अतुल
पिछले एक हफ़्ते से हम लोग आइसा नेता नितिन राज का नाम सुन रहे हैं। उनकी गिरफ़्तारी की चर्चा ज़ोरों पर है और उनके पुराने संघर्षों का भी ज़िक्र जारी है। बीते 12 जनवरी को लखनऊ की निचली अदालत ने उन्हें जमानत देने से इनकार करते हुए पांचवीं बार जेल भेज दिया है।
नितिन राज की गिरफ़्तारी को गैर-कानूनी करार देते हुए उनके संगठन आइसा समेत कई मंचों से उनकी रिहाई की मांग उठ रही है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ (JNUSU) द्वारा जारी एक पोस्टर में यह अपील की गई है कि “CAA-NRC के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे जेएनयू छात्र नितिन राज को तत्काल रिहा किया जाय।” गुजरात के वड़गाम से विधायक एवं दलित आंदोलन के बड़े चेहरे जिग्नेश मेवानी ट्वीटर पर लिखते हैं कि, “उनका (नितिन राज का) अपराध बस इतना है कि उन्होंने देश के संविधान की रक्षा की।” इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ भवन, जेएनयू परिसर समेत कई जगहों पर नितिन राज की रिहाई के लिए प्रदर्शन हुए।
इन सब घटनाओं पर विचार करते हुए हमारे दिमाग में कई सवाल उठ रहे होंगे। नितिन राज कौन हैं ? आखिर नितिन राज की गिरफ्तारी की वजहें क्या हैं ? उनका राजनीतिक जीवन कैसा रहा है ? उनकी पृष्ठभूमि क्या रही है ? आदि आदि।
आइए उनके जीवन के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं पर नज़र डाली जाए।
पढाई और लड़ाई की वैचारिकी से लैस शख्सियत
22 साल के नितिन राज लखनऊ के एक निम्न मध्यमवर्गीय दलित परिवार से ताल्लुक़ रखते हैं। परिवार की आय का मूल स्रोत आंगनवाड़ी कर्मचारी उनकी माताजी हैं। नितिन बचपन से ही बेहद होनहार छात्र रहे हैं। पढाई-लिखाई के अपने जज़्बे के दम पर उन्होंने 2014 में उच्च शिक्षा की शुरुआत लखनऊ विश्वविद्यालय में बी. कॉम. में अपने दाखिले के साथ की। इसी बीच वे पढाई के साथ ही राजनीति में भी रुचि लेने लगे थे और इसी प्रक्रिया में 2015 के लगभग ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (AISA) से भी जुड़े। हमें याद होगा कि यही वह समय था जब देश में पहली बार दक्षिणपंथी-मनुवादी ताकतें एक बहुत बड़े बहुमत के साथ सत्ता में विराजमान हुई थीं। दलितों-मुसलमानों पर दमन बढ़ रहा था, विश्वविद्यालय परिसरों को सरकार वैचारिक युद्ध का अखाड़ा बना रही थी। जिसकी बड़ी अभिव्यक्ति हमारे सामने एक दलित शोधार्थी रोहित वेमुला की सांस्थानिक हत्या के रूप में सामने आई। इसके तुरंत बाद एक महीने के भीतर जेएनयू जैसे संस्थान के खिलाफ सरकार ने अपना अभियान खोल दिया और ‘देशद्रोह’ जैसी धाराओं में छात्र नेताओं के खिलाफ मुकदमे चलाये। इन सभी घटनाओं से नितिन राज बेहद प्रभावित हुए और इस सरकार के खिलाफ चल रहे तमाम आंदोलनों में शामिल भी हुए। इस समय तक उनकी राजनीतिक समझ का दायरा विकसित हो चुका था और वे खुद को एक क्रांतिकारी संगठन के नेता के रूप में स्थापित कर चुके थे।
योगी आदित्यनाथ को काला झंडा दिखाना
साल 2017 का नितिन राज के जीवन में बहुत अधिक महत्व है। यही वो साल था जिसने उनके राजनीतिक जीवन में बड़े परिवर्तन किए और उन्हें एक लड़ाकू आंदोलनकारी बनाने में योगदान दिया। इसी साल उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ जैसे साम्प्रदायिक व्यक्ति को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली थी। 6 जून, 2017 को लखनऊ विश्वविद्यालय प्रशासन ने शिवाजी महाराज के 1674 में हुए राज्याभिषेक को याद करते हुए एक कार्यक्रम का आयोजन किया था। इस कार्यक्रम का पूरा खर्चा (लगभग 25 लाख) छात्र-निधि में जमा पैसों से उठाया जा रहा था, जोकि ज़ाहिर तौर पर अनैतिक था और उस पर तुर्रा यह कि इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के बतौर योगी आदित्यनाथ को ही बुलाया गया था। ज़ाहिर था कि ऐसे वक्त में नितिन जिस विचार के साथ खड़े थे वह विचार उन्हें चुप रहने की इजाज़त नहीं देता।
नितिन ने तेरह अन्य छात्रों के साथ मिलकर योगी आदित्यनाथ को कैम्पस आने पर काला झंडा दिखाया। यह योगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके खिलाफ पहला मुखर विरोध था। यह स्पष्ट था कि योगी जैसे अलोकतांत्रिक मिजाज़ के लोगों को यह हरगिज़ भी बर्दाश्त नहीं होना था। नितिन राज समेत सभी चौदह छात्रों को एक लोकतंत्र में रहने के नाते अपने ‘विरोध के अधिकार’ का उपयोग करने में ‘अपराध’ में जेल भेज दिया गया। यह नितिन राज की पहली जेल-यात्रा थी। जब 27 दिन के बाद नितिन ज़मानत पर जेल से बाहर आये तब उनका व्यक्तित्व परिपक्व हो रहा था और उनमें कई बदलाव आ रहे थे। जेल जाने के दौरान, जेल में और जेल से निकलने के बाद भी उन्होंने तमाम प्रताड़नाएं झेलीं।
लखनऊ विश्वविद्यालय प्रशासन ने उन्हें इस शर्त पर उनकी डिग्री दी कि वे दोबारा इस संस्थान में प्रवेश नहीं लेंगे। इन तमाम प्रताड़नाओ के बाद भी नितिन में लड़ने और पढ़ने का जज़्बा खत्म नहीं हुआ। उन्होंने लखनऊ स्थित बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्विद्यालय (BBAU) में एम.ए. (जनसंचार) में दाख़िला लिया और उच्च शिक्षा के एक नए पायदान पर कदम रखा। यहां हमें यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि दलित समाज से आने वाले बहुत से छात्र उच्च शिक्षा में दाखिल ही नहीं हो पाते हैं ऐसे में यह निश्चित ही नितिन की जीवंतता और साहस ही था जिसकी वजह से उन्होंने सत्ता का दमन झेलने के बावजूद भी अपने विचारों और शिक्षा से समझौता नहीं किया। आगे में वर्षों में भी नितिन वर्तमान सरकार के सभी जनविरोधी फैसलों के खिलाफ मजबूत वैचारिकी लिए हुए खड़े रहे और उन्होंने अपना संघर्ष जारी रखा।
सीएए -एनआरसी विरोधी संघर्ष
वर्तमान फासीवादी सरकार ने अपने विभिन्न जनविरोधी, अल्पसंख्यक विरोधी फैसलों की कड़ी को आगे बढाते हुए 9 दिसम्बर, 2019 को देश की संसद में एक ऐसे विधेयक का परिचय कराया जोकि अपने मूल रूप में अल्पसंख्यक विरोधी एवं व्यापक प्रभाव में जनता विरोधी था। 12 दिसम्बर को इस विधेयक को विपक्ष के व्यापक विरोध के बावजूद पारित करके कानून का रूप दे दिया गया। जैसा कि अपेक्षित था, पूरे देश में इस कानून का व्यापक स्तर पर विरोध किया गया। विभिन्न संगठन, देश की कई बड़ी हस्तियां और तमाम अमनपसंद एवं संविधान को मानने वाले लोगों ने इस प्रतिरोध में हिस्सा लिया। ‘शाहीन बाग़’ जैसे प्रतिरोध के बेहद उत्कृष्ट एवं सृजनात्मक रूप देखने को मिले।
शाहीन बाग की ही तर्ज पर लखनऊ शहर में भी घण्टाघर पर महिलाओं की सरपरस्ती में एक बड़ा धरना शुरू किया गया। नितिन राज भी अपनी फितरत के अनुरूप इस आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सेदार रहे। आंदोलन शुरू होने के दूसरे ही दिन नितिन को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया लेकिन वहां मौजूद महिला प्रदर्शनकारियों के विरोध पर उन्हें छोड़ा। यह यूपी सरकार द्वारा नितिन राज को क़ैद करने दूसरी घटना थी।
इसके बाद भी नितिन लगातार घण्टाघर आंदोलन से सक्रिय रूप से जुड़े रहे। 18 जनवरी, 2020 को घण्टाघर स्थित आंदोलन स्थल से ही तीसरी बार नितिन राज को लखनऊ पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया। उन्हें कई थानों में ले जाया गया, पुलिस ने अपनी सामंती ठसक का इस्तेमाल भी उन्हें डराने के लिए किया, उन्हें प्रताड़ित किया गया। देर रात संगठन के लोगों के सक्रिय हस्तक्षेप के बाद मुचलके पर उन्हें छुड़ाया जा सका। बावजूद इसके नितिन के मंसूबों में कोई कमी नहीं आई और घण्टाघर आंदोलन के मुख्य चेहरों में वे शामिल रहे। नितिन राज के संघर्ष योगी सरकार और पुलिस की आंख में कांटे की तरह चुभ रहे थे। जिसकी परिणति 16 मार्च, 2020 को नितिन राज की चौथी बार हुई गिरफ्तारी में हुई। इस बार उन्हें छोड़ा नहीं गया बल्कि कोरोना महामारी के प्रकोप के बावजूद 17 दिन तक जेल में रखा गया। 31 मार्च को हाईकोर्ट के आदेश और आइसा द्वारा कई स्तर के अधिकारियों को लिखी गयी चिट्ठियों के प्रभाव में उन्हें पैरोल पर ही रिहाई मिल पाई।
कोरोना लॉकडाउन में भी नितिन लगातार पढाई-लड़ाई के जज़्बे को अपने भीतर ज़िंदा रखे रहे। उच्च शिक्षा के प्रति उनके लगाव और शिक्षा को समाज को बदलने के एक हथियार के बतौर इस्तेमाल करने के उनके विचार की ही देन था कि उनका चयन जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेनएयू) में शोध छात्र के रूप में हुआ।
उनकी पैरोल अवधि इसी 5 जनवरी को समाप्त हुई। अदालत में उनकी कई बार पेशियां हुईं। लेकिन 12 जनवरी को हुई पेशी में कोर्ट ने ज़मानत से इनकार करते हुए उन्हें पांचवीं बार जेल भेज दिया। नितिन राज के वकील कमलेश सिंह कहते हैं कि, “किसी भी व्यक्ति के खिलाफ मुकदमा दायर होने के 60 दिन के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष चार्जशीट दाखिल हो जानी चाहिये, अन्यथा की स्थिति में जमानत मिलनी चाहिए। लेकिन अभी तक कोई चार्जशीट दाखिल नहीं हुई थी बावजूद इसके नितिन राज के केस को पढ़े बग़ैर उन्हें जेल भेज दिया गया।”
आज 18 जनवरी है और जिस वक्त मैं यह रिपोर्ट लिख रहा हूँ, नितिन राज इस कड़ी सर्दी में जेल में हैं। पिछले वर्ष भी आज के दिन वे जेल में ही थे। नितिन राज सच्चे अर्थों में अपने संगठन आइसा के नारे “लड़ो पढाई करने को-पढ़ो समाज बदलने को” को चरितार्थ कर रहे हैं। नितिन राज के संघर्ष और वैचारिक दृढ़ता के जज़्बे को हम सलाम करते हैं।
( अतुल युवा लेखक एवं आइसा एक्टिविस्ट है )