समकालीन जनमत

Tag : समकालीन हिंदी कविता

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माया प्रसाद की कविताएँ उस व्यक्ति-मन की प्रतिक्रियाएँ हैं जो अपने परिवेश के प्रति जागरुक और संवेदनशील है।

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प्रज्ञा गुप्ता डॉ माया प्रसाद की कविताएँ उस व्यक्ति-मन की प्रतिक्रियाएँ हैं जो बहुत संवेदनशील है और अपने पूरे परिवेश के प्रति जागरुक है। उनकी...
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मंजुल भारद्वाज की कविताएँ दमनात्मक व्यवस्था की त्रासदी को उजागर करती हैं

उमा राग
मेहजबीं मंजुल भारद्वाज एक मंझे हुए रंगकर्मी हैं और एक ज़िम्मेदार कवि भी। उनकी अभिव्यक्ति के केन्द्र में लोकतंत्र संविधान और देश की जनता है।...
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कुछ न होगा के विरुद्ध हैं चंद्रभूषण की कविताएँ

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प्रियम अंकित चंद्रभूषण की कविताएँ निरंतर जटिल होते समय में जनता के सहज सरोकारों के पक्ष में खड़ी होने वाली कविताएँ हैं। आज जब एक...
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संजय कुंदन की कविताएँ स्थगित प्रश्नकाल में ख़तरनाक सवाल की उपस्थिति हैं।

उमा राग
अरुण आदित्य संजय कुंदन की कविताओं में गूंजती विविध आवाजों को सुनें तो लगता है कि शास्त्रीयता के बोझ से मुक्त यह कविता दरअसल कविता...
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अनुराग यादव की कविताएँ अपने समय और समाज को देखने का विवेक हैं।

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शंकरानंद कविता की दुनिया में अभी कई पीढ़ियाँ एक साथ सक्रिय हैं और इसी बीच नए लोग भी आ रहे हैं जिनकी उपस्थिति चकित करती...
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आशीष तिवारी की कविताएँ सामूहिक प्रतिरोध का आह्वान करती हैं।

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विपिन चौधरी जहाँ हिन्दी साहित्य में कई युवा रचनाकारों ने अपनी आमद से आश्वस्त किया है ऐसे ही एक युवा कवियों की फ़ेहरिस्त में एक...
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श्रुति कुशवाहा की कविताओं में स्त्री विमर्श एक आक्रामक तेवर के साथ उपस्थित है।

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निरंजन श्रोत्रिय स्त्री विमर्श जब ठंडा-सा हो तो वह स्त्री के पक्ष में खड़ा ज़रूर नज़र आता है लेकिन उसकी निर्णायक भूमिका संदिग्ध ही होती...
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केतन की कविताएँ वैचारिकी और परिपक्व होते कवित्त का सुंदर समायोजन हैं

अणु शक्ति सिंह कविताओं से गुजरते हुए एक ख़याल जो अक्सर कौंधता है वह कवि की निर्मिति से जुड़ा होता है। वह क्या है जिससे...
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आदित्य रहबर की कविताएँ सामाजिक-मानवीय मुद्दों की व्याख्या हैं

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अंशु चौधरी आधुनिक सभ्यता का जब भी आकलन किया जाता है, तब उसकी प्रगति और विकास की कहानी के साथ-साथ, उसके भीतर का विडंबनात्मक संघर्ष...
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कायनात शाहिदा की कविताएँ शीरीं लफ़्ज़ों की छोटी सी दुनिया है।

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नाज़िश अंसारी पत्नी पर बेहिसाब चुटकुले बनने के बाद जिस विषय का सबसे ज़्यादा मज़ाक़ उड़ाया गया/ जाता है, वो है कविता। मुक्त कविता (आप...
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रहमान की कविताएँ प्रेम में बराबरी की पैरोकार हैं

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मेहजबीं “मेरे जीवन में तुम सरई का फूल हो।” युवा कवि रहमान की अभिव्यक्ति के केन्द्र में प्रेम है। काव्य कला की बात करें उनकी...
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रुचि बहुगुणा उनियाल की कविताओं में मानवीय रिश्तों की मिठास और गर्माहट है

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गणेश गनी ‘बिछोह में ही लिखे जाते हैं प्रेम-पत्र’ रुचि बहुगुणा उनियाल उत्तराखंड से सम्बद्ध हिंदी कवयित्री हैं। विभिन्न विषयों पर कविताएँ लिखने वाली रचनाकार...
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संजीव गुप्त की कविताएँ फैन्टेसी, इमेजरी और वैज्ञानिक प्रसंगों का सर्जनात्मक समुच्चय हैं।

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निरंजन श्रोत्रिय साहित्य में वायवीयता होती है। कल्पना रचनात्मक साहित्य की प्रकृति है लेकिन किसी भी रचना की विश्वसनीयता के लिए यह आवश्यक है कि...
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चित्रा पँवार की कविताएँ कातर स्त्री मन से बूंद-बूंद रिसती ध्वनियाँ हैं

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अणु शक्ति सिंह मैं चित्रा पँवार की कविताएँ पढ़ रही थी। उन कविताओं को पढ़ते हुए कई बार खयाल आया कि इन कविताओं का एक...
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उज़्मा सरवत की कविताएँ व्यवस्था द्वारा निर्मित यथार्थ का आईना हैं।

मेहजबीं उज़्मा सरवत की कविताएँ समकालीन समय की आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक परिस्थितियों और पूंजीवादी व्यवस्था द्वारा निर्मित यथार्थ का आईना हैं। बहुत नपे-तुले शब्दों में...
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मनीष यादव की कविताएँ स्त्रियों के पक्ष में एक कवि का आर्तनाद हैं

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आदित्य शुक्ल मनीष यादव की कविताएँ भारतीय समाज में स्त्रियों के पक्ष को खोलती हुई जादू रचती हैं। ये कविताएँ स्त्रियों के पक्ष में मुनादी...
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हिमांशु जमदग्नि की कविताएँ जीवन के विस्तृत आयामों को स्पर्श करती हैं।

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देवेश पथ सारिया युवा कवि हिमांशु जमदग्नि एक गाँव से आते हैं और एक महानगर में पढ़ाई करते हैं। उनकी कविताओं का फलक कम उम्र...
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मधु सक्सेना की कविताएँ प्रतिकूलता का डटकर सामना करती हैं।

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ख़ुदेजा ख़ान मधु सक्सेना की कविताओं का मूल स्वर भले ही स्त्री केंद्रित है तथापि इसमें सामाजिक संदर्भों की एक वृहत्तर शृंखला दिखलाई पड़ती है...
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ज्ञान प्रकाश की कविताएँ बड़े मार्मिक ढंग से हमारी सुप्त अनुभूतियों को झकझोरती हैं।

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शालिनी सिंह एक कवि होना इतना भर तो नहीं कि उसकी रचनाएँ हर महत्वपूर्ण जगह प्रकाशित होने की लालसा से भरी हों.. न ही मानवीय...
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पवन करण की कविताएँ साहस एवं सजगता का प्रतीक हैं

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अंकिता रासुरी पवन करण की कविताओं में मौजूदा समाज एवं उसकी विडंबनाएँ मौजूद हैं। कैसे समाज बिखर रहा है बल्कि ऐसा जानबूझकर किया जा रहा...
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