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नित्यानंद गायेन की कविताओं में प्रेम अपनी सच्ची ज़िद के साथ अभिव्यक्त होता है

कुमार मुकुल

 

नित्यानंद जब मिलते हैं तो लगातार बोलते हैं, तब मुझे अपने पुराने दिन याद आते हैं। कवियों की बातें , ‘कांट का भी दिमाग’ खा डालने वालीं।

नित्यानंद की कविताएँ रोमान से भरी होकर भी राजनीतिक विवेक को दर्शाती हैं। एक बार बातचीत में आलोकधन्वा ने कहा था – लोग नहीं जानते,रोमान्टिक होना कितना कठिन है, रोमांटिसिज्म के बिना कोई बड़ा कवि नहीं हो सकता।

नित्यानंद लिखते हैं –

अरे बुद्धु, कवि मरते नहीं
मार दिए जाते हैं अक्सर
कभी प्रेम के छल से
कभी सत्ता के बल से।
– – –
कोई भी प्रेम कविता पारंपरिक नहीं होती। नये जीवनोन्‍मेष, बेचैनी को स्‍वर देने के क्रम में वह घटित होती है। एक-दूसरे को अपने समय संदर्भों में समझने की कोशिशों में आकार पाती है वह –

‘शायद आज कोई किसान आत्‍महत्‍या नहीं करेगा
खाप को शायद पता चल जाये
प्रेम का मतलब‍
और पुलिस समझ ले
लोकतंत्र क्‍या है
इसी तरह कुछ उम्‍मीदों के साथ
प्रवेश करेगा
आंगन में
सूरज
मैं चूम लूंगा तुम्‍हारा माथा…। ‘

नित्‍यानंद गायेन की कविताएँ (संदर्भ – ‘तुम्‍हारा कव‍ि’ की कविताएँ) जीवन-जगत के तमाम विमर्शों को समेटती चलती हैं, प्रेम भी सहजता से उसका हिस्‍सा बनता चलता है –

‘मेरा इंतजार उस जनता की तरह है
जो हर चुनाव से पहले सोचती है
इस बार सरकार सुनेगी उसकी बात …।’


जीवन के संघर्षों को कवि अपने प्रेम विमर्श से अलग नहीं करता और यही उसकी ताकत है और संघर्ष भी, क्योंकि वह मानता है कि – ‘प्रेम ही खुद में सबसे बड़ी क्रांति है।’

अब प्रेम क्रांति है तो वह अपने समय की सबसे बड़ी चुनौत्‍ाी खुद बन जाएगा। समाज के सत्‍ता विमर्श के लिए वह खतरे की घंटी की तरह बजता रहेगा। जिसे शांत करने की हर कोशिश, जीवन व प्रेम को त्रास देगा पर प्रेम का पौधा उन तमाम त्रासद स्थितियों में भी पल्‍लवित होता चला जाएगा।

प्रेम में जो एक अनंतता का भान होता है, जिसका आधार प्रकृति होती है, वह अपने सहज उद्वेग के साथ गायेन की कविताओं में है –

‘नदी में जल रहे
या
न रहे
मेरी आंखों में
बाकी रहेगा गीलापन।’

प्रेम हर शै काे पुनर्परिभाषित करने की अपनी अथक कोशिशेां से कभी बाज नहीं आता। यही प्रेम की ताकत होती है, जिसे अपनी सच्‍ची जिद के साथ गायेन ने अपनी कई कविताओं में अभिव्‍यक्‍त किया है – ‘अलविदा,’ ‘मैं पतझड़ में बसंत लिख रहा हूं’, अ‍ादि ऐसी ही कविताएँ हैं।

प्रेम हमेशा एक खुला रहस्‍य होता है, जिंदगी की तरह। जिंदा लोग ही इसे देख व जान पाते हैं। हर पल जाने वाला है, हर सांस चूकने वाली है, यह जानते हुए भी हम अगले पल, अगली सांस के लिए प्रयासरत रहते हैं, यही जीवन है और प्रेम भी।

 

नित्‍यानंद गायेन की कुछ कविताएँ-

 

बहुत वीरान समय है

बहुत वीरान समय है
और ऐसे में तुम भी नहीं हो यहाँ
राजा निरंकुश है
बहुत क्रूर है
और मैं लिखना चाहता हूँ
हमारी प्रेम कहानी
तुम कहो –
क्या लिखूं – अंत,
मिलन या मौत !
राजा मौत चाहता है हमारी
और मैं चाहता हूँ मिलन !
राजा रूठे तो रूठे
तुम न रूठना कभी …
-तुम्हारा कवि

 

प्रेम ही खुद में सबसे बड़ी क्रांति है

ख़ुशी लिखना चाहता था
लिख दिया तुम्हारा नाम
लिखना चाहता था ‘क्रांति’
और मैंने ‘प्रेम’ लिख दिया
सदियों से
प्रेम ही खुद में सबसे बड़ी क्रांति है ..

प्रेम क्रांति का पहला पड़ाव है

इस दौर में
कवियों से अधिक हमले
प्रेमियों पर हुए हैं
तभी तो ,
कवियों से अधिक
प्रेमी शहीद हुए हैं
सत्ता डरती है
प्रेमियों से
लिखी गयी कविता अब मोड़ कर रख दी जाती है
कवि पुरस्कार लेकर खुश हो जाता है
तारीफ़ कवि की सबसे बड़ी कमजोरी है
जबकि प्रेम ऐसा कुछ नहीं चाहता
प्रेमी विद्रोह करता है
सबसे पहले
वह अपनों का विरोध करता है
जो प्रेम के विरोध में होते हैं
इसी तरह परिवार से समाज तक
और समाज से
सत्ता तक पहुँचता है उसका विरोध
सत्ता, जो एंटी रोमियो दल बनाती है
इसलिए ,
प्रेम क्रांति का पहला पड़ाव है
और मैं इस क्रांति के पहले पड़ाव पर हूँ !

 

अपनी खोई हुई प्रेम कविताएँ खोज रहा हूँ

मेरी कई प्रेम कविताएँ
खो गई हैं
देखना यह है कि
अब कितना प्रेम बचा हुआ है
मुझमें
उन कविताओं के बाहर !
नफ़रत के इस दौर में
आसान नहीं है प्रेम को बचाए रखना
इसलिए,
हमने उसे कविताओं में भर दिया था
अब जब कवियों की भी हत्या होने लगी है
कविता को कौन बचाएगा
अपने ही विराट महल में कैद हिंदुस्तान के अंतिम शहंशाह
बहादुर शाह ज़फर ने जब लिखा था –
“क्या गुनह क्या जुर्म क्या तक़्सीर मेरी क्या ख़ता
बन गया जो इस तरह हक़ में मिरे जल्लाद तू ”
अब जब प्रेम पर पहरेदारी के लिए
तैयार हैं सरकारी दस्ते
मैं अपनी खोई हुई प्रेम कविताएं खोज रहा हूँ !

अभ्यास पुस्तिका

मै तुम्हारे साथ रहा
तुम्हारे जीवन में
किंतु
एक अभ्यासपुस्तिका की तरह
तुमने लिखा फिर
मिटाया
फिर लिखा
फिर मिटाया
अब
पुस्तिका फट गई है
पन्ने भी भर गए हैं
अब
तुम्हे एक
नई पुस्तिका चाहिए
पुनः अभ्यास के लिए ।

 

तुम भी दूरी मापती होगी

हम दोनों की आखरी दिवाली पर
तुमने दिया था जो घड़ी मुझे
आज भी बंधता हूं उसे
मैं अपनी कलाई पर
घड़ी – घड़ी समय को देखने के लिए

उस घड़ी में
समय रुका नही कभी
एक पल के लिए
तुम्हारे जाने के बाद भी
निरंतर चलती रही
वह घड़ी
समय के साथ अपनी सुइओं को मिलाते हुए
घड़ी की सुइओं को देखकर
मैंने भी किया प्रयास कई बार
उस समय से बाहर निकलने की
जहाँ तुमने छोड़ा था मुझे अकेला
समय के साथ
किन्तु सिर्फ समय निकलता गया
और
मैं रुका ही रह गया
वहीँ पर
निकल न पाया
वहां से अब तक
जहाँ छोड़ा था तुमने
मुझे नही पता तुम्हारे घड़ी के बारे में
क्या वह भी चल रही है
तुम्हारे साथ
तुम्हारी तरह ?
कितनी दूर निकल गई हो
कभी देखा है
पीछे मुड़कर ?
जनता हूं
आगे निकलने की चाह रखने वाले
कभी मुड़कर नही देखते पीछे
पर मुझे लगता है
कभी -कभी अकेले में
तुम भी दूरी मापती होगी
हम दोनों के बीच की .

 

अहसास तस्वीरों से ज्यादा ताजा है

अहसास
तस्वीरों से ज्यादा ताजा है
हमने वसंत को छुंआ था मिलकर
अब इस तरफ उदासी है
पत्थरों ने
मना कर दिया है ओस
ओढ़ने से
पत्तियों ने अपना लिया है
पीला रंग
मेरी आखों का नमक
खो गया है
आओ कभी सामने तुम भी
हिम्मत के साथ
मुझे बेनक़ाब करो !
मैं, तुम्हारा कवि हूँ |

 

( कवि एवं लेखक नित्यानंद गायेन दिल्ली से प्रकाशित हिंदी साप्ताहिक ‘ दिल्ली की सेल्फी ’ के कार्यकारी संपादक हैं. उनके तीन कविता संग्रह ‘ अपने हिस्से का प्रेम (2011) ’, ‘ तुम्हारा कवि (2018)’,‘ इस तरह ढह जाता है एक देश (2018) ’ प्रकाशित हो चुका है. टिप्पणीकार कवि कुमार मुकुल जाने-माने कवि और पत्रकार हैं )

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