मऊ. हुल सांकृत्यायन सृजन पीठ परिसर में 12 मार्च को एक आयोजन में मऊ जनपद के सभी स्वतंत्रता सेनानियों के स्मारक का लोकार्पण किया गया। स्मारक शिलालेख का लोकार्पण वरिष्ठ पत्रकार राम शरण जोशी और प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया के सदस्य जयशंकर गुप्त ने किया। इस मौके पर “भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौर में साहित्यकारों व पत्रकारों का योगदान ” विषयक पर विचार गोष्ठी हुई।
संगोष्ठी का आधार वक्तव्य रखते हुए साहित्यकार शिवकुमार ‘पराग’ ने कहा कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सेनानियों के साथ ही साहित्यकारों और पत्रकारों ने निर्भय होकर अपनी लेखनी से योगदान किया। पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी और अलीबाकर ने अपने प्राणों की आहुति दी। भारतेंदु हरिश्चन्द्र , सज्जाद जहीर, बालकृष्ण भट्ट प्रेमचंद,राहुल सांकृत्यायन, जोश मलीहाबादी, माखनलाल चतुर्वेदी , सुभद्रा कुमारी चौहान जैसे अनेक साहित्यकारों ने और हबीब तनवीर. मुकुंद दास जैसे संस्कृतकर्मियों ने नाटकों के माध्यम से साम्राज्यवाद को चुनौती दी। आजादी के आंदोलन से प्राप्त मूल्यों को बचाने के लिए भारतीय जनता को सजग होना पडेगा। लोकतंत्र को मजबूत बनाना बेहद जरूरी है।
लखनऊ विश्वविद्यालय से आए विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर रविकांत ने कहा कि प्रेमचंद ने कहा था कि साहित्य राजनीति के आगे मशाल की तरह जलने वाली सच्चाई है। साहित्य और पत्रकारिता ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद का ही मुकाबला नहीं किया बल्कि आजादी के आंदोलन को भी आईना दिखाया। लेकिन आज साहित्य और राजनीति का रिश्ता बिखर गया है। जब से राजनीति ने साहित्य का आसरा छोड़ दिया है, राजनीत आवारा हो गई है। ठीक वैसे ही आज की पत्रकारिता सरकारी भोपू बन गई है। पत्रकारिता ने सरकार की नीतियों और कामों में हस्तक्षेप करना बंद कर दिया है।
गोष्ठी में डॉक्टर बी आर अंबेडकर विश्वविद्यालय नई दिल्ली से आए आलोचक प्रोफेसर गोपाल प्रधान ने कहा कि आजादी के 75 साल बाद हमारे देश की आजादी खतरे में पड़ गई है. आजादी की लड़ाई जनता को शासकों के सामने स्वाभिमान के साथ खड़े होने और गलती का विरोध करने का साहस देने के लिए लड़ी गई थी। भारत के लोगों ने इस लड़ाई के जरिए दुनिया की सबसे बड़ी ताकतवर सत्ता को चुनौती दी। आज अगर कोई शासक ऐसी बहादुर भारतीय जनता को डराकर मनमानी करना चाहे तो उससे बड़ा भ्रम नहीं हो सकता। आजादी की लड़ाई में लोकतंत्र को राजनीतिक क्षेत्र में हासिल कर लिया गया लेकिन अब उसे सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में विस्तारित करने की जरूरत है।
प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया के सदस्य जयशंकर गुप्त ने कहा कि आज देश में चल रहे अघोषित आपातकाल के दौर में लोकतंत्र, संविधान और न्यायपालिका के साथ पत्रकारिता की स्वतंत्रता भी खतरे में दिख रही है। इससे हमारी मीडिया को भी समझना होगा। स्वाधीनता संग्राम में पत्रकारों और साहित्यकारों के योगदान से प्रेरणा लेकर अपनी खुद की आजादी पर हो रहे हमलों के विरुद्ध लामबंद होना वक्त की जरूरत है। अगर संविधान और लोकतंत्र ही नहीं रहेगा तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कैसे सुनिश्चित होगी। आज तो न्यायपालिका की स्वायत्तता और स्वतंत्रता भी खतरे में दिख रही है।
नई दिल्ली से आए प्रसिद्ध वरिष्ठ पत्रकार राम शरण जोशी जी ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि अब इस दौर में सोशल एडिटिंग की जरूरत है। जनता स्वयं आगे आए और गलत खबर प्रसारित करने वाले अखबारों तथा चैनलों का बहिष्कार करें। इसके साथ ही सरकार को चाहिए कि एक व्यापक या बहुआयामी मीडिया आयोग का गठन करें। पत्रकारों को पर्याप्त सुरक्षा दें। इसके साथ ही मीडिया में बढ़ रहे एकाधिकारवाद या मोनोपोली को रोके। आज जरूरत लोकतंत्र संविधान और बहुलतावाद की रक्षा की है। अन्याय के विरुद्ध लड़ने के प्रतिरोधी गांधी को जगाने की जरूरत है।
स्मारक लोकार्पण व संगोष्ठी में आए सभी मेहमानों को आयोजन समिति के संयोजक जयप्रकाश धूमकेतु ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
गोष्ठी का संचालन डॉ संजय राय ने और आभार ज्ञापन ओमप्रकाश सिंह ने किया। गोष्ठी में प्रमुख रूप से अब्दुल अजीम खां, अरशद जमाल , हरिद्वार राय ,अमरेंद्र सिंह एडवोकेट , देवेंद्र मिश्रा, अरविंद मूर्ति, रमेश पांडे ,रामप्यारे राय , रामकृष्ण यादव , सत्य प्रकाश सिंह एडवोकेट, डॉक्टर जमाली , राघवेंद्र प्रताप सिंह, रामजी सिंह , बसंत कुमार, लक्ष्मी चौरसिया ,वीरेद्र कुमार ,रामचंद्र प्रसाद, बाबू रामपाल, रामू प्रसाद, देव प्रकाश राय , प्रमोद राय, सरोज सिंह , मरछू प्रजापति ,बृकेश यादव राम अवध राव ,सरोज पांडे ,उद्भव मिश्रा , राम कुमार भारती, राम सोच यादव, शमशुलहक चौधरी , विष्णु राजभर, दुर्ग विजय ,विद्याधर , गिरजा प्रसाद आदि उपस्थित रहे।