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डॉ प्रभा दीक्षित की तीन किताबों का कानपुर में लोकार्पण

डाॅ प्रभा की ग़ज़लें एहसास और यकीन की – कौशल किशोर
आम आदमी के संघर्ष को वाणी – कमल किशोर श्रमिक

कानपुर। साहित्यकार डॉ प्रभा दीक्षित की तीन किताबों का कानपुर के चैम्बर्स कॉमर्स हॉल में 17 दिसम्बर को लोकार्पण हुआ। ये कृतियां हैं : हर नजर भीगी हुई है (ग़ज़ल संग्रह), हिंदी के समकालीन हस्ताक्षर (समीक्षा कृति) और भूमंडलीकरण के परिप्रेक्ष्य में संस्कृति, दलित एवं उत्तर आधुनिक विमर्श (चिंतन कृति).

कार्यक्रम का आयोजन जन संस्कृति मंच ने किया था। मुख्य अतिथि लखनऊ से आए जसम के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष कवि कौशल किशोर थे वहीँ विशिष्ट अतिथि उन्नाव से पधारे जाने-माने साहित्यकार दिनेश प्रियमन थे. अध्यक्षता की प्रसिद्ध जनकवि कमल किशोर श्रमिक ने. संचालन डाॅ ज्योति किरण ने किया।

डा प्रभा दीक्षित की कृतियों पर बोलते हुए कौशल किशोर ने कहा कि डाॅ प्रभा दीक्षित की गजलों में किसी तरह की नजाकत या नफासत नहीं है. ये दुष्यन्त और अदम की परम्परा से जुड़ती हैं. वर्तमान में घटित हो रही घटनाओं पर इनकी नजर है. उसे ही अपनी गजल की विषय वस्तु बनाती हैं. राजनीति के पतन के अनेक मंजर इनकी गजलों में देखने को मिल सकते हैं. शोषित, पीड़ित व वंचित समाज की त्रासदियों व विडम्बनाओं तथा उनकी संघर्ष चेतना के अनेक बिम्ब इनके शेरों में उभरते हैं. कहा जा सकता है कि ये एहसास और यकीन की गजलें हैं जैसा प्रभा जी कहती हैं ‘ वक्त कैसा भी हो, एहसास बचाकर रखिए/है अंधेरा तो चिराग जला लीजे मगर/सुबह की रोशनी की आस बचाकर रखिए।’

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कमलकिशोर श्रमिक ने कहा की प्रभा दीक्षित गद्य और पद्य दोनों विभागों में आम आदमी के पक्ष में समान अधिकार से कलम चलाने वाली लेखिका हैं. इनका विकास इलाहाबाद के छात्र आंदोलन से हुआ है. पीएसओ और आईपीएफ जैसे संगठनों से दीक्षित हुई हैं. उसका प्रभाव इनके सृजन में है. इनकी लेखनी में आम आदमी की त्रासदी, जिजीविषा और वर्ग संघर्ष को वाणी मिलती है. वह सामाजिक सरोकारों से जुड़ी हुई हैं. इन्होंने जनपद स्तर पर रचनाकार के रूप में हिंदी साहित्य का गौरव बढ़ाया है.

इस मौके पर जाने माने साहित्यकार दिनेश प्रियमन ने डॉ प्रभा दीक्षित की पुस्तक ‘भूमंडलीकरण के परिप्रेक्ष्य में संस्कृति, दलित एवं उत्तर आधुनिक विमर्श ’ पर अपने विचार प्रकट किए। उनका कहना था कि लगभग कथित भूमंडलीकरण के नतीजे आम भारतीय समाज और जीवन पर साफ तौर पर देखे जा सकते हैं। प्रभा जी का अनेक विधागत सृजन हमारे समय का वस्तुनिष्ठ अनुशीलन तो है ही हिंदी की प्रगतिशील वैचारिक परंपरा के निर्वाह की सचेतन कोशिश भी है. वरिष्ठ समीक्षक डॉ दया दीक्षित ने मुख्य तौर पर ‘ समकालीन साहित्य के हस्ताक्षर ’ पर अपनी बात रखी. उन्होंने कहा के यह कृति कई कारणों से अत्यंत महत्वपूर्ण एवं दस्तावेजी कृति है. दया दीक्षित ने इस किताब से कुछ अंश भी पढ़कर सुनाएं.

जनवादी लेखक संघ की नगर सचिव अनीता मिश्र ने डाॅ प्रभा दीक्षित को एक श्रेष्ठ चिंतक के रूप में प्रतिष्ठित करते हुए कहा कि डॉ प्रभा भूमंडलीकरण की त्रासदी और साहित्य, संस्कृति, दलित एवं उत्तर आधुनिक विचारों की पड़ताल करते हुए भूमंडलीकरण के साहित्य व संस्कृति पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों की सटीक मीमांसा करने में समर्थ हुई हैं.

आधार वक्तव्य देते हुए डाॅ ज्योति किरण ने कहा की साहित्य की लगभग सभी विधाओं में सृजन प्रभा दीक्षित के साहित्यिक-सांस्कृतिक सरोकार का संदेश व्यापक है। उनका गजल संग्रह ‘हर नजर भीगी हुई है ’ हिंदी गजल परंपरा में एक सार्थक हस्तक्षेप है जिसमें उन्होंने जनवादी परंपरा और ज्ञानात्मक संवेदन दोनों को बड़ी खूबसूरती से बयां किया है। उनकी गद्य कृतियां भी साहित्य के अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण है।

डॉ प्रभा दीक्षित ने अतिथियों का आभार व्यक्त किया और कहा कि उनका लेखन समय और समाज के द्वंद का मनुष्य पर और जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव के रूप में है. उनका कहना था कि साहित्य समाज का दर्पण ही नहीं होता उसका काम समाज को टार्च दिखाना भी होता है.

कार्यक्रम में समकालीन जनमत के प्रधान संपादक रामजी राय, प्रसिद्ध गजलकार रामकुमार कृषक और आलोचक राजाराम भादू को भी आना था पर किसी कारणवश वे उपस्थित नहीं हो पाए. उन्होंने अपना लिखित पर्चा भेजा जिसे पढ़ा गया. आरंभ में सतीश गुप्त ने डॉ प्रभा दीक्षित के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला. इस अवसर पर अवधेश सिंह, शिवानी वर्मा, कमल मुसद्दी, विजय कुमार, सिद्धार्थ सिंह एडवोकेट, प्रताप साहनी, आजाद कानपुरी, अवधेश कुमार, वीरेन्द्र आदि पर मौजूद थे.

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