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साहित्य-संस्कृति

लोक की उजास अक्ति तिहार

भुवाल सिंह 

(आज अक्ति है। अक्ति अर्थात लोक की उत्सवधर्मिता का आरंभ। छत्तीसगढ़ का यह लोकपर्व दो कारणों से मन को संवेदित करता है। प्रथम,यह मनुष्य और प्रकृति के सह अस्तित्व की पुनर्व्याख्या का महापर्व है ।द्वितीय, यह लोक पर्व विवाह उत्सव का नवसोपान रचने का उपक्रम भी।)

फोटो: भुवाल सिंह

प्रस्तुत प्रथम चित्र में पुतरा पूतरी के विवाह का दृश्य हम सबको बचपन की सरल यात्रा की ओर ले जाता है । मेरा मन आज भी हर्ष से भर उठा । जब टीपा, डिब्बा को ग्रामीण बच्चे पूरे वेग से गढ़वा बाजा की ताल में जीवन दे रहे थे। उनके लिए पुतरा पूतरी उत्सव का एक रूपक है।यह रूपक आज घटते लिंगानुपात और बढ़ते बलात्कार के दौर में लोक विमर्श की नई भाव धारा रचता है। पुतरा के लिए पुतरी तभी सम्भव होगा जब ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ जैसे नारे सरकारी भाषणों और फाइलों में बेमानी न लगे ।

अगर यह बनावटी जीवन यात्रा जारी रही तो ‘मातृभूमि ‘जैसे फ़िल्म जीवन में उतर जाएंगे। बिना वीमेंस के धरती! जब हम नगर से गांव की या नगर के आसपास के जिले से जनजातीय क्षेत्र की तुलना करते हैं, तब हम पाते हैं कि जैसे जैसे व्यक्ति तथाकथित शिक्षित होता जाता है, वह निर्मम होने की प्रक्रिया में शामिल होता जाता है। जितने ही हम डिग्रियों और साक्षरता दर में कम होते हैं, उतने ही सभ्य और ज्यादा मनुष्य। यह विडम्बना पूर्ण बात दन्तेवाड़ा या पूरे बस्तर के लिंगानुपात की बड़े नगरों से तुलना करने पर स्पष्ट दिखाई देती है।

फोटो: भुवाल सिंह

यह पर्व अपने मूल प्रकृति में दाम्पत्य राग का आरंभ कराने के लिए वास्तविक वर वधू के जीवन का हँसमुख लोकराग भी है ।

अक्ति पर्व में किसान पलाश, महुए के दोने में धान भरकर बीजों का आदान प्रदान करता है। यह आदान प्रदान जैव विविधता को गति देने का पर्याय है!

फोटो: भुवाल सिंह

बीजों का आदान प्रदान कई स्थानों पर बैगा या धार्मिक अनुष्ठान के माध्यम से होता है तो कहीं इसका अलग रूप है। किसान बीज का हिस्सा खेतों में बोता है और कृषि नववर्ष की धूमधाम से शुरुआत करता है।इसे स्थानीय लोक में मुठ पकड़ना भी कहते हैं।यह मुठ शब्द कृषि कर्म की आधारशिला हल चलाने का प्रतीक है। छत्तीसगढ़ के मैदानी हिस्सों में खासकर रायपुर के आसपास!

आज कृषक नववर्ष शुरू हो रहा है। गांवों में किसान अपने कोठी अर्थात् अन्नागार से पांच या पांच से अधिक बीजों को चुरकी या महुए के दोने में लेकर लोक आराध्य ठकुरदिया जाते हैं। वहां पहुंचकर सभी किसान अपने बीज बैगा को दे देते हैं। वह सभी बीजों को मिलाकर धरती में बिखेर देता है। बिखरे हुए बीजों में दोने में जल भरकर सिंचन किया जाता है। यह पर्व प्रतीक स्वरूप कृषि कर्म की पूरी प्रक्रिया को हल चलाने, बीज बोने, सिंचाई करने को एक साथ आज रूप देता है। एक अर्थ में बालकों को कृषि प्रक्रिया से जोड़ने और किसान को जीने का उत्सवी राग है यह लोक पर्व।वहां बिखरे बीजों को दोने में लेकर किसान अपने खेत में प्रतीक स्वरूप बो देता है।धरती माता से यह कहते हुए कि माँ अन्न से दुनिया को भर दो।ताकि पसीने की बूंद जो गंगाजल से पवित्र होती है उसकी चमक सूर्य को रास्ता दिखाएं । मुझे हर बार यह  लोक पर्व आषाढ़ के बादलों को बुलाने का उपक्रम लगता है। अक्षय तृतीया लोक की मनुष्यता के लिए शुभकामनाएं हैं।अक्ति पर्व लोकध्वनि में जागरण और कर्म का संदेश देते हुए कहता है-

‘कांटा खूंटी ल सकेलव रे
लइका अउ सियान!
बांवत के दिन आगे भइया
बोएं ल चली धान!’
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आज के दिन घरों में चना दाल और गुड़ का प्रसाद बांटा जाता है ।साथ ही मिट्टी के नए बर्तन में वृक्षों में जल का सींचन किया जाता है और वृक्षों के पास चना और गुड़ सभी जीवों के लिए चढ़ाया जाता है।यह मनुष्य और मानवेतर जीवों की संवेदना को एक धरातल प्रदान करती है!

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आज के दिन से ही घरों में ,वृक्षों पर  मिट्टी के नए बर्तन में जल भरकर चिड़ियों के लिए रखने का क्रम जारी होता है, जो अनवरत चलता है!

चलते चलते प्रेरणा भूमि दंतेवाड़ा की बातें यहां की आमा तिहार,बीज पंडुम पर्व भी अक्ति के आसपास ही मनाया जाता है। पूरे बस्तर अंचल में आमा तिहार, जो कई स्थानों पर आज के दिन ही सम्पन्न होता है,  आमा तिहार में लोग आम की प्रकृति पूजा के बाद आम खाते हैं।वे आमा तिहार के पूर्व किसी भी शर्त में आम को हाथ नहीं लगाते।आज अगर आम की पूजा नहीं कर पाया तो वह पूरे वर्ष आम नहीं खाता।साथ ही वे बीज पंडुम लोक पर्व में वृक्ष या लोक देव के पास इकठ्ठे होकर बीज अर्पित करते हैं।तत्पश्चात अपने खेतों में प्रतीक स्वरूप बीज सींचते हैं।यह है प्रकृति के प्रति प्रणाम भाव।बस्तर क्षेत्र और मैदानी क्षेत्र के पर्वों में मुख्य अंतर यह मिलता है कि जहां अक्ति पंचांग आधारित प्रकृति पर्व (किसान पर्व)है, वहीं बीज पंडुम और आमातिहार पूर्ण प्रकृति पर्व।इसलिए बस्तर में अलग अलग दिन बीज पंडुम और आमा तिहार मनाया जाता है।इसलिए बस्तर पूरा महीना या महीने से भी अधिक दिन रोज लोक उत्सव चलता है।

(लेखक शासकीय महाविद्यालय भखारा(धमतरी)  छत्तीसगढ़ में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर हैं।)
सम्पर्क:7509322425..

फीचर्ड इमेज: साभार फेसबुक -लतिका वैष्णव -बस्तर

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