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‘जनता का अर्थशास्त्र ’ एक जरूरी किताब – प्रो रमेश दीक्षित

लखनऊ। आवारा पूंजी साम्राज्यवादी पूंजी का नया चेहरा है। वह राजनीति पर कब्जा जमाती है, उसे अपना गुलाम बनाती है। वह जिस अर्थशास्त्र को निर्मित करती है, वह है अरबपतियों का अर्थशास्त्र। इस पूंजी ने बदचलन नेता और भ्रष्ट नौकरशाह पैदा किया है। राज्य की भूमिका बढ़े तथा पूंजी पर उसका नियंत्रण जरूरी है। आज उलटा हो रहा है। वेल आऊट उनके लिए हो रहा है जो राज्य की भूमिका को कमतर करना चाहते हैं।

यह बात प्रो रमेश दीक्षित ने कही। वे भगवान स्वरूप कटियार की किताब ‘जनता का अर्थशास्त्र’ के लोकार्पण के मौके पर बोल रहे थे। लखनऊ पुस्तक मेले में इस किताब का लोकार्पण और इस पर परिसंवाद का कार्यक्रम जन संस्कृति मंच की ओर से 25 सितम्बर को आयोजित हुआ।

प्रो रमेश दीक्षित ने इसकी अध्यक्षता की। उनका कहना था कि अर्थशास्त्र वह है जिन सवालों से जनता परेशान होती है, उस पर विचार करे। यह एक जरूरी किताब है जो बड़ी अवधारणाओं को सामान्य भाषा और आम आदमी की जुबान में कहती है।

वरिष्ठ आलोचक वीरेन्द्र यादव का कहना था कि हम जिस दौर में है, उसमें लेखकों को सर्वजनिक बौद्धिक की भूमिका निभानी होगी। उन्होंने प्रेमचंद, राहुल, यशपाल आदि का उदाहरण देकर कहा कि उन्होंने किसानो, मजदूरों से लेकर सामाजिक समस्याओं पर लिखा। कटियार जी में यह परम्परा दिखती है। उनकी किताब ‘जनता का अर्थशास्त्र’ इसका उदाहरण है। वे समस्याओं को किसी अर्थशास्त्र के शास्त्रीय नजरिये से नहीं देखते बल्कि उनका दृष्टिकोण राजनीतिक है। वे राजनीतिक समाधान की बात करते है। वे डा अम्बेडकर के विचार से प्रेरित हैं। उनकी मान्यता है कि जनता के लोकतंत्र के बिना जनता के अर्थशास्त्र की बात करना फिजूल है।

कटियार जी की इस किताब की भूमिका वरिष्ठ पत्रकार रामेश्वर पाण्डेय ने लिखी है। इस मौके पर उनका कहना था कि इस किताब में कटियार जी के अन्दर की बेचैनी दिखती है। यह बेचैनी बदलाव की है। इसे इस रूप में भी देखा जाना चाहिए कि जिस कार्यभार को पूंजीवाद को पूरा करना था, वह उससे पीछे हट चुका है। लोकहित की जगह उसका स्वार्थ और मुनाफा है। कटियार जी में इस पूंजीवादी दुनिया को समझने व बदलने की चाहत है। एक उम्मीद है।

पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस का कहना था कि कटियार जी की इस किताब में आंकड़ों की भरमार नहीं है। जार्गन भी नहीं है। विश्व में क्या घट रहा है, उसका हमारे ऊपर क्या प्रभाव पड़ रहा है, इसे सरल-सहज शब्दों में पेश किया है।

सोशल एक्टिविस्ट ताहिरा हसन ने 1990 में शुरू हुए नवउदारवाद के साथ सम्प्रदायवाद के उभार की चर्चा करते हुए कहा कि वित्तीय पूंजी के साथ सांठगांठ की गयी। राष्ट्रीय व जनहित को किनारे किया गया। लोभ, लाभ और लालच अर्थात मुनाफा ही अर्थव्यवस्था का एकमात्र मकसद बन गया।

किसान नेता शिवाजी राय का कहना था कि उदारीकरण के दौर में सबसे ज्यादा मजदूरों और किसानों का नुकसान हुआ। कृषि आधारित उद्योग रुग्ण हुए या बन्द हुए। देवरिया में 14 चीनी मिलें थीं। इस क्षेत्र को चीनी का कटोरा कहा जाता था। आज मिलें बन्द हो चुकी हैं। हर तरफ दमन बढ़ा है। श्रमिको से लेकर बुद्धिजीवियों तक निशाने पर हैं।

कार्यक्रम का संचालन जसम उत्तर प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष कौशल किशोर ने किया। परिसंवाद का आरम्भ करते हुए उन्होंने कहा कि भगवान स्वरूप कटियार की किताब ‘जनता का अर्थशास्त्र’ ऐसे समय में आयी है जब देश आर्थिक मंदी की चपेट में है। विकास का नारा धूमिल पड़ चुका है। बेरोजगारी अपनी चरम पर है। किसान आत्महत्या कर रहे हैं। बैंक्रिग व्यवस्था दिवालिया होने के करीब है। ऐसे में कटियार जी की इस किताब का आना महत्वपूर्ण है जो ‘विकास’ के निहितार्थ के साथ मौजूदा मंदी को समझने में सहायक है।

भगवान स्वरूप कटियार ने सभी का धन्यवाद ज्ञापन किया। इस मौके पर विजय राय, सुभाष राय, राजेश कुमार, दयाशंकर राय, नलिन रंजन, अजीत प्रियदर्शी, बंधु कुशावर्ती, हिरण्मय धर, देवनाथ ़िद्ववेदी, तरुण निशान्त, अशोक चन्द्र, अशोक श्रीवास्तव, करुणा श्रीवास्तव, आर के सिन्हा, रामायण प्रकाश, प्रमोद प्रसाद, देवकी नन्द शांत, राम किशोर, उमेश पंकज, के के शुक्ल, वीरेन्द्र त्रिपाठी, ज्ञान प्रकाश, वीरेन्द्र सारंग, अशीष सिंह, माधव महेश, नीतीन राज आदि मौजूद थे।

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