उत्तराखंड में दो आई.ए.एस. अफसरों चंद्रेश कुमार यादव और पंकज कुमार पाण्डेय को एन.एच.74 के भूमि घोटाले में निलंबित किए जाने की खबर है. इस घोटाले में राष्ट्रीय राजमार्ग के अधिग्रहण के लिए ज़मीनों के अधिग्रहण में बड़े पैमाने पर गड़बड़ झाला हुआ.इस मामले में कुछ पी.सी.एस. अधिकारियों समेत राजस्व कर्मी जेल में हैं.
बहरहाल दो आई.एस.अफसरों के निलंबन की खबर के साथ ही होड़ मच गयी, सरकार की पीठ ठोकने की कि त्रिवेन्द्र रावत पहले मुख्यमंत्री हैं,जिन्होने आई.ए.एस. अफसरों को निलंबित किया है. यह होड़ जानकारी के अभाव में मची है या मुख्यमंत्री की निगाहों में जगह बनाने के लिए,कहा नहीं जा सकता.इस प्रकरण में ऐतिहासिक अगर कुछ है तो यही कि केंद्र और राज्य में एक ही पार्टी की सरकार होते हुए भी मुख्यमंत्री की घोषणा के बावजूद इस मामले में सी.बी.आई. जांच नहीं हो सकी. तथ्य तो यह है कि घपले-घोटालों का दौर राज्य बनने के साथ ही शुरू हो गया था और कार्यवाही भी हुई, भले ही बड़ी मछलियाँ का बाल तक बांका नहीं हुआ.
2002 में एन.डी. तिवारी राज्य के पहले चुने हुए मुख्यमंत्री बने. उनके कार्यकाल में पटवारी भर्ती घोटाला, दारोगा भर्ती घोटाला आदि घोटाले चर्चा का विषय बने. इन्हीं में से पटवारी भर्ती घोटाले में पौड़ी के तत्कालीन जिलाधिकारी एस.के.लांबा निलंबित किए गए. इस तरह पहले निलंबित होने वाले आई.ए.एस. का तमगा तो लांबा साहब के नाम है. उस जमाने में तो लांबा के सेवा से बर्खास्त किए जाने की खबरें भी आई थी. लेकिन गूगल सर्च में लांबा द्वारा स्टार न्यूज़ के खिलाफ मानहानि का एक मुकदमा नजर में आया. इसमें लांबा ने स्टार न्यूज़ पर आरोप लगाया कि न्यूज़ चैनल ने लांबा की बर्खास्तगी की झूठी खबर दिखाई. मुकदमा 28 अगस्त 2018 को खारिज हो गया. लेकिन पहले निलंबित आई.ए.एस. होने का ताज लांबा के सिर पर कायम रहेगा.
पटवारी घोटाले और उससे लांबा के जुड़ाव की कथा बड़ी रोचक है. यह कथा चंद्रेश यादव और पंकज पाण्डेय के लिए भी कुछ सबक लिए हुए हो सकती है, बशर्ते कि वे सबक लेने को तैयार हों. यह कथा पौड़ी जिले में पटवारी भर्ती परीक्षा के प्रभारी रहे एक पी.सी.एस. अफसर के मुंह से सुनी थी. उक्त पी.सी.एस. अफसर ने बताया कि जब पटवारी भर्ती परीक्षा के मूल्यांकन केंद्र पर पहुंचे तो देखा कि कॉपियों का मूल्यांकन किया जा रहा है. इसमें खास बात यह थी कि जिन अभ्यर्थियों ने रिश्वत दी थी, उनकी कॉपियों में लिखे हुए गलत उत्तरों को परीक्षक ब्लेड से खुरच कर मिटा रहे थे और सही उत्तर पर निशान लगा कर, उन्हें पास कर रहे थे.
उक्त अफसर ने बताया था कि डी.एम. साहब(लांबा) मूल्यांकन केंद्र पर मौजूद थे. उक्त अफसर ने जब डी.एम. से इस गड़बड़झाले की शिकायत की तो उक्त अफसर को कहा गया कि जैसा हो रहा है,होने दो. अगले दिन परीक्षा प्रभारी पद से हटा कर उक्त अफसर को एक परगने का उपजिलाधिकारी बना दिया गया. उक्त अफसर ने जब लांबा से कहा कि उनके तबादले से ठीक संदेश नहीं जाएगा तो उनसे कहा गया कि संदेश की चिंता न करें. उक्त अफसर ने बताया था कि उन्होने लांबा को चेताया था कि वे ऐसा करके अपने को संकट में डाल रहे हैं. इस पर लांबा ने जवाब दिया था कि कोई दिक्कत नहीं है. मंत्री जी ने कहा कि वे सब देख लेंगे.
लेकिन जब संकट आया तो मंत्री जी तो बच गए और लांबा की बलि चढ़ गयी.यही इस कथा का सबक है कि मंत्री जी की जब बचाने की बारी आई तो उन्होंने बचाया तो सही, पर सिर्फ खुद को बचाया !
बहुत मुमकिन है कि चंद्रेश यादव,पंकज पाण्डेय या जिनका भी एन.एच. 74 मामले में नाम आ रहा है, उन्हें भी किन्ही “मंत्री जी” ने बचाने का आश्वासन दिया हो या जो भी गलत काम हुआ वह किन्ही “मंत्री जी” के दबाव में ही बचाने के भरोसे के साथ किया गया हो. पर पुरानी कथा का सबक यही है कि बचाने की नौबत जब आएगी तो “मंत्री जी” खुद को,खुद की गद्दी को, जमा पूंजी को ही बचाएंगे ! अब यह फँसने वालों पर है कि वे खामोश रह कर, अपनी बलि दे कर बड़ी मछलियों को बचाएंगे या स्वयं को इस दुरावस्था में धकेलने वालों के चेहरे पर से नकाब उतारने का साहस दिखा सकेंगे ?