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प्रेमचंद हमारे लिए आज भी जरूरी – शिवमूर्ति

‘कामरेड गंगा प्रसाद’ पुस्तिका का विमोचन तथा फ़रज़ाना महदी का कहानी पाठ

लखनऊ। महान कथाकार मुंशी प्रेमचंद की 141 वीं जयंती के मौके पर जन संस्कृति मंच की ओर से लोहिया भवन, नरही, हजरतगंज, लखनऊ में प्रेमचंद जयंती का आयोजन किया गया। इसका केंद्रीय विषय था ‘हमारे समय में प्रेमचंद’। अध्यक्षता प्रसिद्ध कथाकार शिवमूर्ति ने की तथा मुख्य वक्ता कवि और आलोचक चंद्रेश्वर थे। संचालन जसम उत्तर प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष कौशल किशोर ने किया।

जन संस्कृति मंच उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष शिवमूर्ति का कहना था कि हम बड़े संकट के दौर से गुजरे हैं । हमारे बीच मिलना जुलना करीब-करीब खत्म था । प्रेमचंद जयंती ने हमें आपस में मिलने का अवसर दिया। यह मांद से बाहर आने से कम नहीं है। उन्होंने कहा कि आज की रूढ़ियों, जातिवाद, धर्मांधता को देखते हुए प्रेमचंद के जमाने की समझा जा सकता है कि उन्हें किन विपरीत स्थितियों से गुजरना पड़ा। प्रेमचंद ने बोल्ड विषय चुने, ऐसे विषय जिन्हें चुनने में आज लोग घबराते हैं । प्रेमचंद को अप्रासंगिक बनाने की 40 से 90 के दौर में बहुत कोशिश हुई। लेकिन करीब 100 साल हो जाएंगे। आज भी उनकी बातें सच्ची लगती है । किसानों को मूल्य नहीं मिलने को उन्होंने पकड़ा था। वह सवाल आज भी है। इसीलिए अतीत के नहीं हमारे वर्तमान के रचनाकार हैं और हमारे लिए बहुत जरूरी है।

कवि व आलोचक चन्द्रेश्वर का कहना था कि प्रेमचंद उपनिवेशवाद, सामंतवाद और पूँजीवाद का विरोध एक साथ करते हैं | वे सच्चे मायने में आधुनिक कबीर थे |

 

उन्होंने अपने संपूर्ण साहित्य में भारतीय समाज में सदियों से अंतर्व्याप्त हर तरह के भेदभाव, विषमता और धार्मिक पाखंड पर चोट किया | अस्पृश्यता ,सामाजिक कुरीतियों ,बुराइयों या किसी तरह की कट्टरता-संकीर्णता और जड़- रूढ़ियों पर पूरी ताक़त से अपनी क़लम से प्रहार किया | इसी अर्थ में वे ‘क़लम के सिपाही’ हैं | वे वर्णवाद,जातिवाद और संप्रदायवाद के विरोध में निरंतर लिखते रहे | आज वर्तमान जटिल परिस्थितियों में ऐसे लेखकों के साहित्य से ही नयी दिशा और रोशनी मिलेगी | इनको बराबर पढ़ने और पढ़कर गुनने की ज़रूरत है |

दूसरे सत्र में ‘कामरेड गंगा प्रसाद’ पुस्तिका का विमोचन हुआ। अवधेश कुमार सिंह ने गंगा प्रसाद के जीवन संघर्ष और व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला और बताया कि कैसे सर्वहारा से उनका रूपांतरण सर्वहारा बुद्धिजीवी में हुआ। उनका कहना था कि लेनिन पुस्तक केंद्र के संचालन में उनका विजन दिखता है। इसे लखनऊ के सांस्कृतिक केंद्र में बदला। इस मौके पर गंगा प्रसाद पर लिखी अवंतिका राय की कविता का पाठ भी किया गया।

तीसरा सत्र कहानी पाठ का था । युवा कथाकार फ़रज़ना महदी ने अपनी कहानी ‘एक गिद्ध का इंतजार’ सुनाया। यह कहानी कोरोना काल की तल्ख हकीकत, अकेलापन की मन:स्थिति और व्यवस्था की नाकामी को उजागर करती है । इस कहानी पर हुई चर्चा में शिवाजी राय, अजीत प्रियदर्शी, आशीष सिंह और विनय श्रीकर ने अपने विचार रखे। शिवमूर्ति का कहना था कि महदी की कहानी में अच्छी भाषा व प्रवाह है। कहीं भी ठहराव नहीं है। इतनी कम उम्र में भाषा पर ऐसी पकड़ होना कोई मामूली बात नहीं है। महदी की कहानी में बिखराव देखने को नहीं मिलता। जिसका जो अनुभव संसार होता है वो वही लिखता है। अगर उसने शहर का जीवन देखा है तो वही लिखेगा और अगर किसी ने गांव का जीवन देखा है तो वो वह लिखेगा। इसलिए हम ये नहीं कह सकते कि अगर इसको ऐसा लिखा जाता तो ठीक होता।

इस अवसर पर भगवान स्वरूप कटियार, श्याम अंकुरम, उमेश पंकज, विमल किशोर, शशि बाला, मोहित कुमार पांडे, अमित राय, आदियोग, आर के सिन्हा, आशु, अरविंद शर्मा, संजीव कुमार, प्रिया सिंह अमर ध्वज राज, ज्योति राय उपस्थित थे। कलीम खान धन्यवाद ज्ञापित किया ।

साधारण जीवन का असाधारण आख्यान प्रस्तुत करते हैं प्रेमचंद : चन्द्रेश्वर

प्रेमचंद ने हिन्दी कहानी की ज़मीन को पूरी तरह से बदल दिया | उन्होंने हिन्दी कहानी को एक नव उत्कर्ष और विस्तृत आसमान प्रदान किया | वे हिन्दी कहानी के अबतक के सबसे बड़े फ़नकार और उस्ताद हैं | उन्होंने हिन्दी कहानी को सीधे साधारण जन-जीवन की सच्चाइयों एवं वास्तविकताओं से जोड़ने का ऐतिहासिक और युगांतरकारी कार्य संपादित किया | उनकी कहानियों और उपन्यासों में आम जन की तकलीफ़ों,आशाओं,आकांक्षाओं, उसके सुख-दुःख की, संघर्षों की अभिव्यक्ति हुई है |

हिन्दी साहित्य के आदिकाल(वीरगाथा) में काव्य की मुख्यधारा के केन्द्र में राजा और सामंत वर्ग थे | तमाम कवियों ने अपने आश्रयदाता राजाओं और सामंतों की प्रशंसा में काव्य की रचना की | पूर्वमध्यकाल (भक्तिकाल) में काव्य के केन्द्र में ईश्वर था | निर्गुण-सगुण भक्तिकाव्य में कवियों ने ईश्वर के स्वरूप को लेकर गहन-गंभीर तरीके से प्रकाश डाला है | निर्गुण धारा के प्रेममार्गी सूफी कवि मल्लिक मुहम्मद जायसी ने ईश्वरत्व को नारी सौन्दर्य और प्रेम से जोड़ा तो निर्गुण धारा के ज्ञानमार्गी कबीर ने ईश्वरत्व को प्रेम और ज्ञान से जोड़ा | सगुण धारा में सूरदास ने श्री कृष्ण को तो तुलसीदास ने राम को ईश्वर माना | कहने का तात्पर्य यह है कि भक्तिकाव्य में ईश्वर विमर्श मुख्य है | ईश्वर को केन्द्र में रखकर ही सामान्य जन की पीड़ा ,सुख-दुःख या उल्लास को समझने का प्रयास दिखता है | उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल) में पुनः राजा आ जाते हैं और किंचित ईश्वर विमर्श भी बचा रहता है |

 

आधुनिक काल में बीसवीं सदी के आरंभिक दशकों में ही प्रेमचंद के हिन्दी साहित्य में प्रवेश के बाद पूरा परिदृश्य बदल जाता है | कोई एक सहस्राब्दी से चली आ रही हिन्दी साहित्य की परंपरा में एक विशेष गुणात्मक अंतर आ जाता है | हिन्दी साहित्य के केन्द्र में साधारण जीवन का असाधारण आख्यान प्रस्तुत करते हैं प्रेमचंद | यह प्रेमचंद पर आधुनिक और नवजागरण से निकले विचारों का ही असर था | हिन्दी साहित्य में आस्था की जगह तर्कपूर्ण विश्लेषण और विवेक की प्रतिष्ठा करते हैं प्रेमचंद | प्रेमचंद के संपूर्ण कथा साहित्य में समाज के वंचित-शोषित-उत्पीड़ित समाज की,किसान-मज़दूर ,दलित और स्त्री जीवन की समस्याओं को प्रमुखता से स्थान मिला है | प्रेमचंद ने बीसवीं सदी के आरंभिक दशकों में ही हिन्दी साहित्य का जो एजेन्डा तय किया वह इस सदी के अंतिम दशक में भी छाया रहा है | प्रेमचंद का वह एजेन्डा आज भी महत्वपूर्ण बना हुआ है | प्रेमचंद ने समाज के उनलोगों को नायकत्व प्रदान किया जो सर्वाधिक उपेक्षित थे | प्रेमचंद की कहानियों और उपन्यासों को पढ़ते हुए इसे परिलक्षित किया जा सकता है | प्रेमचंद की साहित्य दृष्टि बिल्कुल साफ़ थी | उनका संपूर्ण सर्जनात्मक और वैचारिक गद्य इस बात को स्थापित करता है कि वे बराबर देश के विशाल मेहनतकश और कमज़ोर वर्ग के पक्ष में लिखते रहे | उनका सारा लेखन प्रतिरोध और नयी ज्ञान की चेतना का वाहक है | वे अपने साहित्य से अपने पाठकों का न केवल मनोरंजन करते हैं,अपितु उनको शिक्षित भी करते हैं |

वे उपनिवेशवाद,सामंतवाद और पूँजीवाद का विरोध एक साथ करते हैं | वे अपने समय के एक क्रांतिद्रष्टा कथाकार थे | वे सच्चे मायने में आधुनिक कबीर थे |

प्रेमचंद ने अपने संपूर्ण साहित्य में भारतीय समाज में सदियों से अंतर्व्याप्त हर तरह के भेदभाव,विषमता और धार्मिक पाखंड पर चोट करते हैं | वे

अस्पृश्यता ,सामाजिक कुरीतियों ,बुराइयों या किसी तरह की कट्टरता-संकीर्णता और जड़- रूढ़ियों पर पूरी ताक़त से अपनी क़लम से प्रहार करते हैं | इसी अर्थ में वे ‘क़लम के सिपाही’ हैं | वे वर्णवाद,जातिवाद और संप्रदायवाद के विरोध में निरंतर लिखते रहते हैं | वे एक सच्चे देशभक्त साहित्यकार हैं | आज वर्तमान जटिल परिस्थितियों में हमारे हिन्दी के ऐसे लेखकों के साहित्य से ही नयी दिशा और रोशनी मिलेगी | इनको बराबर पढ़ने और पढ़कर गुनने की ज़रूरत है |

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