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आलोचना ने महादेवी वर्मा के साथ खिलवाड़ किया है : प्रो. सुधा सिंह

महादेवी वर्मा की पुण्य तिथि पर कोरस का आयोजन

“श्रृंखला की कड़ियाँ में महादेवी सिमोन द बोउआर से पहले महिला प्रश्नों को उठाती हैं।” प्रो. राजेन्द्र कुमार

इलाहाबाद. अवसर था महादेवी की पुण्य तिथि, 11 सितंबर पर इलाहाबाद वि.वि. के गेस्ट हाउस के सेमिनार हॉल में कोरस द्वारा आयोजित महादेवी स्मृति व्याख्यान माला का पहला व्याख्यान। विषय था- ‘समाज की महिला दृष्टि और महादेवी वर्मा का सृजन कर्म’।

एकल व्याख्यान दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रो. सुधा सिंह का था।

अपनी बात की शुरुआत करते हुए सुधा सिंह ने कहा महादेवी वंचना-प्रवंचना और अभाव की नहीं भाव की कवि-रचनाकार हैं और यह भाव विवेक से संबंधित है।

महादेवी के रचना संसार को आज सही और समग्रता में समझने का अवसर और दृष्टिकोण हमें प्राप्त है और यह अवसर और दृष्टिकोण स्वयं महादेवी अपने लेखन में प्रदान करती हैं। अगर हम उन्हीं का समुचित पाठ करें तो आलोचना के बहुत सारे आग्रह-दुराग्रह और चमत्कृतियाँ दूर हो जाएं। लेकिन हिंदी आलोचना ने महादेवी के साथ खिलवाड़ किया है।

बिना नाम लिये उन्होंने एक आलोचक का कथन उद्धरित किया -‘अगर महादेवी की रचनाओं में उन्होंने एक पार्थिव की खोज कर ली तो वे महादेवी की रचनाओं की चावी पा जाएंगे’- और बहुत क्षोभ के साथ कहा कि यह जान लेने से क्या फर्क पड़ता है कि महादेवी पार्थिव से प्रेम करती थीं या अपार्थिव से। इससे उनकी रचनाओं और रचना-उद्देश्यों को समझने पर क्या असर और फ़र्क़ पड़ेगा, पड़े भी तो बहुत मामूली ही।

आगे उन्होंने नामवर सिंह के कथन – ‘महादेवी को एक स्त्री में ही निशेष नहीं कर देना चाहिए’- से लेकर चौथीराम तक की महादेवी संबंधी आलोचना दृष्टि पर खरे और कड़े सवाल खड़े किये। कहा कि इनसे पूछा जाना चाहिये कि यह ‘स्त्री में ही निःशेष’ का का क्या अर्थ है? क्या स्त्री-दृष्टि संकुचित दृष्टि है ?

उन्होंने महादेवी के काव्य में पीड़ा और दुःख को सामाजिक संदर्भ देते हुए कुछ गीत पंक्तियों के नए अर्थ दिए। महादेवी के काव्य और गद्य को अलग-अलग करने या दोनों में दृष्टि की एकान्विति न देखने को भी प्रश्नांकित किया और उनके बीच दृष्ट की एकान्विति को सामने रखा।

महिला दृष्टि पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि- ‘स्त्रीवाद का मतलब केवल मध्यवर्गीय महिलाओं की समस्याओं को उठाना नहीं है बल्कि श्रमजीवी महिलाओं की समस्याओं को भी केंद्र में रखना है. पश्चिमी स्त्रीवाद जहां शुरू करता है भिन्नता से, बात करता है समानता की, फिर विखंडन की बात तक आता है और अंततः खुद अंतर्विरोध में खड़ा दिखाई देता है. वहीं महादेवी के तर्क स्टुअर्ट मिल के तर्कों के करीब नजर आते हैं.

श्रृंखला की कड़ियाँ पर उन्होंने जॉन स्टुअर्ट मिल की किताब ‘लिबर्टी’ और मार्क्स-एंगेक्स की किताब ‘ परिवार निजी संपत्ति और राज्य की उत्पत्ति’ के प्रभाव-दृष्टि को रेखांकित किया।

व्याख्यान माला की अध्यक्षता करते हुए प्रो. राजेंद्र कुमार ने सुधा सिंह की बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि महादेवी ने खुद कहा है कि उनके अतीत के रेखा चित्र उनकी कविताओं-गीतों की कसौटी हो सकते हैं।

उन्होंने श्रृंखला की कड़ियाँ का ज़िक्र करते हुए कहा कि महादेवी समन द बोआ से पहले महिला प्रश्नों को उठाती हैं यह तथ्य है लेकिन हम उसकी उपेक्षा आज तक करते रहे।

इस सत्र की समाप्ति कोरस की संयोजक समता राय द्वारा महादेवी के गीत ‘जाग तुझको दूर जाना’ की स्वरबद्ध लयदार और असरदार प्रस्तुति से हुई। भारी तादाद में उपस्थित श्रोताओं ने इस गीत पर जिस तरह अपना हर्ष प्रकट किया लगा मानो उनके सामने महादेवी की रचना-दृष्टि जैसे यकायक साकार हो गई।

दूसरे सत्र में प्रतिरोध का सिनेमा के संयोजक संजय जोशी ने महिला प्रश्नों पर महिला निर्देशकों की कुछ फिल्मों के टुकड़े दिखाए।

व्याख्यान के आरम्भ में राष्ट्रीय संयोजक समता राय ने अतिथियों और श्रोताओं का स्वागत किया। संचालन कार्यकारिणी समिति की सदस्य कामिनी ने किया। अंत मे नंदिता आदावल ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

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