(समकालीन जनमत की प्रबन्ध संपादक और जन संस्कृति मंच, उत्तर प्रदेश की वरिष्ठ उपाध्यक्ष मीना राय का जीवन लम्बे समय तक विविध साहित्यिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक हलचलों का गवाह रहा है. एक अध्यापक और प्रधानाचार्य के रूप में ग्रामीण हिन्दुस्तान की शिक्षा-व्यवस्था की चुनौतियों से लेकर सांस्कृतिक संकुल प्रकाशन के संचालन, साहित्यिक-सांस्कृतिक आयोजनों में सक्रिय रूप से पुस्तक, पोस्टर प्रदर्शनी के आयोजन और देश-समाज-राजनीति की बहसों से सक्रिय सम्बद्धता के उनके अनुभवों के संस्मरणों की श्रृंखला हम समकालीन जनमत के पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं. -सं.)
अंकुर की लम्बी बीमारी
इस बार अंकुर पूरी तरह ठीक होने में लगभग 6 माह का समय ले लिए। वह केन्द्रीय विद्यालय में कक्षा -4 में पढ़ रहा था। 20 दिसंबर से विंटर वोकेशन हो गया। मोहल्ले के दोस्तों के साथ अगले ही दिन हाथी पार्क घूमने गया। घर आया तो चेहरा उतरा देख मैंने पूछा कि क्या हुआ? वो तो कुछ नहीं बताया उसके दोस्त बताए कि वहां झूले पर इसको चक्कर आ गया और उल्टी हुई, उसके बाद से सिर दर्द हो रहा है। रात होते-होते 102 डिग्री बुखार हो गया। वैसे दो तीन सालों से इसे महीने-दो महीने में जब भी सिर दर्द होता था इसको बुखार हो जाता था और वो भी 102-3 डिग्री तक। एक दो दिन में ठीक भी हो जाता था। लेकिन इस बार अंकुर का बुखार उतर ही नहीं रहा था। डाक्टर राजीव सरन शहर से बाहर थे इसलिए दूसरे डाक्टर को दिखाकर दवा ले आए थे। दवा खाने के बावजूद दिन भर में बुखार कम से कम तीन बार 104 डिग्री भी पार करने लगता था। किसी दूसरे डाक्टर को दिखाने के लिए वी एन राय के यहां दीपू के साथ समता को भेजे। वी एन राय दिलकुशा पार्क में किसी डाक्टर को दिखाए। उन्होंने टाइफाइड और मलेरिया का टेस्ट करवाया। दोनों निगेटिव निकला। दो दिन की दवा दिए लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा। डॉक्टर ने टेस्ट दूसरी जगह करवाने की सलाह दी कि लक्षण टाइफाइड का लग रहा है। दूसरी जगह टाइफाइड पाज़िटिव निकला। फिर डाक्टर ने दवा बदली। उसके बाद भी बुखार की स्थिति जब की तस रही। धीरे धीरे 10 दिन हो गया लेकिन बुखार उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था। दवा देने के बाद कुछ देर के लिए बुखार उतरता फिर कुछ घंटे बाद चढ़ जाता। डाक्टर राजीव सरन आ गए थे। अंकुर को दिखाने कुमुदिनीपति के साथ मैं डॉक्टर राजीव सरन के यहां गई। उन्होंने चिल्ड्रेन हास्पीटल में भर्ती करने को कहा। रामजी राय को उसी दिन प्रयागराज से दिल्ली जाना था। अंकुर को दिखाकर घर आए तो रामजी राय जाने के लिए तैयार थे। ‘जनमत’ को अब पटना की जगह दिल्ली से निकालने का निर्णय हुआ था। रामजी राय को ही इसकी जिम्मेदारी दी गई थी। और जनवरी में ही उसका डेमो अंक निकाल देना था। इसलिए उनका दिल्ली जाना जरुरी था और वो दिल्ली चले गए।
सुबह अंकुर को चिल्ड्रेन हास्पीटल लेकर गए। ओपीडी में डाक्टर रहमान बैठे थे। आज राजीव सरन का दिन ही नहीं था। मैंने बोला कि डाक्टर राजीव सरन को मैंने दिखाया है उन्होंने ही यहां भेजा है। डाक्टर रहमान बोले उनके अंडर में भर्ती करवाना है तो परसों आइए। मैंने भर्ती के लिए पर्ची बनवा लिया था। बैठे-बैठे सोच ही रहे थे कि क्या करें तब तक डाक्टर राजीव सरन दिख गए। उनसे बताए तो बोले आप डाक्टर रहमान के अंडर में ही भर्ती कर दीजिए मैं भी देख लिया करुंगा। अंकुर को भर्ती कर दिए, दवा भी शुरु हो गई। फिर सारे टेस्ट हुए। टाइफाइड निगेटिव आया। 3-4 दिन हो गया लेकिन बुखार चढ़ने उतरने में कोई बदलाव नहीं आया। 24 घंटे में चार बार 104 डिग्री बुखार हो ही जा रहा था। बारी-बारी लगभग हास्पीटल के सभी डा. अंकुर को एक बार जरुर देखने आते थे। अंकुर अब बैठ भी नहीं पा रहा था। बिस्तर पर लैट्रिन करने को तैयार ही नहीं होता था। उसके दोनों कांख में हाथ लगाकर गट्टे के बल पर उठाकर उसको लैट्रिन करवाते थे कि उसके पैर पर जोर न पड़े। दूसरा हफ्ता भी बीतने को है लेकिन बुखार चढ़ना नहीं रुका। बच्चे की हालत देखी नहीं जा रही थी। अगले दिन से डाक्टरों का जहां क्लास लगता था उस रुम में मुझे अंकुर को स्ट्रेचर पर लेकर 8.30 से 11.30 तक रहना पड़ता था। अंकुर की बीमारी पर ही क्लास होता था। बाहर एक बुजुर्ग चौकीदार थे। ड्यूटी के बाद घर जाते समय जरुर आते थे और अंकुर को हिम्मत बंधा कर जाते थे कि अंत में तो तुम्हीं जीतोगे, बुखार हारेगा। अंकुर की हालत देखी नहीं जा रही थी। अंकुर को देखने पिता जी गांव से आए थे। समता घर संभाले हुई थी। मेरे लिए सुबह का खाना संध्या जी देते हुए स्कूल जाती थीं। शाम में खाना घर से आता था। अंकुर को देखने बगल की शिखा के यहां से कोई न कोई रोज आता था उन्हीं के साथ समता भी आ जाती या खाना भिजवा देती थी।
26 जनवरी नजदीक आ गया था। बच्चों को मिठाई बटवाने के इंतजाम के लिए एक टीचर को जिम्मा दिए थे। सबकी राय से स्कूल से सूचना आई कि अंकुर बीमार है तो इस साल मिठाई न बंटेगी। 24 को मैंने संध्या जी से स्कूल में खबर भिजवा दिया कि मैं खुद 26 जनवरी को मिठाई लेकर स्कूल आऊंगी थोड़ा इंतजार करेंगे लोग। मैंने सोचा मेरा लड़का बीमार है, अपने बच्चे के लिए उन बच्चों की खुशी रोकना ठीक नहीं होगा। फिर मैंने महेन्द्र यादव (उदय का भांजा ) को 26 जनवरी को सुबह 5 से 10 बजे तक के लिए हास्पीटल बुला लिया। महेन्द्र यादव समय से आ गये। मैं मोपेड से घर गई और तैयार होकर रामबाग स्टेशन के पास वाले हनुमान मन्दिर से (इसलिए कि यहां सस्ता मिलता था) 10 किलो मोतीचूर का लड्डू लेकर स्कूल गई। अभी ध्वजारोहण नहीं हुआ था। स्कूल जाने पर पता चला कि भूतपूर्व प्रधानाध्यापिका श्रीमती प्रकाश श्रीवास्तव का निधन हो गया है। ध्वजारोहण के बाद संक्षिप्त कार्यक्रम हुआ तत्पश्चात प्रबंधक ने मिष्ठान वितरण करने को कहा। मैंने कहा भी कि भूतपूर्व प्रधानाध्यापिका की मृत्यु हुई है तो मिठाई बांटी जाय? प्रबन्धक ने कहा कि ये राष्ट्रीय पर्व है। व्यक्तिगत कारण का इससे कोई मतलब नहीं। बच्चों को मिठाई बांटी गई और मेरा मिठाई लेकर आने का निर्णय भी सही रहा।
शिखा के पापा रामजी राय के न आने से बहुत नाराज़ थे और रामजी राय को दिल्ली फोन भी कर दिए। रामजी राय को वैसे भी उस दिन आना ही था। सुबह रामजी राय आ गए। हास्पीटल पहुंचे तो मैंने कहा कि अब आप आ गए हैं तो यहां रहिए मैं आज थोड़ी देर के लिए स्कूल चली जाऊं। बोले ठीक है जाइए। मैं घर आई, फिर स्कूल निकल गई। इंटरवल के बाद स्कूल से मैं जल्दी ही घर निकल आई। दो बजे घर पहुंचे तो देखे कि रामजी राय खाना खा रहे हैं और अंकुर भी आ गया है। मैंने पूछा ये कैसे घर आ गया? रामजी राय का कहना था कि इतने दिन से बच्चा भर्ती है और एक डिग्री भी बुखार नहीं उतरा तो वहां रखने से क्या फायदा? किसी और को दिखाया जाएगा। जो भी हो ऐसे नहीं लाना चाहिए था आपको। हास्पीटल में एक से एक डाक्टर इसे देख रहे थे। कल को फिर दिखाना हुआ तो कैसे दिखाएंगे उनको? आप को तो रहना नहीं है यहां। रामजी राय बोले ठीक है सुबह हम वहीं ले जाएंगे और चाहे कुछ भी हो जाय मैं अंकुर को घर नहीं लाऊंगा बस!। फिर बाद में बताए कि मैं डाक्टर से बात करके लाया हूं सुबह डाक्टर के राउंड से पहले इसे बेड पर होना चाहिए। सुबह हमलोग राउंड से पहले अंकुर को बेड पर लिटा दिए। राउंड के बाद किसी तरह मैं डाक्टर राजीव सरन से मिली और उन्हें बताया कि डाक्टर साहब यहां कमोड वाली सीट नहीं है और अंकुर बैठ नहीं पा रहा है ।अगर आप का पर्मिशन हो तो दोपहर राउंड के बाद इसे घर ले जाएं और सुबह राउंड से पहले हम लेकर आ जाएंगे। उन्होंने कहा कि ठीक है लेकिन आज इसका ब्लड कल्चर और कुछ टेस्ट लिखा है जिसमें कुछ यहां होगा और कुछ स्वरुप रानी हास्पीटल में कराना होगा। इस टेस्ट के लिए ब्लड सिरेंज से खींचकर नहीं निकाले, अंकुर को करवट करके रीढ़ की हड्डी के पास सिरेंज लगाए लेकिन ब्लड खींचे नहीं सिरेंज छोड़ दिए बाकी हटा लिए और सिरैंज से बूंद बूंद टपकाकर ब्लड एक शीशी में इकट्ठा कर रहे थे। दर्द के मारे मेरा बच्चा रोए जा रहा था। ऐसा आज तीसरी बार ब्लड लिए थे। दो बार हथेली के ऊपर सिरेंज लगाकर टपकाकर ब्लड लिए थे। ब्लड देने के बाद अंकुर के दोनों पैर, हाथ और सीने का एक्सरे कराने हमलोग स्वरुप रानी हास्पीटल गए। अगले दिन से यही हो रहा था, डाक्टरके राउंड के बाद घर और सुबह राउंड से पहले हास्पीटल। डाक्टर राजीव सरन ने रिपोर्ट देखकर कहा कि अब इसे कोई दवा मत दीजिए संभव है इसको ड्रग फीवर हो गया है। इसको केवल दिन में तीन बार डिस्प्रिन दीजीएगा और हर घंटे खाने में क्या क्या देना है बताकर दस दिन बाद मिलने को कहा और हॉस्पिटल से डिस्चार्ज भी कर दिया।
अंकुर की हालत ये हो गई थी कि अपने से करवट भी नहीं बदल पा रहा था। टेपरिकार्ड का बटन नहीं दबा पा रहा था। हाथ पैर एकदम डंडे की तरह रह गया था। गोदी भी बहुत संभाल कर उठाना पड़ता। एक महीने दवा बंद करने के बाद एक डिग्री बुखार उतरा। चार महीने लगातार उसको रोज तीन डिस्प्रिन दी गई। अप्रैल के बाद उसका बुखार पूरी तरह से नार्मल हो गया। यूं कहिए कि मेरा बच्चा मरते मरते बचा। कभी कभी कहता था मम्मी हम फिर चल पाएंगे न। मैं बोलती- बच्चा चलोगे ही नहीं दौड़ोगे भी, क्रिकेट भी खेलोगे, साइकिल चलाओगे। बस थोड़ा समय लगेगा।
जिस समय हास्पीटल से घर आया। एक हफ्ते बाद रामजी राय को जाना ही था कितने दिन रुकते। समता भी स्कूल जाने लगी। मैं भी कितने दिन छुट्टी ले सकती हूं। हमलोग सोच ही रहे थे कि किसको बुलाया जाय। या तो इनकी बड़ी भाभी आतीं या मेरी बड़ी भाभी। तब तक भिलाई से बड़ी दीदी (ननद) आ गईं, अर्धकुम्भ में अमावस्या नहाने। अगले दिन से उन्हें किसी के टेन्ट में रुकना था। गईं तो जरुर टेंट में लेकिन एक ही रात रुकीं। सुबह आ गई कि मैं नहाने वाले दिन चली जाया करुंगी। मैं अंकुर को देखूंगी तुम अपना स्कूल देखो। और दीदी होली से पहले भिलाई गईं। अंकुर को थ्रेपटिन बिस्कुट, कलेजी, गोड़ी, मूंगफली, फल का सूप, फल आदि टाइमटेबल से हर घंटे पर देना था। उसके हाथ पैर में जैतून के तेल से मालिस भी करते थे। बुआ के साथ खुश था बस यही कहता कि हमको स्कूल जाने से पहले लैट्रिन कराकर जाया करो। दरअसल लैट्रिन रुम छोटा था दीदी इसको बैठा नहीं पाती थीं और ये अभी पैर पर पूरा जोर नहीं दे पा रहा था, इसलिए इसे दिक्कत होती थी। मैं इसका पूरा भार अपने गट्टे पर उठाए रहती थी। दीदी के जाने के बाद थोड़ी दिक्कत तो बढ़ी लेकिन शिखा के यहां लोग संभाल लेते थे। और धीरे -धीरे अंकुर चलने भी लगा था। फिर स्कूल बंद होने पर हमलोग भी दिल्ली चले गए।
यह सब लिखते लिखते एक बात याद आ गई है कि समता जब छोटी थी तो गांव जाने पर हमारे बड़े ससुर उसको पैर पर लेटा कर (जैसे घुघुआ मन्ना खेलाते हैं वैसे) खेलाते थे और जब-तब यह कहते हुए कि- समता रानी समता रानी, मम्मी पापा तीन परानी- और ये कहकर खूब जोर से हंसते थे। एक बार रामजी राय ने पूछा भी कि आप समता को जब भी खेलाते हैं तो समता रानी समता रानी, मम्मी पापा तीन परानी कहकर इतना तेज हंसते क्यों हैं? बोले- कि तुम लोग तीन परानी कैसे रहते होगे! बात तो सही थी कि हम लोगों को अकेले रहने में जो परेशानी होती रही, ज्वाइंट फैमिली में रहते तो न होती। और अब तो रामजी राय भी बाहर रहने लगे। अंकुर के होने के बाद हमलोग फिर तीन परानी हो गए। उनकी तीन परानी वाली बात याद आती रहती। लेकिन यह भी सच है कि अंकुर के होने के समय जिस तरह से उदय, शिवकुमार, रामचेत, विनोद श्रीवास्तव, माधुरी पाठक आदि संगठन के लोगों ने सभाला वह संयुक्त परिवार से कम नहीं था। पहले पार्टी के लोगों में जो सहयोग की भावना थी, उसमें अब कमी दिखती है। लड़कों में वो जुनून नहीं दिखता। समय का असर है या पता नहीं कुछ और। शिवकुमार मिश्र बांदा के, उदय यादव जौनपुर के, मैं दो बच्चों सहित गाजीपुर की एक संयुक्त परिवार की तरह ही थे। बाद के दिनों में अगल बगल के लोगों ने भी संयुक्त परिवार की कमी नहीं महसूस होने दी। एक बार अंकुर बाहर गली में रवि के घर के आगे चबूतरे से जय श्रीराम कहकर कूद पड़ा और उसकी आंख के ऊपर लम्बा कट गया। ठीक उसी समय मैं स्कूल से लौटकर अभी गली में प्रवेश ही कर रही थी कि देखी चाची ( रवि की मां) अंकुर को गोद में उठाए हुए थीं और उसके माथे से खून निकल रहा था। उनकी बेटी कुछ पिलाने के लिए ले आई। तब तक आर डी सिंह ( बगल में रहते थे ) वकील भी आ गए। तुरन्त गली के बाहर एक दो डाक्टर को दिखाए लेकिन उन लोगों ने हास्पीटल ले जाने को कह दिया। फिर वकील साहब मुझे और अंकुर को लेकर बेली हास्पीटल गए। बिना सुन्न किये टांका लगाया जाने लगा। दर्द से अंकुर रोने लगा तो मेरी दशा देख डाक्टर ने मुझे वहां से हटा दिया और वकील साहब अंकुर को टांका लगवाए। फिर 4 दिन बाद वही ले जाकर टांका भी कटवाए। मुहल्ले के लोगों का सहयोग इतना था कि बच्चों को अकेले छोड़ने पर भी कोई चिंता/ डर नहीं रहता था। आज तक मेरे मोहल्ले के लोग हर तरह से मेरा सहयोग करते हैं और सामर्थ्य भर मैं भी उनका सहयोग करती हूं।