यह साहित्य की प्रगतिशील-जनवादी परंपरा और संघर्षशील धारा का सम्मान है – कौशल किशोर
कौशल किशोर ने रचना कर्म को सामाजिक कर्म का हिस्सा बनाया- दिनेश प्रियमन
केदार जी की परंपरा संघर्षशील रचनाकारों से आगे बढ़ती है – अजीत प्रियदर्शी
जनवादी लेखक मंच, बांदा और ‘मुक्तिचक्र’ पत्रिका की ओर से कवि और संस्कृतिकर्मी कौशल किशोर को जनकवि केदारनाथ अग्रवाल सम्मान से सम्मानित किया गया। उन्हें मंच के अध्यक्ष जवाहरलाल जलज और ‘मुक्तिचक्र’ पत्रिका के संपादक गोपाल गोयल द्वारा सम्मान के तौर पर अंगवस्त्र तथा प्रतीक चिन्ह प्रदान किया गया। कार्यक्रम जैन धर्मशाला, बांदा के सभागार में 22 जून को संपन्न हुआ। इसकी अध्यक्षता पर्यावरणविद और प्रगतिशील किसान प्रेम सिंह ने की तथा संचालन युवा आलोचक उमाशंकर सिंह परमार ने किया।
इस मौके पर सम्मानित रचनाकार कौशल किशोर ने कहा कि सम्मानों की भीड़ में इस केदार सम्मान का अपना अलग महत्व है। यह साहित्य की प्रगतिशील-जनवादी परंपरा और संघर्षशील धारा का सम्मान है, किसी व्यक्ति का नहीं है। नागार्जुन और केदार जनकवि हैं। वे साफ-साफ बात करते हैं। केदार जी के पास विश्व दृष्टि है, वहीं अपने जनपद का गहरा यथार्थ बोध है। केन उनके यहां चेतना की नदी है। वे जन आस्था के कवि हैं, प्रेम और सौंदर्य के कवि हैं, अन्याय के विरुद्ध प्रतिरोध के कवि हैं। उनके सृजन में एक बेहतर दुनिया की संकल्पना है। वे हम जैसों को लगातार प्रेरित करते हैं। यह सम्मान हमें संघर्षशील, संकल्पबद्ध तथा अपने रचना कर्म के प्रति जिम्मेदार बनाता है।
कौशल किशोर ने करीब आधा दर्जन कविताएं सुनाईं। किसान आंदोलन को केंद्र कर लिखी कविता में कृषि कानूनों की वापसी के बाद उनके लौटने को इस प्रकार व्यक्त किया ‘उनका लौटना महज लौटना नहीं है/यह भारत की ललाट पर खेतों की मिट्टी का चमकना है’। उन्होंने ‘वह हामिद था’ शीर्षक से कविता का पाठ किया जिसमें प्रेमचंद की मशहूर कहानी ‘ईदगाह’ के केंद्रीय पात्र ‘हामिद’ का पुनर्पाठ है। वर्तमान समय में उसे मॉब लिंचिंग जैसी भयावह स्थिति से गुजरना पड़ रहा है। इसी सच्चाई को कविता व्यक्त करती है ‘हामिद मारा गया/ नहीं…नहीं हामिद नहीं मारा गया/मारी गई संवेदनाएं/ हत्या हुई भाव विचार की/जो हमें हामिद से जोड़ती हैं/ जो हमें आपस में जोड़ती हैं/जो हमें इंसान बनाती हैं/जो हमें हिंदुस्तान बनाती हैं’। इसी का विस्तार ‘बुलडोजर’ कविता में है जो वर्तमान समय में सत्ता संस्कृति का प्रतीक बना है। कविता इसका जन प्रतिरोध रचती है, कुछ यूं ‘जो अभी राजा के आदेश पर मचल रहा था/दुलत्ती चला रहा था/औरतों ने उसका हिनहिनाना बंद कर दिया है/उन्होंने कान उमेठ बता दिया है कि/ बुलडोजर हो या हो अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा/उनके आगे कोई भी अजेय नहीं है’। अपने कविता पाठ का समापन ‘मेरा सत्तर पार करना’ कविता से किया जिसमें वे कहते हैं ‘मेरा सत्तर पार करना/बचपन में तैर कर नदी पार करने जैसा है/शरीर कई व्याधियों से घिरा है/पर दिल अब भी जवान है/….अनेक लड़ाइयां जो पिछली सदी में लड़ी गईं/ वे अब भी जारी हैं/मैं एक सिपाही की तरह/ उनमें शामिल रहा हूं’। इस कविता का अन्त कवि शमशेर बहादुर सिंह को उद्धृत करते हुए है कि ‘अब जितने दिन भी जीना होना है/उनकी चोटें होनी हैं और अपना सीना होना है ‘।
उन्नाव से आए कवि और आलोचक दिनेश प्रियमन का इस अवसर पर कहना था कि केदार जी की स्मृति में दिया जाने वाला यह सम्मान बड़े-बड़े सरकारी पुरस्कारों से बड़ा है और अपना अलग महत्व रखता है। कौशल किशोर की कविताओं पर बोलते हुए कहा कि यह सम्मान उनके रचना कर्म और संस्कृति कर्म के संतुलन का सम्मान है। उन्होंने जीवन कर्म के साथ रचना कर्म तथा काव्य कर्म के साथ संस्कृति कर्म का संतुलन बनाया है। यह उनके गद्य और पद्य की रचनाओं में भी दिखता है। रचना कर्म कलम घिसने या फुरसतिया काम नहीं है। कौशल किशोर ने रचना कर्म को सामाजिक कर्म का हिस्सा बनाया है। उनकी कविता में हामिद है और उसके माध्यम से हमारा समय है। वे सत्ता के अत्याचार पर लिखते हैं। इसके साथ जन प्रतिरोध है। जहां भी संघर्ष है, उन पर उनकी अभिव्यक्ति है। वे किसानों के संघर्ष की बात करते हैं। यहां स्त्रियों का संघर्ष है। इनके यहां ‘वह औरत नहीं महानद थी’ की बात है। इसमें संघर्ष की निरंतरता के साथ उम्मीद और एक बेहतर दुनिया का स्वप्न है।
लखनऊ से आए युवा आलोचक डॉ अजीत प्रियदर्शी का कहना था कौशल किशोर आंदोलनधर्मी रचनाकार हैं। इनकी वैचारिकी की निर्मिती वहीं से होती है। वे जलेस, प्रलेस की निर्माण प्रक्रिया से जुड़े रहे हैं। जन संस्कृति मंच के संस्थापकों में हैं। इन्होंने मजदूर आंदोलन में भाग लिया। नुक्कड़ नाटक भी किए। सूत्र रूप में कहा जाए तो कौशल किशोर रचना, विचार, संगठन और आंदोलन के व्यक्ति हैं । इस उम्र में भी वे युवा हैं। उनकी सक्रियता हम जैसों को प्रेरित करती है। केदार जी की प्रगतिशील परंपरा ऐसे ही रचनाकारों से आगे बढ़ती है।
दूसरा सत्र विमोचन सत्र था। इसमें ‘रहूँगा तब तक इसी लोक में’ ( कविता संग्रह ) जवाहर लाल जलज, ‘पगडंडियों से राजपथ तक’ – ( गीत / कविता संग्रह ) रामौतार साहू, जबरापुर ( कहानी संग्रह ) प्रद्युम्न कुमार सिंह तथा ‘कोरोना काल में कविता’ (साझा काव्य संकलन) – संपादक प्रमोद दीक्षित मलय का लोकार्पण हुआ। ‘कृति ओर’ हिंदी की महत्वपूर्ण पत्रिका है। इसके संस्थापक संपादक विजेंद्र रहे हैं। पिछले साल कोरोना संक्रमण की वजह से उनका निधन हुआ। वह पत्रिका युवा आलोचक उमाशंकर सिंह परमार के संपादन में बांदा से निकलनी शुरू हुई है। इस मौके पर उसके नये अंक का भी लोकार्पण हुआ जो विजेंद्र जी पर केंद्रित है। इसमें उनके जीवन और रचना कर्म पर केंद्रित रचनात्मक सामग्री है।
दूसरे दिन 23 जून को राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित गाँव जखनी में स्थापित जैविक खेती के माडल ‘प्रेम सिंह की बगिया’ को देखने-समझने का था। यहां हुई संगोष्ठी में ‘जल जंगल जमीन के संकट और निवारण में किसानों की भूमिका’ विषय पर प्रेम सिंह ने विस्तार से अपने विचार रखे। इस मौके पर कविता चौपाल का भी आयोजन किया गया। दिनेश प्रियमन की अध्यक्षता में जवाहर लाल जलज, विमल किशोर, नारायण दासगुप्ता, प्रेम नंदन, प्रदुम्न कुमार सिंह, डीडी सोनी, उमाशंकर सिंह परमार, रामअवतार साहू, प्रमोद दीक्षित आदि ने अपनी कविताओं का पाठ किया। ‘मुक्तिचक्र’ पत्रिका के संपादक गोपाल गोयल के धन्यवाद ज्ञापन से दो दिनों के जनकवि केदारनाथ अग्रवाल सम्मान समारोह का समापन हुआ।