसे जुड़े अपने भावुक और प्रसन्नता से भर देने वाले अनुभवों को साझा किया .वे कहते हैं कि वीरेन अपने दोस्तों के बीच एकदम बेकाबू हो जाता था .उन्होंने उनकी ‘सड़क’ सम्बन्धी कविताओं के विषय में कहा कि, ये कविताएँ उनके घुमक्कड़ी का उत्पाद हैं. उनकी कवितायें उनके व्यक्तित्व से बिलकुल अलग नहीं हैं .
योगेन्द्र आहूजा कहते हैं, वीरेन जी की कविताएँ जब याद आती हैं तो सिर्फ कविताएँ ही नहीं याद आतीं बल्कि उतना ही अधिक वीरेन जी की भी याद आती है .वीरेन जी मानते थे कि दो-चार कवि ही मिलकर अपने समय को नहीं दर्ज़ कर सकते चाहे वे जितने बड़े कवि क्यों न हों .इसलिए वे अपनी कविताओं से अधिक अपने समकालीनों और वरिष्ठों की कविताओं को बड़ी मस्ती से सुनाते थे .इस क्रम में योगेन्द्र जी ने ‘राम की शक्ति पूजा’ ,शमशेर की ‘टूटी हुई बिखरी हुई’ और भवानी प्रसाद मिश्र की ‘सन्नाटा’ जैसी कविताओं के कुछ अंश पढ़े .
वरिष्ठ कथाकार शेखर जोशी जी भी इस कार्यक्रम में उपस्थित थे .उन्होंने वीरेन जी के साथ की अपनी यादों को साझा करते हुए उनके लिए अपनी दो कविताएँ ‘ओखल नृत्य’ और ‘ ‘छोरमुया’ पढीं.
उद्भावना पत्रिका के संपादक अजेय कुमार ने कहा मैंने पहली बार उनकी ‘रामसिंह’ कविता पढ़ी थी जो ‘पहल-13’ में छपी थी. उनकी कविताओं में उनकी राजनीतिक प्रतिबद्धता स्पष्ट तौर पर छलकती है .वीरेन का जनता के साथ दर्द का रिश्ता था .मैं उनकी कविता का कायल तो था ही उनकी राजनीति का भी कायल था.
चन्द्रभूषण जी का कहना है, वीरेन जी की कविताओं में जो ब्यौरे हैं वे उनके मन के ब्यौरे हैं ,वे सब चीजों के कवि हैं .हिन्दी कविता की सीमा हो सकती है वरना विश्व कविता के जो भी मानक हैं उन पर वीरेन की कविता सटीक पड़ती है .चन्द्रभूषण ने ‘घोड़ो का बिल्ली अभिशाप’ कविता पढ़ी .
आलोचक और स्तम्भ लेखक रवीन्द्र त्रिपाठी का कहना था कि, वीरेन की कविता में क्रासरिफरेन्स अधिक हैं. उन्होंने वीरेन जी की कविता ‘कन्हाई के दिन का आरम्भ’, और ‘मेट्रो महिमा’ कविताओं के माध्यम से अपनी बात को पुष्ट किया .
अवधी लेखक अमरेंद त्रिपाठी ‘अवधिया’ मानते हैं वे कव्याचार के खिलाफ रहने वाले कवि हैं जैसा कि ‘कविता टविता’ लिखकर उन्होंने साबित किया है . जैसा उनका जीवन था वैसे ही उनकी कविताएँ भी हैं . इसलिए वे लोगों को अपनी कविता की तरफ आकर्षित करते हैं .उनके काव्य विषय बड़े अलग से हैं. उनकी कविता में उक्ति विशेष का प्रयोग विशेष तौर पर मिलता है . उनमें कवि होने का विनम्र किस्म का ग्लानि बोध भी दिखाई देता है .
युवा पत्रकार शालिनी वाजपेयी का कहना था कि वे जितने सरल थे अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता को लेकर उतने ही कड़े भी . जो स्टैंड एक बार लिए उस पर हमेशा कायम रहे वे. संजय जोशी ने कहा कि वे बड़े इसलिए थे कि वे सचमुच कामरेड थे, सच्चे दोस्त थे . युवा छात्रा दिशा सिंह ने उनकी दो कविताओं ‘वापसी’ और ‘हम औरतें’ का पाठ किया . रामायन राम ने ‘कटरी की रुक्मिणी’ कविता का पाठ. इरफ़ान ने विस्तार से उनकी कविता ‘सड़क के लिए सात कवितायें’ का पाठ किया. घुमक्कड़ और छायाकार अपल ने वीरेन जी के व्यक्तित्व में जिज्ञासा के गुण को महत्वपूर्ण पाया. हिंदी अध्यापन से जुड़े अवधेश और मृत्युंजय ने वीरेन जी से जुड़े जेएनयू और इलाहाबाद से जुड़े किस्सों को साझा किया. शोध छात्र सौरभ और दिनेश ने वीरेन जी की कविताओं से अपनी नजदीकी को कविताओं के माध्यम से सोदाहरण समझाने की कोशिश की.
गोष्ठी में जबलपुर से राजेश नायक और पंजाबी से आये फ़िल्मकार दलजीत अमी ने भी शिरकत की.
इसके अलावा शिखा, स्वाति भौमिक ,आशुतोष कुमार ,वंदना सिंह ,मनीषा जोशी, मनोज सिंह और रवीन्द्र पटवाल आदि ने इस कार्यक्रम में शामिल होकर वीरेन जी को उनके जन्मदिन पर याद किया
गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए चित्रकार अशोक भौमिक ने कहा कि कि बहुत छोटा समय ही वीरेन भाई अपनी कविता के लिए जीते थे .जबकि वे अपने दोस्तों के लिए अधिक जिये. वे भीड़ में रहकर कविता करना सीखते थे ,कविता के लिए किसी एकांत की जरुरत नहीं थी उन्हें .उनका छंद ज्ञान ऐसा था कि उनसे गलती हो ही नहीं सकती थी ,जो जैसे एक बार सेट कर लिया कविता में उसको वैसे ही कंठस्थ कर लेते थे .उनको पता था क्या लिखना है और कैसे लिखना है .उनको कामरेडपन का ठीक-ठीक मतलब पता था .सच्चे अर्थों में वे कामरेड थे .
गोष्ठी का सञ्चालन उमा राग ने किया. उन्होंने इस अवसर पर वीरेन जी पर अपनी छोटी कविता भी पढ़ी .
प्यार, आत्मालोचना और क्राइसिस के कवि हैं वीरेन डंगवाल
यह बात इलाहाबाद में “वीरेन डंगवाल: शख्सियत और कविता” विषयक गोष्ठी में युवा आलोचक और कवि पंकज चतुर्वेदी ने कही. उन्होंने कहा कि वीरेन डंगवाल की कविताएँ अपनी पीढ़ी की कविताओं से इस स्तर पर भी अलग हैं कि उनके यहाँ आत्मालोचना मिलती है. यह निराला में भी है, मुक्तिबोध में भी है. वीरेन डंगवाल हिंदी की इसी परम्परा से जुड़ते हैं. उनकी कविताओं में जीवन के अँधेरे कोनों का भी जिक्र है लेकिन धीरज और प्रतीक्षा उनकी कविताओं में बहुत है. उनके यहाँ संश्लिष्ट और जटिल जीवन के विम्ब हैं.
गोष्ठी में बीज वक्तव्य देते हुए इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हिंदी के अध्यापक बसंत त्रिपाठी ने कहा कि दृश्यों को पकड़ने की उत्कट बेचैनी वीरेन डंगवाल की कविताओं में मिलती है. वे निराला और मुक्तिबोध की परम्परा के कवि हैं. गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए समकालीन जनमत के सम्पादक रामजी राय ने कहा कि वीरेन डंगवाल प्यार के साथ घृणा और इनकार के भी बड़े कवि हैं. उनके यहाँ वर्ग सचेतनता मिलती है. किससे प्यार करना है और किससे घृणा और इनकार करना हैं, यह वीरेन डंगवाल की कविता में बहुत साफ़ है, मन में कोई संशय नहीं है उनके यहाँ. वे मुक्तिबोध की कविता और परम्परा से गहरे लगाव के कवि हैं.
उक्त गोष्ठी वीरेन डंगवाल की जयंती पर जनसंस्कृति मंच ने आयोजित की थी. कार्यक्रम में प्रो. राजेन्द्र कुमार, अनिता गोपेश, संतोष चतुर्वेदी, हरिश्चंद पाण्डे, संध्या नवोदिता, अनिल रंजन भौमिक, के.के. पाण्डेय, प्रणय कृष्ण, विष्णु प्रभाकर, अरिंदम घोष, राजन, अंशुमान, परवेज़, ओबैद, गीता आदि उपस्थित रहे.
पटना में हिंदी के दिग्गज कवि वीरेन डंगवाल की 71वीं जयंती मनाई गई
स्थानीय छज्जूबाग़ में आयोजित इस कार्यक्रम में उपस्थित सभी लोगों ने वीरेन डंगवाल की कविताओं का पाठ किया। कार्यक्रम का आरंभ वीरेन की दो मशहूर कविताओं – ‘हमारा समाज’ और ‘इतने भले नहीं बन जाना साथी’ – के ‘हिरावल’ के कलाकारों द्वारा गायन से हुआ।
साहित्यिक संस्था ‘समन्वय’ के सुशील कुमार, रंगकर्मी सुमन कुमार, कवि राजेश कमल, राजन, रेशमा, प्रीति प्रभा, प्रकाश, सत्यम, संतोष आर्या, अभिनव, शशांक मुकुट शेखर और संतोष झा ने क्रमशः ‘फैजाबाद-अयोध्या’ ‘राम सिंह’, ‘आएंगे, उजले दिन ज़रूर आएंगे’, ‘15 अगस्त’, ‘मां की याद में’, ‘हम औरतें’, ‘तोप’, ‘पी टी उषा’, ‘समता के लिए’, ‘समोसे’, ‘कवि’, ‘गलत हिज्जे’ कविताओं का पाठ किया।
इसके अलावा युवा कवि अंचित और आदित्य ने भी वीरेन की कविताओं का इस मौक़े पर पाठ किया। कार्यक्रम में महिला आंदोलनो से जुड़ी कार्यकर्ताओं- विभा गुप्ता, साधना कृष्ण और मधु ने इस अवसर पर अपनी स्वरचित कविताओं का पाठ किया। कार्यक्रम का संचालन जन संस्कृति मंच, पटना के संयोजक युवा कवि राजेश कमल ने किया।
छत्तीसगढ़ में तीन दिवसीय वीरेन डंगवाल जन्मसमारोह का आयोजन
बैकुंठपुर का शासकीय महाविद्यालय वीरेन डंगवाल के जन्मदिवस पर तीन दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन कर रहा है, जिसकी शुरुआत उनकी कविताओं के पाठ से हुई । कार्यक्रम का संयोजन डॉ. कामिनी त्रिपाठी कर रही हैं ।
फीचर इमेज (वीरेन डंगवाल) क्रेडिट: अपल