समकालीन जनमत
ख़बर

लेखक संगठनों का सीएए और एनआरसी के खिलाफ राष्ट्रीय प्रतिवाद में भागीदारी का आह्वान

लखनऊ . प्रगतिशील लेखक संघ (प्रलेस), जनवादी लेखक संघ (जलेस), जन संस्कृति मंच (जसम) और भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) की उत्तर प्रदेश इकाइयों ने नागरिकता संशोधन कानून और पूरे देश के लिए प्रस्तावित एनआरसी के खिलाफ आन्दोलन का समर्थन करते हुए देश भर के लोकतांत्रिक, अमनपसंद और संविधान में आस्था रखने वाले आम नागरिकों से 19 दिसम्बर के राष्ट्रीय प्रतिवाद में भागीदारी का आह्वान किया है.
तीनों संगठनों की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि सीएए और एनआरसी के खिलाफ उत्तर पूर्व से शुरू हुआ प्रतिवाद पूरे देश में फैल चुका है. प्रतिवादों की इस पूरी श्रृंखला को विश्वविद्यालयों के छात्र-नौजवानों ने आगे बढ़कर नेतृत्व दिया है. छात्रों के ये प्रतिवाद भारत के लोकतंत्र के भविष्य के प्रति एक आश्वस्ति का एहसास कराते हैं कि भारत की जनता देश के लोकतंत्र को किसी भी कीमत पर कमजोर नहीं होने देगी.

दिल्ली में जामिया मिलिया, जेएनयू, दिल्ली विवि, जाधवपुर, उत्तर प्रदेश में अलीगढ़ मुस्लिम विवि, बीएचयू, लखनऊ व इलाहाबाद विवि समेत पूरे देश के छात्र युवा आज सड़कों पर हैं।

बयान में कहा गया है कि इन प्रतिवादों की अनुगूंजों को सुनने की बजाय केंद्र सरकार इस आंदोलन को सांप्रदायिक रूप देने, भीषण दमन करने पर उतारू है. उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ मुस्लिम विवि में पुलिस द्वारा जानबूझ कर हिंसा को उत्प्रेरित किया गया. उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने पूरे प्रदेश में धारा 144 लगा कर विरोध की आवाजों को चुप कराने का रास्ता निकाला है. यह प्रदेश योगी सरकार के काल मे साम्प्रदायिक राजनीति की नई प्रयोगशाला के रूप में विकसित हो रहा है लेकिन दुःखद यह है कि उत्तर प्रदेश में संघ-बीजेपी की राजनीति का प्रतिकार करने का राजनैतिक व नैतिक साहस किसी भी मुख्यधारा के राजनैतिक दल में नहीं बचा है। जिस तरह कुछ दलों ने संसद में अनुपस्थित रहकर नागरिकता संशोधन विधेयक को पारित करने में सहयोग किया और अब चुनावी राजनीति की मजबूरियों को देखते हुए जामिया में छात्रों के दमन का विरोध कर रहे हैं, वह एक अक्षम्य राजनैतिक अवसरवाद तो है ही, साथ ही बाबा साहब अम्बेडकर व डॉ. लोहिया के विचारों के साथ भी गद्दारी है। देश की जनता इस अंधेरे समय मे किए गए इस विश्वासघात को कभी नहीं भूलेगी।

लेखक संगठनों ने कहा कि जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों के लोकतांत्रिक प्रतिरोध का दिल्ली पुलिस द्वारा बर्बर दमन देश को गृहयुद्ध की आग में झोंकने की सोची समझी साजिश हो सकती है. यह नई बात नहीं है कि प्रतिरोध को तोड़ने के लिए शांतिपूर्ण प्रदर्शनों के बीच भाड़े के गुर्गे भेज कर तोड़ फोड़ और आगजनी करवा दी जाए ताकि आंदोलन को बदनाम किया जा सके. छात्र-नौजवानों के वेश में पुलिस वालों को उपद्रव करते तथा पुलिस बलों को मोटर साइकिल तोड़ते व बस में आगे लगाते भी देखा गया. बिना विवि प्रशासन की इजाजत पुलिस का पुस्तकालय और बाथरुम में घुसकर असहाय व निरीह छात्रों के साथ मारपीट करना, हाथ उठवा कर उनकी परेड कराना या उन्हें पुलिसिया लाठी चार्ज, आंसू गैस और पत्थरबाजी के बीच आने को मजबूर करना व बीबीसी समेत वहां मौजूद अनेक मीडियाकर्मियों के कैमरे और फोन छीन लेना तथा उनके साथ भी मारपीट करना – ऐसे भयावह दृश्य भारत के इतिहास में पहले कभी देखे नहीं गए. जाहिर है, पुलिस सच्चाई को सामने आने देना नहीं चाहती.

इन घटनाओं का एक ही मतलब है. संघ -बीजेपी परिवार भावनाओं को उकसाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हो गए हैं. इस मकसद के लिए वे सरकार की हर मशीनरी का अनुचित इस्तेमाल करने के लिए भी तत्पर हैं. संघ-बीजेपी ने समझ लिया है कि कृषि, उद्योग, रोजगार और शिक्षा की तेजी से बिगड़ती सूरत को संभालना उसके बस की बात नहीं है. अब केवल हिंदुत्व ही उसे चुनावी जीत दिला सकता है. ऐसे में वह गृहयुद्ध की लपट तेज करना चाहती है, ताकि धर्म के नाम पर वोटों का ध्रुवीकरण किया जा सके. अन्यथा इस समय देश और धर्म के आधार पर भेदभाव करने वाला नागरिकता संशोधन विधेयक लाने की और असम में बुरी तरह फेल हो चुके नागरिक रजिस्टर को देश भर में फैलाने की घोषणा की कोई जरूरत न थी.

यह अच्छी बात है कि नौजवानों ने इस खेल को पहचान लिया है। जामिया घटना की रात से दिल्ली के पुलिस मुख्यालय समेत देश भर में हो रहे प्रदर्शनों में हिन्दू, मुसलमान, सिख, ईसाई, किसान, मजदूर, छात्र, शिक्षक व नागरिक समाज एकजुट होकर संविधान की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे हैं. नागरिकता संशोधन कानून को रद्द कराना तथा जामिया और अलीगढ़ सहित देश भर में हुए पुलिस दमन की जांच कराना उनकी प्रमुख मांग है. ये दोनों मांगे संविधान और लोकतंत्र की रक्षा के लिए अनिवार्य हैं.

Related posts

Fearlessly expressing peoples opinion