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‘ 15 दिन से कोई काम नहीं मिला, हम रोज कमाने-खाने वाले कैसे जियेंगे  ’

महाप्रसाद

प्रयागराज. कोरोना वायरस से फैली महामारी भारतीय मानवता के इतिहास में बड़ी त्रासदी व कुरूप के रूप में उभरा है. इससे कोई अछूता नहीं, चाहे बूढा, जवान या बच्चा जिनकी जिंदगी को इस त्रासदी ने भयावह स्वप्न सरीखा कैद कर दिया है.
गंगा किनारे पन्नी के टेंट में रहने को मजबूर मजदूर
वैश्विक महामारी कोरोना से निपटने के लिए हिंदुस्तान में जब 21 दिनों के लॉकडाउन की घोषणा की गई तो यह रईसों के लिए हाथ धुलने की विधि बताने का शगल बना और मध्यवर्गीय सुविधाभोगी वर्ग के लिए सोशल मीडिया पर समय काटने के फूहड़ मनोरंजन के साधनों को साझा करने की चुहल लेकिन हजारों की तादाद में उन मजदूरों की फिक्र कहीं नहीं दिख रही जो अपने मुलुक से दूर रोज ब रोज की रोजी रोटी कमाने गया था और वहीं फंसकर रह गया.
पिछले दिनों लगातार मीडिया और सोशल मीडिया पर कुछ संवेदनशील लोग इस मुद्दे को उठा रहे हैं. भयानक पीड़ा से भरी कहानियाँ, बल्कि सच्चाइयां, हमारे सामने चुनौती की तरह मुँह फैलाए ताक रही हैं. सरकार और प्रशासन संभलते संभलते इनकी मदद को सामने आता दिखा भी तो अभी तक हुई ज्यादातर घोषणाएं जमीन पर नहीं उतर पाई हैं .
 गंगा नदी के किनारे पन्नी के गुडरू तानकर गंगानगर नेवादा इलाहाबाद में लगभग 500 से 600 मजदूर, जो म.प्र. के अलग अलग जिलों के रहने वाले हैं, खाना-पानी के इंतजार में आस लगाकर बैठे हैं कि सरकार व स्थानीय लोग उनकी मदद करेंगे.
ये मजदूर मूलतः आय के दो स्रोत के सहारे यहाँ आए थे । पहला तो यह कि गेहूं की कटाई का समय है और गंगा किनारे गेहूं की फसल कटाई का काम मिल गया तो गुजारे भर की आय हो जाएगी. दूसरे, ये शहर में भी कुछ मजदूरी की आस में थे । लेकिन गेहूं की कटाई मशीनों से हो गई तो महामारी के फेर में शहर में भी काम मिलना बंद हो गया . ऐसे में बमुश्किलन 8 दिन के लिए सहेजे हुए राशन से 15 दिन तक किसी तरह गुजारा किया. आस पास के लोगों से बात करने पर पता चला कि इनकी हालत इतनी खराब है कि कभी कभी ये दो चार के समूह में भीख मांगने भी निकलते हैं.
तीस चालीस के समूह में रह रहे ये मजदूर पन्नी लगाकर बनाए हुए तंबुओं में रहने को मजबूर हैं,  तंबू बनाने के लिए टिन तक भी इनके पास नहीं है.
बातचीत में मजदूरों ने बताया कि दैनिक जरूरत की चीजों के दाम बेतहाशा बढ़ गए हैं, आटा, आलू जैसी बुनियादें चीजें भी 50 रू किलो हो गई हैं. ऐसे में बिना किसी आय के साधन के इनका यहाँ रहना संभव नहीं. ये सभी अपने घर जाना चाहते हैं. कहते हैं कि वहाँ कम से कम भूख से तो नहीं मरेंगे लेकिन पुलिस- प्रशासन इन्हें घर जाने की इजाज़त नहीं दे रहा है ।
कुछ लोगों का कहना है कि अभी तक किसी प्रकार की मदद शासन-प्रशासन की तरफ से हमें नहीं मिली है और जो हमारे पास राशन था वह खत्म हो चुका है अब हम लोग भुखमरी के कगार में खड़े हैं । अब तो यहां पानी का भी संकट है । इसके अलावा कुछ लोग मच्छरों के काटने की वजह से मलेरिया बुखार से भी परेशान है ।
 
(महाप्रसाद प्रयागराज में अधिवक्ता हैं )

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