अरविंद शेखर
स्त्रियां मानव इतिहास का निर्माण कैसे करती हैं। ‘सांदीनो की बेटियां’ किताब इसी का अहम दस्तावेज है। मारग्रेट रांडाल की इस महत्वपूर्ण पुस्तक ‘सांदिनोज डॉटर्स’ का हिंदी अनुवाद अमिता शीरीं ने किया है। अमिता शीरीं खुद कवयित्री, लेखिका, सामाजिक राजनीतिक कार्यकर्ता हैं तो समझ में आता है कि इस किताब का अनुवाद के लिए चुनाव उन्होंने क्यों किया, इसलिए कि यह निकारागुआ की औरतों की रोजमर्रा जिंदगी में नारीवाद और क्रांति के अंतर्संबंधों पर गहरी रोशनी डालती है।अमिता खुद संघर्षों में तपी हैं तो उनके अनुवाद की भाषा क्रांति के ताप को समझती है। हो सकता है कि स्पेनी नामों के अंग्रेजी से हिंदी में आने पर उच्चारण में आने वाला फर्क महसूस हो मगर यह मामूली बात है।
‘सांदीनो की बेटियां’ में क्रांति में हिस्सा लेने वाली तमाम आम व नेतृत्वकारी महिलाओं के साक्षात्कार हैं। जिनसे साफ है कि 1979 में सोमोजा की तानाशाही के विरुद्ध क्रांतिकारी संघर्ष ने कैसे निकारागुआ की आम महिलाओं का रूपांतरण किया और किस तरह समाज का भी कुछ रूपांतरण हुआ। 1912 में ‘बनाना युद्ध’ के समय संयुक्त राज्य अमेरिका ने निकारागुआ पर कब्जा कर लिया था इसके बाद निकारागुआ में सोमोजा परिवार ने सत्ता हासिल कर ली थी। यह परिवार निकारागुआ पर 1937 से 1979 तक काबिज रहा।
अमेरिका की मदद से टिकी सोमोजा सत्ता के दौरान निकारागुआ में बढ़ती असमानता, राजनीतिक भ्रष्टाचार और अमेरिकी बहुराष्ट्रीय निगमों का बोलबाला रहा। विरोधियों को कुचला गया। इसी सबके बीच निकारागुआ की मुक्ति के लिए सांदीनिस्ता की अगुवाई में क्रांति संपन्न हुई। ऑगस्तो सी. सांदीनो अमेरिकी साम्राज्य विरोधी वामपंथी क्रांतिकारी नेता थे। जिनके नेतृत्व में निकारागुआ पर अमेरिकी कब्जे के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष किया गया।
1934 में जब अमेरिका के इशारे पर जब जनरल अनास्तेसियो सोमाजा गार्सिया की कठपुतली सरकार ने सत्ता हस्तगत कर ली तो पहले सांदीनो से वार्ता का नाटक किया गया फिर जब सांदीनो वार्ता से लौट रहे थे तो सोमाजा के सुरक्षा बलों ने सांदीनो की हत्या कर दी। दक्षिणी अमेरिका के इस क्रांति नायक की स्मृतियों की प्रेरणा ने ही सांदिनिस्ता को जन्म दिया।
संभवतः इसी वजह से मारग्रेट रांडाल मे क्रांति में शरीक स्त्रियों से साक्षात्कारों की पुस्तक को ‘सांदिनोज डॉटर्स’ नाम दिया। यह किताब दक्षिणी एशियाई समाजों खासकर भारत के लिए भी इसलिए महत्वपूर्ण हैं कि मध्य अमेरिका के देश निकारागुआ के समाज और भारतीय समाज में धर्म और परिवार की जकड़नों जैसी काफी समानताएं हैं, लेकिन निकारागुआ में धर्म को भी क्रांति का औजार बना लिया गया। यहां तक कि मुक्ति के धर्मशास्त्र (Liberation Theology) ने भी जन्म ले लिया।
क्रांतिकारी संघर्ष के प्रभाव में महिलाओं ने रसोई, परिवार के बंधनों को तोड़ा, अपमान सहा, अमानवीय यातनाएं झेली, शहादतें दीं और इस सबके बीच नए समाज के निर्माण की राजनीति का ककहरा सीखा। किताब पढ़ते हुए आप इस अनुभव से गुजरेंगे कि कैसे निकारागुआ की महिलाओं ने अपने व्यवहारिक अनुभव से संगठित होकर लड़ना सीखा, राजनीतिक कार्यकर्ता बनी छापामार बनी। संघर्ष में आने वाली दिक्कतों को सुलझाने का प्रयास करते हुए ‘द एसोसिएशन ऑफ निकारागुअन वुमेन कन्फऱांटिंग द नेशनल प्रॉब्लम्स’ को खड़ा किया।
‘सांदीनो की बेटियां’ में छात्राएं हैं, प्रेमिकाएं हैं, बहने हैं, पत्नियां हैं, छोड़ दी गई महिलाएं हैं जो किसी न किसी वजह से क्रांति में शामिल हो गईं। मेलानिया डाविया जैसी महिलाएं हैं, जो गरीबी के कारण वेश्यावृत्ति के धंधे में फंसी, क्रांतिकारी आंदोलन में उन्होंने अपने बच्चे खोए, पर क्रांति ने उनका रूपांतरण कर दिया।
24 वर्षीय इनाडिया के क्रांति के दौरान शहीद होने से एक महीने पहले उसके अपने बेटी क्लाडिया को लिखे पत्र के अंतिम अंश से महसूस कीजिए कि क्रांति कैसे जीवन मूल्यों को बदल रही थी, लोगों की प्रेम चेतना को उद्दात्त कर रही थी-
आओ, मुझे अपना प्यारा चेहरा दिखाओ
फूलों और मुक्ति जितना प्यारा
और
मुझे संघर्ष की ऊर्जा दो
तुम्हारी हंसी और यथार्थ को मिलाते हुए
रोज, मैं तुम्हारे बारे में सोचती हूं
हमेशा यह सोचते हुए कि तुम कैसी हो
हमेशा अपनी जनता और मानवता से प्यार करना
अपने समूचे प्यार के साथ
तुम्हारी मां- इनाडिया
‘सांदिनोज डॉटर्स’ के प्रकाशित होने के एक दशक बाद मारग्रेट रांडाल फिर से निकारागुआ गईं थी और उन्होंने फिर से उन्हीं महिलाओं से बात की थी जिनका उन्होंने पहले साक्षात्कार लिया था। रांडाल ने मजदूर औरत डायना एस्पिनोजा, सांदीनिस्ता सरकार में उपमंत्री डेजी जमोरा और समोजा सरकार के अधिकारी की बेटी विदालुज मेनेसेस से बात की, जो मानती थी कि कैथोलिक आदर्शों के चलते ही वह क्रांति में शामिल हुई। इस यात्रा के बाद मारग्रेट रांडाल की एक और किताब प्रकाशित हुई ‘सांदीनोज डॉटर्स रिविजिटेड’। इस किताब में ये महिलाएं सांदीनिस्ता सरकार के समय की उनकी जिंदगी बयान करती हैं, कि किस तरह क्रांति ने उन्हें मजबूत बना दिया था। वर्ष 1990 में सांदीनिस्ता की चुनाव में हार ने सांदीनिस्ता महिलाओं को अपने अनुभवों और विचारों को लेकर और मुखर होने की आजादी दी। इस किताब से पता चलता है कि सांदीनिस्ता आंदोलन के प्रति औरतों में कितना आकर्षण था।
अफसोस की बात है कि सांदीनिस्ता सरकार के हिस्सा रहे पूर्व मार्क्सवादी –लेनिनवादी छापामार जोसे डेनियल ओर्टेगा सावेद्रा आज निकारागुआ के राष्ट्रपति हैं। सांदीनिस्ता सरकार के समय राष्ट्रीयकरण, भूमिसुधार जैसे कार्यक्रमों को लागू कराने में उनकी अहम भूमिका था लेकिन आज उनकी नीतियां बिलकुल उलट हैं।
मगर मारग्रेट रांडाल के ही शब्दों में- “केवल क्रांति ही एक ऐसी ताकत है जो सामाजिक ढांचे को रूपांतरित कर सकती है। सालों के शोषण के बाद जनता एक पीड़ादायी लेकिन अभूतपूर्व प्रक्रिया में शामिल हुयी। इसके माध्यम से उसने अपनी निर्भरता की जंजीरों को तोड़ा और ‘अपनी मुक्ति के निर्माता’ के रूप में हिस्सेदारी शुरू की। निकारागुआ में हुए राजनीतिक परिवर्तन से जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में ढांचागत परिवर्तन की राह खुली। संस्थाओं, मूल्यों एवं दृष्टिकोणों में जो परिवर्तन अभी चल रहे हैं, वे स्वयं में क्रान्तिकारी प्रक्रिया की निरन्तरता ही हैं। वे क्रान्तिकारी संघर्ष की तरह ही लम्बे और थकाने वाले सिद्ध होंगे।”
और अंत में-
तन के भूगोल से परे
एक स्त्री के मन की गाँठें खोलकर
कभी पढ़ा है तुमने उसके भीतर का खौलता इतिहास
पढ़ा है कभी उसकी चुप्पी की दहलीज पर बैठ
शब्दों की प्रतीक्षा में उसके चेहरे को
अगर नहीं
तो फिर जानते क्या हो तुम
रसोई और बिस्तर के गणित से परे एक स्त्री के बारे में?”
–निर्मला पुतुल
पुस्तक –सांदीनो की बेटियां, मूल लेखिकाः मारग्रेट रांडाल, संपादनः लिंडा यान्ज, हिंदी अनुवादः अमिता शीरीं मूल्य-275 रुपये , प्रकाशक- न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन
(अरविंद शेखर देहरादून में पत्रकार और कार्टूनिस्ट हैं)